कल तरंग पर बता चुका हूं कि घर पर नवीनीकरण का काम जारी है । और नए नए अनुभव हो रहे हैं । ऐसा ही एक अनुभव आज रेडियोनामा पर । ऐसा इसलिए कि अपने घर के नवीनीकरण के चक्कर में हमारी रेडियो की दुनिया का ही नवीनीकरण हो गया है ।
रेडियोनामा पर अकसर ये विमर्श होता रहता है कि रेडियो की दुनिया किस तरह से हमारे घरों और दुकानों में अपने पैर फिर से पसार रही है । एक ज़माने में स्थाई रेडियो हुआ करते थे और वो हमारे घरों में या दुकानों में विराजमान रहा करते थे । उन्हें सुनने के लिए हम सबको आसपास विराजमान रहना पड़ता था । ये वाल्व वाले रेडियो का ज़माना था । फिर ट्रांजिस्टर आए तो क्रांति हो गयी और रेडियो का आकार छोटा हो गया । लगभग दो तीन दशक तक ट्रांजिस्टरों पर भारत में लोगों ने लोकप्रिय रेडियो चैनलों का आनंद लिया । जिनमें उर्दू सर्विस, रेडियो सीलोन और विविध भारती के अलावा स्थानीय चैनल शामिल हैं । लेकिन रेडियो की दुनिया को तब टैक्नॉलॉजी ने आमूलचूल रूप से बदल दिया जब रेडियो मोबाइल हो गया और मोबाइल रेडियो हो गये । आइये मोबाइल और स्थिर रेडियो की उस दुनिया से आपका परिचय कराएं जो पिछले उन्नीस बीस दिनों से हमने अलग अलग रूपों में देखी ।
घर में रसोई की टायलिंग का काम शुरू हुआ तो कडिया महोदय आए । आंध्रप्रदेश के मेहबूबनगर जिले के निवासी भीमन्ना और वामन्ना । और हां उनके साथ थे रामप्रसाद और कृष्णा । इन चार लोगों में बॉस थे भीमन्ना । जो अपनी शादी पर लिये गये क़र्ज़ को चुकाने के मकसद से एक मुकादम के साथ मुंबई आए और इसी इलाक़े के हो लिए जहां इन दिनों हमारा फ्लैट है । इन महोदय को रेडियो सख्त नापसंद । 'साला शोर हो तो काम ठीक नहीं होता है' । भीमन्ना का ओरीजनल डायलॉग । वामन्ना और कृष्णा रेडियो के शैदाई । गाना आए तो काम हो । कैसी विरोधाभासी टोली । जब जब भीमन्ना सामान लेने बाहर जाता, तब तब हमारा ट्रांजिस्टर मज़दूरों के क़ब्जे़ में आ जाता । और कभी मनचाहे गीत तो कभी सदाबहार नगमे तो कभी सखी सहेली सुनते हुए महाशय टायलिंग और ग्रेनाइट का काम करते जाते । साथ में अपनी महा-बेसुरी आवाज़ में गुनगुनाते । और जब रहा नहीं जाता तो दिल का हाल हमें सुनाते---लंबी चटाई के रूप में ( मुहावरा है चटाई बिछाना: यानी दिमाग़ चाटना ) सेठ ये फिल्म मैं खम्मम में देका ता, अस्सी पैसा में । आंध्र ही होने की वजह से वहीदा और तब्बू इनकी फेवरेट । और जब 'कांटों से खींच के ये आंचल' बजे तो वामन्ना झूम उठें । घर-निर्माण की दुनिया में धूल, ईंट, गारे, ड्रिलर, कटर, ग्राइंडर, छेनी, हथौड़ा, टाइलें, व्हाइट सीमेंट, ग्रेनाइट, फावड़ा, छेनी के बीच खिड़की पर रखा धूल खाता ट्रांजिस्टर । रेडियो की दुनिया का ये कोना भी तो देखिए ज़रा ।
