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Wednesday, July 30, 2008

बीतता जुलाई महीना, फिल्मों की बरसात और सावन के बादलो......

सावन का आगमन हो चुका है और जुलाई महीना जाने को है। इसी आते और जाते के बीच में आज आकाशवाणी पटना के FM विभाग अर्थात विविध भारती एकांश ने एक रोचक सा चित्रपट संगीत प्रस्तुत किया जिसे मैंने सोचा कि आपसे भी साझा करूँ.
 
हालांकि विविध भारती एकांश तो विविध भारती के ही कार्यक्रमों को रिले करता है, पर इन्हीं के बीच में कुछ अपने कार्यक्रमों का पुट भी बड़े अच्छे से संयोजित करता है. पहली सभा के विविध भारती के कार्यक्रम तो सुबह दस बजकर पाँच मिनट पर समाप्त हो जाते हैं पर आकाशवाणी पटना का विविध भारती एकांश अपनी सभा को जारी रखता है और साढ़े दस बजे तक चित्रपट संगीत, साढ़े ग्यारह बजे तक फरमाइशी गानों का कार्यक्रम गीत बहार, पुनः बारह बजे तक लोकगीतों का कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए बारह बजे मुख्य प्रसारण से जुड़ जाता है. साढ़े पाँच बजे पहली सभा का समापन हो जाता है. दूसरी सभा की शुरुआत हो जाती है शाम सवा छः बजे से सुगम संगीत के कार्यक्रम संगीत सुधा के साथ. साढ़े छः बजे से फरमाइशी गानों के कार्यक्रम आप ही के गीत सात बजे तक चलते हैं और फ़िर से हम मुख्य प्रसारण से जुड़ जाते हैं. और ये सभा रात ग्यारह बज कर दस मिनट पर मुख्य प्रसारण के साथ ही बंद हो जाती है.
 
आज जिस कार्यक्रम की चर्चा मैं करने जा रहा हूँ वो है  27 जुलाई सवेरे दस बज कर दस मिनट पर प्रस्तुत चित्रपट संगीत. हर दिन प्रस्तुतकर्ता उदघोषक एक नए विषय पर अपने विचार रखते हैं और गाने सुनवाते हैं. आजकल सावन का महीना है तो ज्यादातर गाने बारिश या सावन से जुड़े होते हैं.
 
बहरहाल, जब उदघोषक श्री उपेन्द्र कुमार जी ने यह कहते हुए शुरुआत की -- " यूं तो दोस्तों जुलाई का ये महीना बरसात का महीना होता है पर क्या आपको पता है कि भारत में फिल्मों की बरसात भी जुलाई महीने से शुरू हुई थी... -- तो मन अनायास ही प्रोग्राम पर केंद्रित हो गया. चलिए उनके द्वारा रखी गयी जानकारी मैं यहाँ रखता हूँ.
 
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वो 7 जुलाई 1896 का दिन था जब पहली फ़िल्म भारत में प्रदर्शित की गयी. इसे लुमिएर बंधुओं ने प्रदर्शित किया था. वो फिल्में क्या थीं बस कुछ ऐसे थे कि कोई बच्चा बगीचे में पानी देने वाली पाइप को पकड़ कर खेल रहा है, वह किसी आते जाते को भिगो दे रहा है....... कुछ इसी तरह की.
उसी दिन यानी 7 जुलाई 1896 को ही किसी भी फ़िल्म का विज्ञापन अखबार में छपा था.
वो तो कुछ अंग्रेजों की बात थी, पर यदि हम स्वदेशी तौर पर बनी फ़िल्म की बात करें तो , भारत में बनी पहली फ़िल्म थी दादा साहब फाल्के द्वारा बनाई गयी फ़िल्म " राजा हरिश्चंद्र" जो ३ मई १९१२ को प्रदर्शित की गई थी.

