विविध भारती पर छोरे-छोरियों के लिए एक छुक-छुक चलती है जिसका एक अंग्रेज़ी नाम है - यूथ एक्सप्रेस जिसे चलाते है अपने युनूस भाई। अरे नहीं… वो वाले भाई नहीं, अच्छा ठीक है हम युनूस जी लिखते है।
यह गाड़ी हर रविवार को घण्टे भर के लिए चलाई जाती है, दोपहर बाद तीन से चार बजे तक। एक हमने देखी थी कुछ दिन पहले वो… आज़ादी एक्सप्रेस जो रेल विभाग वाले चलाते है। हर राज्य के मुख्य शहरों के स्टेशनों पर दो-चार दिन खड़ा कर देते है।
यहाँ सिकन्द्राबाद में भी तीन दिन के लिए खड़ी थी सो हमने देख ली। गाड़ी क्या थी… बस एक ऐसी दुनिया थी जहाँ हमने देखा तस्वीरों में स्वाधीनता संग्राम। अब इसी गाड़ी कि प्रेरणा से विविध भारती की छुक-छुक चल रही है… ऐसा कुछ तो हम ठीक से नहीं जानते, पर इतना ज़रूर कहेगें कि दोनों गाड़ियों से हमारा ज्ञान बढता है।
युनूस जी तो मस्त ड्राइवर है। नए-पुराने मस्त गाने गाते हुए गड्डी दौड़ाते है। इसके एक डिब्बे में होती है पेन्ट्री यानि खाने-पीने का ताज़ा सामान जिसमें दुनिया की ताजी-ताजी बातें होती है। यूरो फुटबाल टूर्नामेंट हुआ और इसकी पूरी जानकारी थाली में परोस दी गई।
एक डिब्बा इसमें ऐसा है जिसमें दो लोग बैठ कर गुटर्गु ! धत्त तेरे की… गुफ़्तगु करते है जिनमें से एक गाड़ी वाले होते है और दूसरे सज्जन बाहर से आते है। बाहर से आकर गाड़ी में बैठने वालों में युवाओं के पसन्दीदा युवा गायक कुणाल गांजावाला भी है जिनसे ममता (सिंह) जी ने बातचीत की। मीडिया विश्लेषक विनोद जी भी है जिनसे कमल (शर्मा) जी ने बेबाक बातचीत की। मीडिया में बाज़ारवाद से लेकर युवाओं में साहित्य पढने की आदत तक कई बातें शामिल रही।
कमल (शर्मा) जी एक और बातचीत बहुत ही अच्छी और उपयोगी रही, गिरधारीलाल जी से की गई बातचीत जिसमें उनके द्वारा संग्रह किए गए विभिन्न कलाकारों का पहला गीत सुनवाया गया। लता, रफ़ी, नौशाद, कई नई बातें सामने आई जैसे मुकेश का पहली नज़र फ़िल्म के लिए गाया गीत पहला गीत माना जाता था जिस पर कुन्दनलाल सहगल की गायकी की छाप नज़र आती थी पर यहाँ बताया गया कि मुकेश ने सबसे पहले 1941 में निर्दोश फ़िल्म के लिए गीत गाया था।
इस गाड़ी का एक और डिब्बा बड़ा ही अच्छा है - किताबों की दुनिया जिसमें पिछली बार बच्चन जी की मधुशाला थी। इससे पहले डा अमरकांत दुबे ने डा रामचन्द्र शुक्ल पर अच्छी जानकारी दी और उनके द्वारा किए गए हिन्दी साहित्य के वर्गीकरण को बहुत अच्छी तरह समझाया। एक बार इसमें प्रेमचंद के उपन्यास प्रतिज्ञा के बारे में किसी का भेजा आलेख भी पढ कर सुनाया गया।
इसमें युवाओं के लिए विभिन्न पाठ्यक्रमों के बारे में भी जानकारी दी जाती है जिससे करिअर बनाने में सहायता मिलती है।
कुल मिला कर भई हमें तो यह छुक-छुक भली लगती है।
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Tuesday, July 8, 2008
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2 comments:
लीजिये शुक्रिया अदा करते हैं हम ।
हौसला अफ़ज़ाई का ।
यह छुक-छुक तो सभी को भली लगती है. क्या बोलता है युनुस भाई :)
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।