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Wednesday, July 23, 2008

नहीं रहीं मशहूर कृति 'आलमपनाह' की लेखिका रफिया मंजूरूल अमीन


रफिया मंजूरूल अमीन 1930-2008

कल रेडियोनामा पर अन्‍नपूर्णा जी ने नाट्यतरंग का जिक्र किया और अनायास हमें याद आ गयीं रफिया मंजूरूल अमीन । अंदाज़न साल 1997-98 की बात रही होगी । विविध-भारती पर नाट्यतरंग के अंतर्गत कुछ नये सीरियलों का आगमन हुआ । इनमें से ज्‍यादातर साहित्यिक-कृतियों पर आधारित थे । तब आलमपनाह का प्रसारण भी हुआ था । बहुत मुमकिन है कि हैदराबाद की किसी ऐजेन्‍सी ने इसका निर्माण किया हो । इस रेडियो-धारावाहिक की शुरूआत एक व्‍यक्ति के गाने से होती थी । उनके गाने में शायद बोल नहीं थे । बस एक ही लफ्ज़ था--'हैदराबाद' । जिसे वो अलग-अलग अंदाज़ में गाते थे । 'आलमपनाह' को जिस दकनी हिंदी में पेश किया गया था, वो बेमिसाल था । उन दिनों मैं रेडियोसखी ममता सिंह के साथ फोन-इन कार्यक्रम 'आपके अनुरोध पर' करता था । जिसका उद्देश्‍य था विविध-भारती से प्रसारित 'स्‍पोकन वर्ड्स' यानी बोले हुए शब्‍दों के कार्यक्रमों के अंश श्रोताओं की फरमाईश पर दोबारा प्रसारित करना । यकीन मानिए आलमपनाह की लोकप्रियता का वो आलम था कि लगभग हर सप्‍ताह हमें आलमपनाह के किसी एपीसोड से एक पूरी घटना निकालकर प्रसारित करनी पड़ती थी । और लोगों का जी उसे सुनते हुए कभी नहीं भरता था ।

'आलमपनाह' के बारे में एक बात आपको और बतानी है । रेडियो पर इस कृति का रूपांतरण जितना लोकप्रिय हुआ उतना ही लोकप्रिय हुआ था इसका टी.वी. रूपांतरण । आपको टी.वी.सीरियल 'फरमान' याद है । दूरदर्शन के ज़माने में राजा बुंदेला अभिनीत इस सीरियल की लोकप्रियता वाक़ई देखने लायक़ थी । आज भी लोग इस धारावाहिक को याद करते हैं । दिलचस्‍प बात ये है कि ये उन सीरियलों में से था जिसमें आज के सीरियलों की तरह 'मेलोड्रामा' का फूहड़ छौंक नहीं था । इनमें एक ठोस कथा थी और वो आगे भी बढ़ती थी ।

रफिया आपा के बारे में कल खोजबीन कर रहा था कि इस ब्‍लॉग पर एक ख़बर ऐसी मिली जिससे जी धक रह गया, तीस जून 2008 को रफिया मंजूरूल अमीन का हैदराबाद में देहांत हो गया । वो अठहत्‍तर साल की थीं । रफिया मंजूरूल अमीन का पहला उपन्‍यास था 'सारे जहां का दर्द' । जो कश्‍मीर की पृष्‍ठभूमि पर लिखा गया था और इसे लखनऊ के नसीम अनहोन्‍वी के प्रकाशन ने छापा था । उनका दूसरा उपन्‍यास था--'ये रास्‍ते' और इसके बाद आया 'आलमपनाह' । रफिया आपा ने दो सौ से ज्‍यादा अफ़साने( कहानियां) लिखे हैं । चूंकि वो विज्ञान की छात्रा थीं इसलिए उन्‍होंने एक विज्ञान-पुस्‍तक लिखी--'साइंसी ज़ाविये' । जो नागपुर में उर्दू स्‍कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल हुई । रफिया आपा सन 1930 में पैदा हुई थीं और उन्‍होंने तीस जून को अपनी आखिरी सांस ली ।

