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Saturday, July 19, 2008

अपने बागबाँ को तलाशता एक फलदार वृक्ष....

रेडियो सालों से हमारा साथी रहा है और मुझे विश्वास है कि जबतक इस दुनिया में सुनने वाले रहेंगे तब तक रेडियो की लोकप्रियता कभी कम नहीं होगी।

रेडियो के इसी विस्तृत मंच को अनेक लोगों तक पहुंचाने के लिए, कुछ उनकी सुनने कुछ अपनी कहने के लिए हमारे दो संगीत प्रेमी और रेडियो से जुड़े चिट्ठाकारों, यूनुस खान और सागर चन्द नाहर ने शुरुआत की थी उस चिट्ठे की जिसका नाम आज चिट्ठाकारों के बीच जाना पहचाना है - "रेडियोनामा"। कहने की जरूरत नहीं कि इस एक चिट्ठे ने रेडियोप्रेमी चिट्ठाकारों के बीच कितनी गहरी पैठ बनाई है.
आज रेडियोनामा के सदस्यों में एक और जहाँ रेडियो ब्राडकास्टिंग से जुड़े आवाजों के धनी उदघोषक जैसे यूनुस जी, संजय पटेल जी, इरफान जी हैं तो दूसरी और पीयूष जी जैसे वरिष्ठ श्रोता जो न जाने रेडियो से जुड़े कितने महान हस्तियों से अब तक मिल चुके हैं। इन सबसे इतर लावण्या जी को हम कैसे भूल सकते हैं जिनकी तो मानो बहन ही है हमारी आपकी विविध भारती. आख़िर विविध भारती के जनक स्व. पं. नरेन्द्र शर्मा उनके भी तो जनक हैं. हिन्दी चिट्ठाकार जगत के जाने कितने जाने पहचाने नाम आज रेडियोनामा के सहयोगी सदस्यों के रूप में इससे जुड़े हैं. सबने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है इस रेडियोनामा को सींचने में, इसे पुष्पित पल्लवित करने में. तभी तो दो जनों द्वारा रोपा गया यह पौधा आज इतना बड़ा हो चुका कि आप इसके 301वें फल को भी चख चुके।


जी हाँ दोस्तों अब तक हमारे सदस्यों द्वारा 301 पोस्ट रेडियोनामा पर डाले जा चुके हैं अर्थात त्रिशतकीय साझेदारी हो चुकी है और यह अभी भी अनवरत जारी रहेगी बशर्ते.........

मैं लगभग दो महीने से ब्लॉग जगत से लगभग अलग थलग रहा। कारण बहुत से हैं, एक मुख्य कारण यह भी था कि मेरा कंप्यूटर ख़राब पड़ा है और अब तक सर्विस सेंटर से आया नहीं है. पर इन अलगाव के दिनों में भी मैं कुछ ब्लॉग पढ़ता रहा और कुछ पर अपनी टिप्पणियाँ भी भेजता रहा. चूंकि मैं भी रेडियोनामा से जुड़ा हूँ तो उसकी खोज ख़बर लेना भी जरूरी था. यहीं मैंने एक बात नोटिस की जो आप सभी लोगों तक पहुँचाना चाह रहा हूँ. रेडियोनामा के सदस्य इसे कृपया अन्यथा नहीं लेंगे।

रेडियोनामा के हमारे चिट्ठाकार साथी आज के हिन्दी चिट्ठाकार जगत के जाने माने नाम हैं। ब्लॉग लेखन के जिन जिन क्षेत्रों से वो जुड़े हुए हैं उसमें काफी अच्छा और नियमित लिख रहे हैं और भरपूर वाहवाही भी वो पा रहे हैं. भगवान करे अपने काम में वो और ऊँचाई पर पहुँचें. अपने अपने चिट्ठों में कभी कभार उन्होंने रेडियो का भी जिक्र किया, जिसे देखकर हमारी तकनीकी टीम ने उन्हें रेडियोनामा से जुड़ने का न्योता दिया और वो जुड़ भी गए. एक दो अच्छी पोस्ट्स उन्होंने रेडियोनामा पर लगा भी दीं. बहुत सारी टिप्पणियाँ भी पा ली. इसके बाद वो रुखसत हुए ये कह कर कि अब जब शुरुआत हो गयी है तो नियमित आता रहूँगा. वो दिन और आज का दिन है, रेडियोनामा उनके आने के हर राह पर टकटकी लगाए खड़ा है इस आस में कि चलो इतने व्यस्त समय में कभी तो मेरे लिए भी वो समय निकाल ही लेंगे।

