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Thursday, January 31, 2008

श्री गोपाल शर्माजी, फिल्म तानसेन और सुरत

१८ जानवरी, २००८ के दिन अमर गायक स्व. श्री के. एल. सायगल साहब की पूण्य तिथी थी । उस दिन सुरत शहरमें पूरानी क्लासीक फिल्मों के शौकी़न क्लब विन्टेज वेटरन्स ने श्री सायगल साहब को श्रद्धांजली देने के लिये उनके और स्व. खुरशीदजी के मूख्य अभिनय वाली फिल्म तानसेन का वी. सी. डी. शॊ एक अच्जे हॊल में टी. वी. प्रोजेक्टरर की सहाय से बडे परदे पर रखा था । इस क्लबमें मेरे (सिर्फ़ मेरे ही नहीं, पर भारत और विदेशमें बसे कई भारतीय फिल्मों के शौकी़नो के भी) मित्र और मूकेश गीत कोष के तथा गुजराती फिल्मी गीत कोष (१९३२-१९९४) के सम्पादक और सायगल गीत कोष (जब दिल ही टूट गया) के श्री हरमंदिर सिन्ह -हमराझ- के साथ रहे सह-सम्पादक श्री हरीश रघुवंशी जी तथा हाल सुरत स्थित अभिनेता-निर्देषक श्री क्रिष्नकांतजी को इस क्लब के मान्द सबस्यता प्रदान की हुई है । इस दिन संयोग से ऐसा हुआ की उस दिन रेडियो श्री लंका पर १९५६ से १९६७ तक कार्यरत उद्दधोषक श्री गोपाल शर्माजी सुरत आये हुए थे, जिनके आजे की खबर उनके सम्बंधी को छोड़ कर सिर्फ़ मूझे थी, जो उन्होंने आने से पहेले मैंने दी थी । तब जब मैंने श्री हरीशजी को यह बताया तब यह बात उन्होंने क्लब के संचालकश्री रोहित भाई मारफतियाजी को कही ।

रेडियो श्री लंका से हर रोज़ पूरानी फिल्मो के गीतो के कार्यक्रममें अन्तिम गीत प्रस्तूत करने की प्रणाली श्री विजय किशोर दूबेजी ने बनाई थी, जो श्री गोपाल शर्माजी के रेडियो श्री लंका में जाने के सिर्फ़ एक महिना बाद भारत लोट कर एच एम. वी.में जूड़ गये थे । तब श्री शर्माजी के साथी उद्दघोषकने यह प्रणाली बंध करनी शुरू की थी, तब श्री गोपाल शर्माजीने वहा~ के निर्देषकको मिल कर इस स्थापित प्रणाली को हर हमेंश जारि रख़ने के लिये परिपत्र जारि करवाया था । और एक योजानुयोग यह भी था, कि श्री गोपाल शर्माजीने रेडियो श्री लंका के अपने पहेले ही दिन फिल्म तानसेन का गाना प्रस्तूत किया था, जो श्री दूबेजीने शिड्यूल किया था । पर वे श्री लंका में होने के कारण अभी तक यह फिल्म देख़ नहीं पाये थे ।
जब श्री हरीशजीने रोहितहजी से कहा तब श्री रोहितजीने तय किया की श्री गोपाल शर्माजी को इस शॊमें आमंत्रित किया जाय । जब मूज़से उनका मोबाईल नं मांगा गया और श्री शर्माजी का सम्पर्क करके ज्नको न्योता दिया गया तब उनके स्वीकार करने पर ज्नसे मेरे परिचय के कारण मूझे भी न्योता दिया गया । इस तरह शुरूआती श्री रोहितजी, श्री क्रिष्नकांतजी (जिन्होंने सायगल साहबको अपने साथ तो नहीं पर अपनी फिल्म की शूटिंग के दौरान उसी समय उसी स्टूडियोमें अगल फ्लोर पर कोई और फिल्म की शूटिंग के समय देखा था ।), श्री हरीशजी और श्री शर्माजी के स्मयानूरूप बोलो के बाद श्री शर्माजी और श्री क्रिष्नकांतजी के बाजू वाली बेठक पर साथ साथ बेठ कर यह फिल्म देखने का अवसर प्राप्त हुआ । हालाकि इस सम्पर्क के लिये मेरे नाम का रोहितजी द्वारा कोई जिक्र नहीं किया गया था ।

श्री गोपाल शर्माजी के हिन्दीमें दिये गये छोटे से प्रासंगीक व्यक्त्व्य का मिल सका इतना अंश तथा श्री हरीश रधुवंशीजी का गुजराती व्यक्तव्य तथा श्री रोहितजी के गुजरातीमें कार्यक्रम संचालन का अंश आप नीचे सुन सकते है ।

MIC-015 - Copy.mp3


पियुष महेता । (सुरत)

3 comments:

annapurna said...

जानकारी आपने बहुत अच्छी दी। आज भी सहगल साहेब के दिवाने है यह जानकर बहुत अच्छा लगा।

Harshad Jangla said...

Piyushbhai
It was a great pleasure to listen to the voice of Gopal Sharmaji. I enjoyed the whole recording. You have done a good work.
Thanx & rgds.
Harshad Jangla
Atlanta, USA
Jan 31 2008

Anonymous said...

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