अनुभूतियां जब शब्दों में ढलती है तो कविता बनती है, यह बात तो सभी जानते है लेकिन यह बात शायद सभी नहीं जानते कि अनुभूतियां राग में भी ढलती है।
जब सामाजिक परिवेश से भावनाएं बदली तब कविता भी छंद और लय की सीमाएं तोड़ कर बाहर निकली। इसी तरह कभी-कभी अनुभूतियां भी पारम्परिक रागों में नहीं ढल पाती और फूट पड़ते है नए राग।
इस सप्ताह के आरंभ में संगीत-सरिता में एक बहुत ही अच्छी श्रृंखला समाप्त हुई - राग रसीले रंग निराले जिसे तैयार किया छाया (गांगुली) जी ने और प्रस्तुत किया प्रसिद्ध बांसुरी वादक और संगीतकार डाँ विजय राघव राव जी ने।
कुछ नया सुनने मिला जैसे राग शिव कौंस पाश्चात्य वाद्यों पर और भारतीय परम्परा में झप ताल पर। उन्होनें खुद की रचना भी प्रस्तुत की राग मधु कौंस में।
मूल जानकारी तो ये थी कि परम्परागत राग कुछ है जैसे यमन, तोड़ी इन रागों में कुछ बदलाव कर या इनका समन्वय कर नए राग बनाए जाते है जैसे शुद्ध नट और हंस ध्वनि के समन्वय से बना राग नट हंस जिसे प्रस्तुत भी किया गया।
एक बहुत ही भावुक प्रस्तुति भी रही राग विजय रंजिनी जो राग पीलू और कल्याण का मिश्रण है। इसके बारे में उन्होनें बताया कि आन्ध्र प्रदेश में विजयवाड़ा में मंदिर में हुई भावानात्मक अनुभूति जब राग में ढलने लगी तो वह परम्परागत सीमाएं तोड़ कर बाहर आई और तैयार हुआ यह मिश्रित राग।
यहाँ एक बात मेरे मन में आ रही है कि जैसे विज्ञान में विशेषकर पौधों में विभिन्न किस्मों की विशेषताओं को लेकर एक नया पौधा तैयार किया जाता है जिसे संकर या हाइब्रिड कहते है उसी तरह से ये मिश्रित राग भी क्या संकर या हाइब्रिड कहे जा सकते है ?
मुझे याद आ रहा है बहुत पहले शायद इसी कार्यक्रम में बताया गया था कि परम्परागत राग तोड़ी में सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन ने कुछ परिवर्तन किए और इस तरह बना नया राग मियां की तोड़ी कहलाया।
यहाँ मैं एक अनुरोध करना चाहती हूँ कि इस तरह संगीतज्ञों द्वारा बनाए गए राग और मिश्रित रागों पर एक श्रृंखला प्रस्तुत कीजिए जिसमें यह बताइए कि किन मूल रागों कि कौन-कौन सी विशेषताओं को लेकर मिश्रित राग तैयार किए गए और किसने इन रागों को तैयार किया।
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Friday, April 4, 2008
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1 comment:
अन्नपूर्णा जी,
हम तो संगीत सरिता सुन नहीं पाते हैं, पर आपके विश्लेषणों के जरिये हमें बहुत सी जानकारी मिल जाती है. आपका शुक्रिया.
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।