फिर प्लंबर महोदय तशरीफ लाए । जिन्हें घर की पाइप फिटिंग पर थोड़ा-सा चमत्कार दिखाना था । आते ही कडि़या की टोली को कहा- ऐ तुम लोग बाजू हटो समझा क्या, अपुन को ये दीवाल के काम करने का है । नाम प्रमोद, गांव महाराष्ट्र के कोंकण तट का कोई सुदूर इलाक़ा । काम- प्लंबिंग और पेन्टिंग । और शौक़-सोनी एरिकसन के अपने वॉकमैन फोन पर FM रेडियो सुनना । प्रमोद के लिए रेडियो सुनने का मतलब था नए गाने सुनना । वो भी झूमझाम प्राइवेट स्टेशनों पर । वामन्ना और प्रमोद की जंग । उसे विविध भारती सुनना है इसे एफ़. एम. स्टेशन सुनना है । मुसीबत में हम हैं क्योंकि हमें इन लोगों को जल्दी से काम करवा के घर से बाहर करना है । वामन्ना का तर्क- अरे तुम अपना हेडफोन लगाके सुनो ना, हम अपने ट्रांजिस्टर को किदर कान में लगाएगा । प्रमोद का पलटवार--तुम लोग क्या बकवास सुनते हो, अरे गाना इसको कहते हैं--पता है राखी सावंत का गाना है, क्रेजी फोर, क्रेजी फोर, अंग्रेजी आती है क्या । देखता है तू क्या । दोनों की बहसबाज़ी हमारा बीच बचाव । रेडियो की दुनिया में एक विस्फोटक नज़ारा । आप कल्पना करें कि प्लंबर का सोनी एरिकसन वॉकमैन फोन किसी टाइल के ढेर के ऊपर टिका रखा है और वो तन्मयता से काम कर रहा है । मोबाइल अपने मेमने जैसे गले से पूरी ताकत से चीख रहा है ।
इसके बाद एंट्री कारपेन्टर महोदय की । बढ़ई या सुतार आप जो कह लें । नाम सम्भाजी सुतार । उम्र तकरीबन पैंतालीस । मुकाम जिला कोल्हापुर का एक छोटा सा गांव । बीस साल पहले थोड़े से पैसों के साथ मुंबई आए और आज कामयाब हैं । अपना घर है और जबर्दस्त व्यस्तताएं । हमारे अनुरोध पर वो हमारे घर के फर्नीचर के लिए इसलिए राज़ी हुए क्योंकि हम 'विविध भारती वाले' हैं और उन्होंने जिंदगी भर विविध भारती सुना है । उनका कहना है कि उनके जीवन में टी वी से रेडियो ज्यादा महत्त्वपूर्ण रहा है । रेडियो पर उन्होंने मराठी के प्राइमरी चैनल सुने हैं जिन पर 'मी डोलकर दर्यांचा राज़ा' जैसे गीत आते हैं या फिर विविध भारती । ममता की आवाज़ उन्हें विशेष रूप से पसंद । हम तो घर पर हैं । ममता के प्रसारणों को सुनते ही वो सीधे घर पर अपनी 'औरत' ( पत्नी को वो औरत कहते हैं) को फोन करके बताते हैं, रेडियो लगा और सुन, मालूम है मैं इन्हीं के घर पर काम कर रहा हूं यानी कि ममता जी के । उनके बोलने में मालूम है और यानी कि ज़रूर आएगा । चाहे जितनी बार आए । पुराने गानों के शैदाई । वामन्ना और भीमन्ना से उनकी खूब जमी । उनकी टोली के जाने के बाद हमारा रेडियो संभाजी सुतार के कब्जे में आ गया । एक दिन हेमंत कुमार का गीत बजा सदाबहार नग्मे में । ' आ गुपचुप गुपचुप प्यार करें ' संभाजी काम छोड़कर हमारी टेबल पर आ गये । कहने लगे- मालूम है, ये गाने सुनकर मुझे गांव याद आता है, झाड़ के नीचे खटिया डालकर दोपहर को लेटने का और रेडियो सुनने का यानी कि विविध भारती । ये गाने सुनकर मुझे दरिया का किनारा याद आता है । गांव की नदी के किनारे बैठकर हम रेडियो सुनते थे । संभाजी एक अप्रैल के बाद अधिक प्रसन्न हैं, क्योंकि विविध भारती पर 'भूले बिसरे गीत' कार्यक्रम आजकल जल्दी लग रहा है ( आ रहा है ) उनका कहना है--मालूम है सुबह साढ़े छह बजे से जब पुराने गाने आते हैं ना आजकल यानी कि भूले बिसरे गीत तो मालूम है, बहुत अच्छा लगता है यानी कि मन शांत हो जाता है । कीलों, प्लाई, सन-माइका, विनियर, फेवीकॉल, स्क्रू के बीच में ठोकम-पीट करता एक बढ़ई । रेडियो की दुनिया का मुसाफिर । बीस सालों से मुंबई में रहकर रेडियो सुनता है, काम करता है । उसका कहना है कि एक बार वो संगीतकार राम-लक्ष्मण के घर फर्नीचर बना चुके हैं । और इच्छा है कि किसी तरह लता जी के घर फर्नीचर बनाने का मौका मिले । मालूम है वो महाराष्ट्र का गौरव हैं यानी कि भारत देश का गौरव ।
