विविध भारती के संगीत के प्रतिष्ठित कार्यक्रम संगीत सरिता में हमने समय-समय पर कई श्रृंखलाएं सुनी। आज मैं अनुरोध करना चाहती हूँ एक ऐसी श्रृंखला की प्रस्तुति के लिए जिसमें विविध भारती की विभिन्न संकेत धुनों का संगीत विश्लेषण हो।
इस श्रृंखला में सभी धुनों को शामिल किया जाए जिसमें सबसे पुरानी आकाशवाणी की सिगनेचर ट्यून भी हो जो शुरू से आज तक लगातार बज रही है। इसके अलावा विविध भारती की सबसे पुरानी धुन भी हो जो हवामहल कार्यक्रम की है और वो तमाम संकेत धुनें हो जो नए पुराने लगभग सभी कार्यक्रमों के लिए बजती है जैसे -
वन्दनवार, संगीत सरिता, त्रिवेणी, सखि-सहेली, हैलो सहेली, पिटारा और पिटारा के अंतर्गत प्रसारित होने वाले कार्यक्रम, जयमाला, सलाम इंडिया, लोक संगीत
इन हर एक संकेत धुन में बजने वाले वाद्यों को बताइए और हो सके तो इनके राग भी बताइए। मुद्दा ये कि इन धुनों के संगीत का विश्लेषण कर हम श्रोताओं को समझाइए। मेरी समझ में विविध भारती की तरफ़ से श्रोताओं को स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर दिया जाने वाला यह नायाब तोहफ़ा होगा।
तो भई हम तो प्रतीक्षा कर रहे है कि विविध भारती की ओर से कब मिलेगा हमें तोहफ़ा… तोहफ़ा… तोहफ़ा… तोहफ़ा…
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Tuesday, July 1, 2008
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5 comments:
विविध भारती का मैं एक बड़ा प्रशंसक हूँ। आपने स्वर्ण जयंती के अवसर पर जो अपेक्षाएं रखी है वो तो उपयुक्त है ही पर आज के वातावरण को देखते हुए विविध भारती का युक्तियुक्तकरण किया जाना निहायत ही जरूरी हो गया है। चूँकि मै भोपाल में रहता हूँ और यहाँ पर जो प्रसारण होता है उसका स्तर अत्यन्त ही घटिया है। आज निजी चैनलों ने कम समय में जो लोकप्रियता हासिल की है वह गौर करने लायक है। प्रसारण में कसावट, नवीनतम प्रसारण तकनीको का उपयोग न करके विविध भारती अपने ही पैरो पर कुल्हाडी मार रहा है। निजी चैनलों के आने के बाद बाज़ार में ऑडियो संगीत सामग्री की बिक्री में भारी कमी परिलक्षित हुई है। धीरे धीरे इन चैनलों ने पुराने गीत भी प्रसारित करना शुरू कर दिए हैं जिससे एक बड़ा श्रोता वर्ग इन चैनलों की ओर रूख कर रहा है। तो विविध भारती के स्वर्ण जयंती पर इसका जीर्णोधार किया जाना परम आवश्यक है.
ठीक है ।
रेडियो पर गुंजाइश ना बने पर हमें थोड़ा समय दीजिये
ये काम अपने रेडियोनामा पर हमहुं कर देंगे जी ।
बस भूल जाते हैं तो तनिक याद दिलाईयेगा ।
और ये काम सिगनेचर टियून सुनवाए बिना कईसे होगा । है ना
आपकी आवाज में हमारी आवाज भी शामिल मानी जाये. अच्छी डिमांड है.
बहोत बढी़या प्रस्ताव ।
युनूसजी स्वीकार के लिये घन्यवाद ।
पियुष महेता ।
सुरत-३९५००१.
युनूस भइया बात तो आप ठीक करत हो पर ई भूलने की बात मति करो क्योंकि हम तो क्या सबही ई मानत है कि भूलना बुढापे की निशानी है। अब आप ही बुढऊ बनने के लिए तैयार है तो हमार क्या हम तो एक क्या हज़ार दफ़ा याद दिला देंगें।
आवाज़ मिलाने के लिए शुक्रिया समीर जी।
धन्यवाद पीयूष जी सचिन्द्र जी !
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।