इस ब्लॉग जगत में कहा यह जाता है कि टिप्पणियाँ पोस्ट लिखने वाले के लिए टॉनिक का काम करती हैं, यूँ तो कोई यह भी कहते हैं कि कर्म करते जाओ फल की चिंता क्यूँ करते हो। पर क्या ये जरूरी नहीं कि कम से कम हम जिस ब्लॉग से जुड़े हैं उसमें अपना योगदान नहीं कर रहे तो एक आध टिप्पणी ही सरका दें. कुछ नहीं तो समीर जी की तरह ही सही. कभी तो आपका ध्यान पोस्ट में चल रहे चिंतन की ओर जायेगा और कुछ सार्थक टिप्पणियाँ भी आपकी लेखनी से निकल ही जायेंगी।

रेडियोनामा को आगे बढ़ाने में जितना हाथ अन्नपूर्णा जी का और पीयूष जी का है, मैं नहीं समझता कि और किसी का है। जब भी अन्नपूर्णा जी नें सौवीं, डेढ़ सौवीं या दो सौवीं पोस्ट लिखी तो हमने सिर्फ़ यह कह कर किनारा कर लिया कि आपसे ही रेडियोनामा रौशन है या आप लिखती रहिये. अरे वो तो लिखती ही रहेंगी, संजय पटेल जी की यदि 300 वीं पोस्ट नहीं आयी होती तो हम फिर एक बार उन्हें उसी तरह बधाई दे रहे होते, आख़िर तीन सौ एकवीं पोस्ट उन्हीं की तो है. क्या हम उन के पोस्ट पर टिप्पणी भी नहीं हर सकते, क्या हमें उनकी हौसला आफजायी नहीं करनी चाहिए।

हमारे जितने भी सदस्य हैं सभी के अपने अलग ब्लॉग हैं, पर अन्नपूर्णा जी और पीयूष जी के लिए तो अपना रेडियोनामा ही सब कुछ है. क्या वे इतने के हकदार नहीं हैं कि आप दो लफ्ज वहाँ नहीं कह सकें?

6 comments:

डॉ .अनुराग said...

सोच ही रहा था की आप शायद जीवन की आप धापी में व्यस्त होगे .आज मालूम चला क्या वजह थी..radionaama का अपना एक सफर है....जो उम्मीद है जारी रहेगा.....

सागर नाहर said...

अजीत जी मैं क्षमाप्रार्थी हूँ, आप सबसे। व्यवसायिक मजबूरियों और समय की कमी के चलते ( यहाँ दिन में ४ घंटे लाईट बंद जो रहती है) रेडियोनामा पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा। मैं कोशिश करूंगा कि आगे से ऐसा ना हो।
पीयूष भाई और अन्नपूर्णाजी को विशेष धन्यवाद कि उनकी लगातार सक्रियता के चलते आज रेडियोनामा अपनी ३०० वीं पोस्ट को पार कर चुका है।
सभी रेडियो प्रेमी मित्रों को भी बधाई।

Anonymous said...

