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Tuesday, July 15, 2008

सेहतनामा

बचपन से आकाशवाणी हैदराबाद केन्द्र से एक कार्यक्रम सुनते आए है - डाक्टर से मुलाक़ात। यह कार्यक्रम उर्दू मैगज़ीन प्रोग्राम नयरंग में प्रसारित किया जाता है। नयरंग रोज़ रात में साढे नौ बजे प्रसारित होता है। पहले आधा घण्टा फिर एक घण्टे का कर दिया गया इस कार्यक्रम को। हमेशा से ही महीने में एक या दो बार प्रसारित होता रहा सेहतनामा प्रोग्राम में डाक्टर से मुलाक़ात कार्यक्रम।

डाक्टर से मुलाक़ात के अलावा सेहतनामा में और कोई कार्यक्रम नहीं सुना गया। डाक्टर से मुलाक़ात कार्यक्रम दस से पन्द्रह मिनट का है जिसमें एलोपेथी, आयुर्वेदिक, यूनानी सभी विधाओं के डाक्टरों को बुलाया जाता है।

इस कार्यक्रम का एक ढाँचा है। मौसम के अनुसार विषय चुने जाते है। इस समय विषय रहेगा बरसात के मौसम में होने वाली आम बीमारियाँ या बच्चों की आम बीमारियाँ इस मौसम में या मलेरिया, वायरल बुख़ार आदि के बारे में। बातचीत का भी ढाँचा होता है जैसे बीमारी के लक्षण, इलाज जिसमें दवाई और घरेलू इलाज दोनों पर बात की जाती है फिर परहेज़ यानि क्या खाए और क्या न खाए फिर ख़ास बात यह कि यह बीमारी ही न हो इससे बचने के उपाय।

इस तरह हर छोटी-बड़ी बीमारी के बारे में जानकारी मिल जाती और बीमारी से बचने के उपाय और परहेज़ तथा घरेलू उपायों से हर बार डाक्टर के पास दौड़े बिना हम ख़ुद ही सेहत का ध्यान रख सकते है। जब मौसम की बीमारियों के बारे में बातचीत न हो तब अन्य बीमारियों के बारे में भी बातचीत की जाती इस तरह बहुत सी जानकारी इस छोटे पर नियमित प्रसारित कार्यक्रम में मिल जाती।

इसके बाद हमने दूसरा कार्यक्रम सुना विविध भारती पर प्रसारित होने वाला सेहतनामा जो एक घण्टे का कार्यक्रम है और हर सोमवार को तीन से चार बजे तक प्रसारित होता है। यह भी डाक्टर से मुलाक़ात कार्यक्रम है। इसमें किसी डाक्टर से बातचीत की जाती है। चूँकि कार्यक्रम एक घण्टे का है इसीलिए डाक्टर साहब की पसन्द के फ़िल्मी गीत भी बजते है। यह शायद विविध भारती का सेहत संबंधी पहला कार्यक्रम है। अगर इससे पहले भी कोई कार्यक्रम था तो इसकी जानकारी शायद पीयूष जी दे सके।

इस कार्यक्रम में कभी भी किसी भी रोग को लेकर बातचीत की जाती है जैसे कल रेणु (बंसल) जी ने बातचीत की डा जयंत आप्टे से जो मनोचिकित्सक है। इसका एक पहलू तो समझ में आया कि यह समय है युवा वर्ग के परीक्षा परिणामों और आगे की पढाई के लिए कोर्स चुनने का जिसमें हताशा निराशा स्वाभाविक है। पर कल एक बात पर मैनें ध्यान दिया कि मनोरोगों के बारे में एक ही बात बार-बार दोहराई जा रही थी कि फ़ोबिया हवाई यात्रा से होता है, लिफ़्ट से होता है, बच्चों को स्कूल जाने से होता है आदि लेकिन इसके निदान पर ज्यादा बात नहीं की गई।