भारत में सवाक फिल्मों की शुरूआत हुई १९३१ में जब आर्देशिर इरानी ने १४ मार्च १९३१ को अपनी पहली बोलती फ़िल्म प्रदर्शित की " आलमआरा".
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लगभग 20 मिनट के इस पूरे कार्यक्रम को प्रस्तुतकर्ता ने बड़े ही रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया. पुराने गीतों से लेकर आज तक की फिल्मों के गाने भी सुनवाए गए. अभी चूँकि सावन का महीना चल रहा है सो कार्यक्रम का आगाज़ ही किया गया था सावन के एक अत्यन्त पुराने पर मोहक गीत से.
सावन के इस गीत को फ़िल्म " रतन" से लिया गया है. गायक कलाकार है जोहराबाई अम्बालेवाली और करण दीवान. शब्दकार हैं डी एन मधोक तथा संगीत से संवारा है नौशाद साहब ने. यूं तो इस गाने कों मैं किसी म्यूजिक प्लेयर पर रखना चाह रहा था पर उपलब्ध नहीं होने के कारण मैं इसे इसके विडियो कों आपके लिए लेकर आया हूँ.  तो आनंद उठाएं सावन के इस सुरीले गीत का. 

                                        
                                          Sawan Ke Badalo Unse Ye Ja Kaho

8 comments:

annapurna said...

बहुत अच्छी पोस्ट !
यह अन्दाज़ा हो गया कि पटना केन्द्र से अच्छे कार्यक्रम होते है।

Anonymous said...

sawan ka mahina barsaat ke gaane yahi to radio ki khubi hai , sara din saath bhi hai fir bhi kam mein badha nahi.mein bhi apne chandigarh station ke programmes ke baare mein likhti par shayad members ke hi post display hote hai . aapka chithha achha laga par song nahi chal raha
manjot bhullar

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया, आभार इस प्रस्तुति का.

सागर नाहर said...

मंजोत आपके लेख का इंतजार है, आप अपने लेख इन ईमेल पतों पर भेज सकती हैं..उन्हें आपके नाम से प्रकाशित किया जायेगा।
दो तीन लेख हो जाने के बाद आप खुद अपने नाम से प्रकाशित कर सकेंगी।
radionama et gmail.com
sagarchand.nahar et gmail.com

सागर नाहर said...

बहुत बढ़िया पोस्ट.. सावन के बादलों वाला गाना भी बहुत बढ़िया है। मेरी महफिल में ओ वर्षा के पहले बादल.. जिसे जगमोहनजी ने अपने मधुर स्वर में गाया है, आप भी सुन सकते हैं।
ओ वर्षा के पहले बादल मेरा संदेसा ले जाना
********
हमारे यहाँ एक बड़ी समस्या है। स्थानीय चैनल वाले अपने विविध भारती के समय पर प्रादेशिक भाषाओं के कार्यक्रम सुनाते हैं और इस वजह से कई बढ़िया कार्यक्रम हम सुन नहीं पाते।

Yunus Khan said...

अजीत जी ।
यही एक प्रस्‍तुतकर्ता की कामयाबी है कि वो किस तरह अपनी बातें इस तरह सूत्र में पिरोये कि सब कुछ बिल्‍कुल स्‍ट्रीमलाईन लगे । लगे कि सारी कडि़यां जुड़ी हैं । सामग्री की विविधता के बावजूद गाने और जानकारियां आपस में जुड़ी नज़र आएं । मज़ा आया आपके इस राइट-अप में ।
सागर भाई आपने अपने जिस पिटारे से विविध भारती सुनना शुरू किया है उसके बाद आपको भी इसी तरह की सामग्री देना शुरू कर देना चाहिए ।

Manish Kumar said...

shukriya is peshkash ke liye..
Agli baar patna jaaonga to in karyakramon par nazar rahwgi.

डॉ. अजीत कुमार said...

रेडियोनामा पर आने वाले सारे सुधी पाठकों को हमारी ओर से धन्यवाद कि आप आये और अपने विचार रखे.

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