कारपेन्टर के साथ हम कांच की ख़रीददारी के लिए एक शोरूम में गए । संयोग कहिए या रेडियो का फैलाव । बंदे की दुकान में काउंटर पर रेडियो, छोटा सा एफ एम रेडियो, मद्धम आवाज़ में बज रहा है । ग्रूविंग करवानी है कांच में । निर्देश मिलता है आप कारपेन्टर को लेकर फैक्ट्री में जाइये । वहां कारीगर कर देगा । हम बोरीवली पश्चिम के इलाके एकसर की पतली गली में एक दरवाज़े पर खड़े हैं । दरवाज़ा खुलता है तो सफेद कणों से सराबोर एक लड़का जिसक नाम जाफर है, दरवाज़ा खोलता है, उसका पोर पोर सफेद कणों से सराबोर है, जैसे आटा चक्की पर तैनात आदमी का होता है । भीतर जाते हैं तो कमरे की हर संभव चीज़ पर आईने के बुरादे की परत है । बंद खिड़की पर एक एफ एम रेडियो किट है, जो ऑटो वाले लगाते हैं । साथ में दो स्पीकर । कमरा है दस बाय दस का । कांच की घिसाई, ग्रूविंग और कटिंग की एक कठिन दुनिया । अठारह उन्नीस साल की उम्र वाले तीन लड़के । बड़े बड़े बक्कल वाले बेल्ट लगाए, जीन्सधारी । सिर पर अमरीकी झंडे वाला स्कार्फ बांधकर बालों की हिफ़ाज़त करते । एकदम सजीले नौजवान । अक्षय कुमार के प्रशंसक । रेडियो पर गाना बज रहा है--'तेरी आंखें भूल भुलैंयां' और जाफर थिरक थिरक कर हमारे ख़रीदे कांच का तिया-पांचा कर रहा है । काम की रफ्तार कम है थिरकने की ज्यादा । कांच के बारीक बुरादे और शोर भरी बंद दुनिया में एक खचाड़ा एफ एम रेडियो, जिस पर प्रीतम की बनाई झकाझक धुन और दिन भर कांच काटना या घिसना । क्या आपने रेडियो की इस दुनिया को कभी देखा है ।
इसी समय हमारी इमारत की पेन्टिंग चल रही है । रस्सियों के सहारे लटक कर नौजवान सर्कस के ट्रैपीज़ के करतबों की तरह इस काम को अंजाम दे रहे हैं । ताज्जुब इस बात का है कि
.... बंद खिड़की पर एक एफ एम रेडियो किट है, जो ऑटो वाले लगाते हैं । साथ में दो स्पीकर । कमरा है दस बाय दस का । कांच की घिसाई, ग्रूविंग और कटिंग की एक कठिन दुनिया ।
युवा पीढ़ी के इन मजदूरों के मोबाइल फोन पर सातवें मंजिल के छज्जे से लटकते हुए भी रेडियो बजता है । दु:साहसी रेडियो श्रोता हैं ये । ऊंची इमारतों से झांकने से ही कई लोगों की सांसें थमने लगती हैं । यहां ऊंचाई पर लटक कर रेडियो सुनते हुए काम किया जा रहा है ।घर के नवीनीकरण के बहाने हमें रेडियो की एक ऐसी अंधेरी दुनिया में झांकने को मिला, जहां मेहनतक़श मज़दूर और कारीगर हैं और उनका साथी है संगीत । देश के अलग अलग हिस्सों से मुंबई में आए ये लोग रेडियो की स्वरलहरियों के साथ अपनी छेनी, हथौड़े, ग्राइंडर और ब्रश वगैरह की जुगलबंदी करते हैं । कितना आसान है रेडियो स्टेशन के वातानुकूलित स्टूडियो में बैठकर अपनी बात कह देना । अब जब दोबारा दफ्तर जाऊंगा तो माइक के सामने आते हुए इन तमाम लोगों के चेहरे याद आयेंगे और मैं इनके लिए भी अपने प्रोग्राम करूंगा । इस समय घर पर प्लास्टर ऑफ पेरिस का काम चल रहा है और बसंत और पवन किसी रेडियो चैनल पर सुन रहे हैं--मोहे मोहे तू रंग दे बसंती ।
9 comments:
भाई आपके ब्लाग का तो फ़ाण्ट ही नहीं दिखता है हमारे कप्यूटर पर.