कई बातें स्थायी और अस्थायी होती है उस पर भी चर्चा नहीं हुई जैसे बच्चा बचपन में स्कूल नहीं जाना चाहता पर उमर के साथ-साथ यह समस्या समाप्त हो जाती है। कुछ रोग स्थायी होते है जैसे अँधेरे से डरना इसके लिए कुछ घरेलू उपाय भी है जैसे कि हमने अपने जानने वालों में एक को देखा है उन्हें रोशनी में छत पर ले जाया जाता फिर लाइट बन्द कर दी जाती फिर साथ वाले उन्हें बताते कि देखो अभी तो हम यहाँ आए और यहाँ कुछ डरने वाली बात नहीं। ऐसे ही कई उपाय है। एक तनाव से ग्रसित महिला को हमने देखा उसे तनाव से कमज़ोरी भी बहुत हो गई थी। उसे बहुत अच्छा भोजन जिसमें मिठाई भी शामिल हो दिया जाता। नियमित इस भोजन से उसे अच्छी नींद आने लगती जिससे वह तनाव से दूर रहती। क्योंकि हर बार हम डाक्टर के पास तो नहीं दौड़ सकते और अधिक दवाइयाँ भी तो नहीं लेनी चाहिए।

एक कार्यक्रम में रेणु (बंसल) जी ने डा अनिश वी नावरे जी से दंत सुरक्षा पर बात की। एक कार्यक्रम में डा हेमा रानी से बात की गई बच्चों में ह्रदय रोग पर जो जन्मजात नहीं होते। यह बातचीत परिपूर्ण थी। इसमें विषाणु, रूमाटिक फ़ीवर, लक्षण, इलाज जिसमें दवा का नाम, पेनसिलिन के इंजेक्शन और उचित न होने पर दूसरे इंजेक्शन, इलाज का कोर्स सभी शामिल था।

अच्छा लगेगा कि मौसम या समय के अनुसार बातचीत हो और एक ढाँचे में हो।

4 comments:

Udan Tashtari said...

Yaad aa raha hai yah karyakram.

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्री अन्नपूर्णाजी,

सेहत पर नियमीत रूपसे हप्तावार कार्यक्रम यह सेहतनामा विविध भारती की केंद्रीय सेवा से शुरू होने वाला सर्व प्रथम है । हाँ, कोई अपना घर प्रकार के या अन्य कोई कार्य्रक्रममें छूट मूट जानकारी प्रासारित हुई हो सकती है । पर इस कार्यक्रममें समय समय पर किसतोंका पुनः प्रसारण होता रहता है । और ज्यादा तर एलोपथी के तजझ कहे जाने वाले लोगो को ही बुलाया जाता है, जब की एलोपथी दवाईयाँ भविष्य लिये नये ज्यादा तक़लीफ देने वाले रोगके बीज बोये बिना छोड़ती नहीं है ।

पियुष

Yunus Khan said...

सेहतनामा के बारे में कहूंगा कि केवल ऑथेन्टिक इलाज की जानकारी ही इसमें दी जाती है । ना किसी डॉक्‍टर का और ना ही किसी चिकित्‍सा प्रणाली का प्रचार इसमें शामिल होता है । सेहतनामा कार्यक्रम सन 1996 में पिटारा के साथ ही शुरू हुआ था ।
और आज तक अबाध रूप से जारी है ।

Anonymous said...

श्री युनुसजी,

मेरा विविध भारती सेवा ए प्रति कोई विषेष दोषारोपण का इरादा नहीं है । प्र मेरा कहना कहीं आज्ज स्थापित इस तराह की बनी हुई सिस्टम क्के लिये है, जिसका हम हिस्सा भी है, और शोसीत भी । आज फार्मस्यूटीक्ल कंपनीयाँ किस प्रकार संसोधको की ख़रीदारी करती है, वह अनजानी बात आज क्जे दिनोंमें नहीं है । एक रूपसे यह अनिवार्य अनिष्ट है ।
पिय़ुष महेता ।
सुरत

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