मेरे पिछले चिट्ठे से उठी ग़लतफ़हमी मुझे पीयूष जी की टिप्पणी में नज़र आई इसीलिए मै यह चिट्ठा लिख रही हूँ। अच्छा रहेगा अगर इस विषय पर बहस हो जाए।
पीयूष जी, क्या आप मुझे बता सकेगें कि सेहतनामा, वन्दन्वार और संगीत सरिता जैसे कार्यक्रम किस दृष्टि से मनोरंजक है ? सिर्फ़ इसमें गाने बजते है इसीलिए। मुझे नहीं लगता है कि सिर्फ़ गाने शामिल होने से ही कार्यक्रम मनोरंजन की श्रेणी में आ जाते है।
दूसरी बात मनोरंजन के साथ शिक्षा या शिक्षा के साथ मनोरंजन ? यूथ एक्सप्रेस, सखि-सहेली, आज के मेहमान जैसे कार्यक्रम आप ध्यान से सुनिए इनमें काम की बातें बताई जाती है, जानकारी दी जाती है जिसके साथ मनोरंजन के लिए गीत होते है। सखि-सहेली में तो गानों की फ़रमाइश के साथ पत्र में काम की बातें, सलाह मशवरा भी होता है साथ में बजते है फ़रमाइशी गीत। अगर मनोरंजन मुख्य है तो इन कार्यक्रमों को त्रिवेणी की तरह बनाया जा सकता है। कोई एक विषय ले लीजिए और उस पर अलग-अलग तरह से जानकारी दीजिए और सुनवाइए गीत जबकि यूथ एक्सप्रेस में तो वार्ताएं भी प्रसारित होती है।
अब तो सखि-सहेली में भी साहित्य को गंभीर रूप से शामिल करना शुरू कर दिया है। दो-चार दिन पहले मैनें पहली बार सुना सखि-सहेली में जयशंकर प्रसाद की कहानी पुरस्कार के बारे में कुछ-कुछ बताया गया और शेष सखियों को पत्र लिख कर बताने के लिए कहा गया, तो शुरू हो गई न एक और नई बात इस कार्यक्रम में।
इसी तरह से शुरूवात होती जाती है और कार्यक्रम का स्वरूप बदलता जाता है। यही तो हो रहा है पिछले कई सालों से कई कार्यक्रमों में और साथ-साथ कई नए कार्यक्रम भी शुरू हो रहे और ऐसे ही परिवर्तनों के साथ कार्यक्रम का स्वरूप ऐसा बदलता है कि जिसमें मनोरंजन कम महत्वपूर्ण और दूसरी बातें अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। इसीलिए तो मैनें लिखा कि अब विविध भारती पूरी तरह से मनोरंजन सेवा नहीं रही तो अब भी यह क्यों कहा जा रहा है कि विविध भारती संपूर्ण मनोरंजन सेवा है।
शायद मेरा पिछला चिट्ठा ठीक से समझा नहीं गया या हो सकता है कि मेरे लिखने का ढंग ही कुछ ऐसा रहा कि ठीक से समझ में नहीं आया हो। ख़ैर… मुद्दा यह कि कार्यक्रमों का स्वरूप बहुत बदला है और यह बदलाव बहुत अच्छा है फिर अब क्यों इसे केवल मनोरंजन चैनल माना जाए। जब प्रस्तुतकर्ता इतनी मेहनत करते है कि मनोरंजन के अलावा श्रोताओं को बहुत सी जानकारी घर बैठे मिले तो फिर इसे केवल मनोरंजन चैनल क्यों माने ?
स्वर्ण जयन्ती के इस अवसर पर विविध भारती के वर्तमान स्वरूप को देखते हुए इसे सिर्फ़ मनोरंजन की सीमा में नहीं रखा जा सकता। विविध भारती जिस तरह से आगे बढ रही है उस तरह से कोई उचित नाम इस सेवा का होना ही चाहिए, ऐसा मेरा मानना है। अगर अब भी कोई शक हो तो इस पर बहस की जा सकती है…
सबसे नए तीन पन्ने :
Friday, July 11, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।