श्री अजितजी और श्री सागरजी,
आप दोनों का आज के इस पोस्ट के लिये और टिपणी के लिये शुक्रगुज़ार हूँ । पर य्ह स्वीकार भी करता हूँ, कि अन्नपूर्णाजी की कई बेहतरीन पोस्ट पर मैं भी कभी उस समय, समय अभाव की वजह से या क्भी अपनी उस विषय पर क्म होशियारी के कारण लिख्नना चूक गया या छोड दिया । श्री अन्नपूर्णाजी का फ़लक भोत ही विस्तृत रहा है । पर मैँनें जब जब लिख्रा है, कुछ: पूरानी पर नयी बात लाने की कोशिश कि है । श्री अजितजी का कहना बिलकूल सही है, कि कुछ: साथियोँ कि सिर्फ़ एक पोस्ट लिख़ कर बादमें रेडियोनामा पर पोस्ट लेख़क या टिपणी लेखक के रूपमें नज़र ही नहीँ आये, हलाकि वे अपने निज़ी ब्लोग्स पर पूरी तरह सक्रिय रहे है ।

पियुष महेता ।
सुरत-395001.

sanjay patel said...

अजीत भाई;
आपने ठीक फ़रमाया अन्नपूर्णाजी और आदरणीय पीयूष भाई ने जिस तन्मयता से रेडियोनामा को रवानी दी है वह ज़िन्दाबाद का नारा लगाने को विवश करती है. पूरी रेडियोनामा टीम अपने इन दो क़ाबिल साथियों के अवदान का ख़ैरमकदम करती है. एक कमेंट लिखने में अच्छा ख़ासा वक़्त चला जाता है तब सोचिये अनेकों पोस्ट्स को रचने कितना वक़्त देना पड़ता होगा.

यूनुस भाई और सागर भाई की वैचारिक बुनियाद पर रखा गया रेडियोनामा का अनुष्ठान फ़िज़ूल नहीं जाएगा डॉक्टर साहब.रेडियोनामा ने बहुत सारी चीज़ों का जिस तरह से दस्तावेज़ीकरण किया है दर असल वह सब तो प्रसार भारती और विविध भारती को करना चाहिये.मैं सच कहता हूँ एक बार रेडियोनामा पर नये ज़माने के एफ़.एम चैनल्स का ज़िक्र होना शुरू हो जाए;चिट्ठाकारों के नाम पारिश्रमिक के चैक पहुँचना शुरू हो जाएंगे.ये बात मज़ाक में कह गया हूँ लेकिन इसका मर्म ये है कि अन्नपूर्णा जी और पीयूष भाई एक जुनूनी की तरह विविध भारती/आकाशवाणी को प्रचारित करने के लिये अपना समय,श्रम और शब्द प्रदान कर रहे हैं...उसके लिये किसी प्रतिदान या पारिश्रमिक की अपेक्षा नहीं कर रहे सो हम आपकी प्रेम भरी डाँट से ही सही हम अपने इन दोनो सखाओं का अभिनंदन करते हैं और विश्वास दिलाते हैं कि इनके परिश्रम को अपना प्रेमपूर्ण प्रतिसाद अवश्य भेजते रहेंगे...

आइये सब मिल कर संकल्प लें कि इसी साल हम रेडियोनामा की हज़ार पोस्ट्स पूरी करेंगे.

Yunus Khan said...

बहुत सही मुद्दा है अजीत भाई ।
जाने अनजाने हमसे ये लापरवाही हुई है ।
हालांकि कोशिश ये रहती है कि टिप्‍पणियों और पोस्‍टों का सिलसिला कायम रखा जाए ।
आईये हम सभी नियमित लिखें और नियमित हौसला भी बढ़ाएं ।
रेडियोनामा को हमें पूरे रेडियो जगत पर केंद्रित करना है । केवल विविध भारती पर नहीं ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैँ आप -
अन्नपूर्णा जी और पीयूष भाई के योगदान को भला कोई कैसे नजराँदाज कर पायेगा ?
हाँ वे टीप्पणी की आशा या रास्ता देखे बिना , लिखते रहे हैँ -
ये उनकी शान है
हम उन्हेँ पढते अवश्य हैँ और सराहते भी हैँ -
डा. अजित जी ने ये पोस्ट लिखकर
एक सही बात पे
सभी का ध्यान खीँचा है
उनका धन्यवाद -
मैँने कई बार मेरी पोस्ट रखनी चाही है पर पता नहीँ क्यूँ ,
मुझे हमेशा तकलीफ आडे आयी है -
एरर = Error , ही आ जाता है -
-लावण्या

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