मुझे याद है कि मुंबई से अपने शहर जबलपुर की यात्रा के दौरान खंडवा स्‍टेशन के बुक स्‍टॉल पर 'आलमपनाह' का हिंदी संस्‍करण दिख गया था । अपने संग्रह से इस पुस्‍तक को खोजकर निकाला तो पाया कि इस पर मेरे हस्‍ताक्षर के साथ 19 अप्रैल 1998 की तारीख़ पड़ी है । और स्‍थान भी खंडवा लिखा है । इसे हिंद पॉकेट बुक्‍स ने छापा है । अगर ये संस्‍करण बचा है या अगला संस्‍करण आया है तो आपको उपलब्‍ध हो सकता है । ISBN कोड है 81-216-0312-9 ।

रफिया आपा ने सिर्फ लिखा ही नहीं बल्कि चित्र और शिल्‍पकला में भी वो माहिर थीं ।
रेडियोनामा परिवार रफिया आपा को भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करता है ।

35 comments:

annapurna said...

आलमपनाह के जिस गीत का आप ज़िक्र कर रहे है उसे ख़ान अथर ने गाया। ख़ान अथर हैदराबाद के बहुत अच्छे गायक है ख़ासकर ग़ज़लें बहुत अच्छी गाते है। इस धारावाहिक के संगीत निर्देशन में भी उनका सहयोग रहा।

दूरदर्शन के फ़रमान धारावाहिक की शूटिंग अधिकतर हैदराबाद में हुई निर्देशक शायद लेख टंडन थे। कँवलजीत और विनीता मलिक के साथ हैदराबाद के नामी सितारे इसमें शामिल थे।

रफ़िया आपा और मंज़रूल साहब हैदराबाद की नामी शक्सियतों में से थे और हैदराबाद में आयोजित ख़ास प्रोग्रामों विशेषकर मुशायरों में ख़ासतौर पर नज़र आते थे।

रफ़िया आपा कुछ समय के लिए भोपाल गईं थीं और वहाँ दूरदर्शन ने उनका इंटरव्यू किया था जिसे बाद में हैदराबाद दूरदर्शन भेजा गया था जिसके प्रसारण के एनाउंसमेंट्स मैनें किए थे।

Yunus Khan said...

अन्‍नपूर्णा जी इसे हमारी बेख़बरी कहें या मीडिया की निस्‍संगता कि रफिया आपा के जाने की खबर हमें पूरे बाईस दिन बाद मिली ।

डॉ. अजीत कुमार said...

मरहूमा रफिया आपा को मेरी श्रद्धांजलि.
'आपके अनुरोध पर' तो मैं सुनता ही था, बहुत मुमकिन है कि आप की उस कृति को भी बार बार सूना हो पर अभी दिमाग में नहीं आ रहा.
अन्नपूर्णा जी को भी इस पूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद.

Anonymous said...

आपकी पोस्‍ट से ही रफियाजी के बारे में जानकारी मिल सकी । इसे पढने के बाद 'आलमपनाह' पढने की ललक हो रही है । मैं तो इसे तलाश करूंगा ही, आपको कोई सूचना मिले तो बताइएगा जरूर ।
अछूती जानकारी उपलब्‍ध कराने के लिए शुक्रिया ।

Anonymous said...

आपकी पोस्‍ट से ही रफियाजी के बारे में जानकारी मिल सकी । इसे पढने के बाद 'आलमपनाह' पढने की ललक हो रही है । मैं तो इसे तलाश करूंगा ही, आपको कोई सूचना मिले तो बताइएगा जरूर ।
अछूती जानकारी उपलब्‍ध करो के लिए शुक्रिया ।

Udan Tashtari said...

रफिया आपा को मेरी श्रद्धांजलि.

Jackie Chan said...

main alampanah novel ki talash kafi salo se kar raha hoo kya koi mujhe bata sakta hai ke yeh mujhe kaha se mil sakti hai

Unknown said...

Yunus ji aalampanah padhne ki lalak bahut dino se hai lekin bahut talash ke baad bhi nahi mil rahi hai. Kuch madad kijiye.

Vikas Sarthi said...