वाह !
ये तो बिल्कुल ही निराला अनुभव है।
जब हमारे घर मे काम हो रहा था तो यहां भी सब लेबर अपने मोबाइल पर गाने सुनते रहते थे।
आज कुछ बदलाव किया है या कुछ गड़बड़ है क्यूंकि आधी पोस्ट सफ़ेद और बाकी की पोस्ट हरे से रंग मे दिख रही है ।
नहीं तो मेरे यहां तो ठीक दिख रही है । सागर भाई आपको तो ठीक दिख रही है ना ।
वाह, क्या खूब ? ऐसे टेन्शनमें भी इस तरह के अनुभवो को इतनी खूबीयों के साथ एक मालामें पिरो कर प्रस्तूत करना, इस तरह का कमाल तो सिर्फ़ आप ही कर सकते है ।
बागीचे का काम हो और माली चहिये तो हम भी आ जाते है रेडियो लेकर। :)
पंकज भाई मुंबई में बगीचे भी गैलेरी के गमलों में लटक रहे होते हैं । क्या इस आसमानी बगीचे में बोगनविलिया इत्यादि लगेगा तो आइये । रेडियो की व्यवस्था है यहां पर । चिंता की कोई बात नहीं है ।
जी यूनुस भाई,पोस्ट तो बिल्कुल सही दिख रही है।
एक ही साँस में पूरा पढ़ लिया और मजा बहुत आया। मैं अक्सर यहां देखता हूँ लोग ठेले पर अंगूर लेकर निकल रहे हैं पर उनका ध्यान ठेले में रखे रेडियो पर बज रहे गीतों पर ज्यादा है।
सचमुच रेडियो कमाल की चीज है जो अमीर-गरीब, पढ़े और अनपढ़ सभी लोगों का मनोरंजन करता है और उन सबका प्रिय भी है।
पोस्ट पढ़ कर मजा आ गया. इत्तेफाक देखिए आज सुबह से बहुत धीमा विविध भारती आ रहा था बाद में वो भी बंद हो गया. हमने चैक करने के लिए एफएम घुमाया तो स्थानीय एफएम पर रेनबो रंगोली में आल टाइम हिट गीत सुने. यह रेनबो चैनल पहली बार सुना. हिन्दी के हिट गीत और प्रस्तुति हिन्दी और तेलुगु मिश्रित भाषा में.
यसुदास के बारे में अधिक जानकारी दी. अंत में गीत बजाने से पहले इस तरह गुनगुनाया -
याद आ रहा है
तेरी याद आ रहा है
फिर अंत में कहा अपने दिलदार दोस्त सुनील दत्त को आज्ञा दीजिए.
अचरज है की आज का मेरा अनुभव और आपकी पोस्ट में बहुत समानता है.
annapurna
आपको अगर अपने कंप्यूटर में कोई काम कराना हो तो मुझे याद करें.. ब्लौग बुद्धि वाले विकास पर बिलकुल भरोसा ना करें.. मैं भी अपने रेडियो के साथ हाजिर हो जाऊंगा.. :D
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