युनूस जी इस किताब को कई सालों से ढूंढ रहा हूं. कुछ मदद कीजिए. ISBN नंबर के बावजूद कहीं नहीं मिल पा रही. कुछ उपाय सुझाइए.

Anonymous said...

Dear author of the original blog... It seems it is now impossible to get a copy of Alampanah in Hindi. Would it be possible for you to scan your copy as a pdf? Or would you like to sell it?
Thanks!

Anonymous said...

please post a pdf file of hindi translation of the novel aalampanah

Unknown said...

I am desperatley looking for AlamPanah novel in hindi....kya meri madad kar sakte hain ki mujhe ye kitab mil jaye...Pdf format bhi chalega...Please.. Anxiously waiting for the reply

bharodiya said...

सर/मेडमजी
७ के दशक में विविधभारती पर आगाहश्र कश्मिरी का नाटक 'और बिदस्ता बहती रही' दोतीन बार सुना था । आपको आय होगा कि उस समय नाटकों का अखिल भारतिय कार्यक्रम होता था हर गुरुवार को, देश की सभी भाषाओं में । मैने हिन्दी या उर्दु में सुना था तो विविधभारती ही होगी हमारा प्रादेशिक स्टेशन नही । अब दोबारा सुनने का कोइ रास्ता है?

Unknown said...

Please please tell us where can we get a hindi version of Alampanah. I see that people have been asking on this blog for the last 10 years. I am still hopeful that I will get an answer.

Sonal said...

I too have been searching desperately since years for the hindi version on Alampanah.but to no avail.Hind pocket books is having its copyright.They vl not publish it anymore.

vibha said...

i also despereatly want to read Alampanah.If anybody is having pls make it pdf and send to me.

Nidhi said...

I also want hindi or english book of alampanah, if anyone is having it please contact me on my maid id: srivastavanidh@gmail.com.

Unknown said...

Madam kya muze alampanah ki hindi copy mil sakti hai

Unknown said...

Jald hi penguin books se iska new hindi addition Nikal Raha hai aapki tarah Mai b ise bahut samay se talash Rahi hu hope mera comment aap tak pahuch jaye

Unknown said...

Penguin books se Nikal Raha hai iska hindi edition isi month

Unknown said...

Penguin books se hindi edition Nikal Raha hai ISI month

Unknown said...

Penguin books iska hindi edition Nikal rahe hain jald hi

PRAKIRNA RANA said...

Dear All, PLEASE NOTE THAT THE BOOK ALAMPANAH IS NOW AVAILABLE IN HINDI IN AMAZON INDIA WEBSITE TO PURCHASE.GOOD LUCK

mystories myway said...

Yes.....i got Aalampanah books copy on amazon.....its hind pocket books publication.....its really amazing book.....everyone should read it....!

S Pathade said...

Yes.....i got Aalampanah books copy....from Amazon

Unknown said...

Aapko iska Hindi translation mila kya

Unknown said...

आलम पनाह के बारे में जानकर ऐसा लगा कि सालों की
प्रतीक्षा पूरी हुई। शुक्रिया , रेडियो नामा

Unknown said...

आप से एक गुज़ारिश है कि किसी भी तरह से आलमपनाह नाटक जो कि विविध भारती के नाट्यतरंग पोग्राम में पेश किया गया था उसे हम किस तरह से दोबारा सपन सकते हैं ़़़़कपया जरूर बतायें..

Cullenemily said...

Can I get a pdf of the hindi version of this novel. It would be so kind of anyone to share. Please.

Unknown said...

Naty tarng k purane dramas sunne ka tarika bataye agar ye net pr dal diya jaye to hamari barso ki adhuri hasrat puri ho jaye

Unknown said...

Amazon pe hai

Unknown said...

I also bs ab naty Tarang wala punh sun lu to meri aakhiri khwahish puri ho jaye

Unknown said...

Wiwidh bharti apni library ki anmol yade online available kyu nhi kara deta taki hm rasiko ki pyas bujhe

Unknown said...

Amazon pr available hai book hindi me

Unknown said...

Wiwidh bharti pr purane gane to punh sune ja sakte hai mgr natak ....bari samsya hai .Yunush ji please dhyan de

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