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Thursday, July 17, 2008

भेंट वार्ता

आकाशवाणी के कार्यक्रमों का चिरपरिचित नाम है भेंटवार्ता। अगर मैं ये कहूँ तो ग़लत नहीं होगा भेंटवार्ता शब्द आकाशवाणी और दूरदर्शन की ही देन है। कितना सही शब्द है भेंट वार्ता - जब आप किसी से भेंट करते है या मिलते है तो बातचीत करते है या वार्तालाप करते है तो यही तो हुई भेंटवार्ता।

स्थानीय दोनों केन्द्र आकाशवाणी और दूरदर्शन से अब भी ऐसे कार्यक्रमों को अधिकतर भेंटवार्ता ही कहा जाता है पर कहीं-कहीं कुछ अलग नाम भी है जैसे एक मुलाक़ात, इनसे मिलिए, हमारे मेहमान, आज के मेहमान, कुछ पल … के साथ आदि।

विविध भारती पर ऐसे दो कार्यक्रम प्रसारित होते है। एक कार्यक्रम छोटा सा है, पन्द्रह मिनट का - इनसे मिलिए जिसे मैं बहुत सालों से सुनती आ रही हूँ और दूसरा ऐसा ही कार्यक्रम है जो एक घण्टे का है - आज के मेहमान जो कुछ ही सालों से शुरू हुआ है।

इनसे मिलिए शीर्षक बहुत सालों से चलन में है इसीलिए अच्छा ही लगता है वैसे ध्यान दें तो शीर्षक अटपटा सा लगता है ऐसे जैसे कह रहे हो ये जो बैठे है इनसे मिलिए या इनसे मिल ही लीजिए बैठे है जो यहाँ ख़ैर… आज के मेहमान शीर्षक से लगता है रोज़ कुछ न कुछ कार्यक्रम किया जाना है आज के कार्यक्रम में मेहमान को बुला लेना है लो बस आ गए मेहमान, आज यह है कल कोई और मेहमान होगा, बस… मेहमान के लिए प्यार, दुलार, स्नेह कुछ नहीं बस ड्यूटी ही ड्यूटी है ख़ैर…

वैसे कार्यक्रम दोनों अच्छे है। बहुत ही रोचक और विविधता लिए है। जिस भी क्षेत्र का व्यक्ति हो उस क्षेत्र के बारे में उनके काम के बारे में उनके जीवन के बारे में अधिकांश जानकारी मिल जाती है। इनसे मिलिए पन्द्रह मिनट का होता है पर समय की कमी नहीं खलती क्योंकि पूरी बातचीत पन्द्रह मिनट में सिमट जाती है। आज के मेहमान कार्यक्रम पिटारा के अंतर्गत होने से एक घण्टे का होता है जिससे बातचीत में थोड़ा विस्तार आ जाता है और बीच-बीच में मेहमान की पसन्द के गाने भी बजते है।

एक बात ज़रूर खलती है दोनों कार्यक्रम बुधवार को ही प्रसारित होते है। तीन से चार आज के मेहमान में एक व्यक्ति से मिलने के साढे तीन घण्टे के बाद ही जयमाला के बाद प्रसारित होता है इनसे मिलिए कार्यक्रम जिससे कार्यक्रमों की विविधता कहें या मूड कहे बदलता नहीं है। इनसे मिलिए तो बरसो से बुधवार को ही सुनते है आज के मेहमान रोज़ प्रसारित होने वाले पिटारा में किसी और दिन कर दीजिए, सिर्फ़ कार्यक्रमों की अदला-बदली ही तो करनी है।

इनसे मिलिए में फ़ौजियों से लेकर लेखक, कलाकार लगभग सभी क्षेत्रों के विशिष्ट व्यक्तियों से मुलाक़ात हो जाती है उसी तरह आज के मेहमान में भी विभिन्न क्षेत्रों से मेहमान आते है जैसे गीतकार और संवाद लेखक अशोक मिश्रा से निम्मी मिश्रा की बातचीत। धारावाहिकों के शुरूवाती दौर के संवाद लेखक जब केवल देश में दूरदर्शन ही था और वो भी श्याम बेनेगल जैसे निर्देशक का धारावाहिक - भारत एक खोज के संवाद लेखक से मिलना अच्छा लगा जो अब भी कलात्मक फ़िल्मों से जुड़े है जैसे फ़िल्म नसीम जिसमें कैफ़ी आज़मी ने भी अभिनय किया था। बड़ी ही अच्छी थी फ़िल्म भी, धारावाहिक भी और अच्छी रही बातचीत इस लेखक से जो गीतकार भी है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय एनएसडी की यादों को बाँटना सुखद रहा।

एक अलग ही क्षेत्र लेकर आए कमल (शर्मा) जी महिला कबड्डी खिलाड़ी भारती उज्जवल के साथ और बातचीत में समेट लिया सभी पहलुओं को जिसमें स्कूल के दिनों से लेकर राष्ट्रीय पहचान हासिल करने तक सब कुछ था।

एक अलग ही पहलु को छुआ युनूस जी ने भारतीय तकनीकि संस्थान प्रमुख से बातचीत में जिसमें देश-विदेश के तकनीकी पहलु अपनी उपलब्धियों और ख़ामियों के साथ सिमट आए। आईआईटी के पुराने चित्र भी प्रस्तुत हुए और साफ़ हुआ नए पुराने का अंतर और विकास यात्रा, यही तो फ़ायदा होता है एक ऐसे प्रमुख से बात करने का जो अपने विद्यार्थी काल की भी बात करता है।

कल की कमल (शर्मा) जी की बातचीत बहुत ही रोचक थी। राजस्थानी संस्कृति की बहुत सी बातें जानी जैसे तब तक बेटा कुँवर जी ही रहेगा जब तक परिवार में पिताजी विराजमान हो। महारानी के पैर का क़िस्सा तो बहुत ही रोचक रहा। अख़बार में महारानी की फ़ोटो छपी जिसमें महारानी के पैर दिखने लगे फिर क्या था सारे के सारे अख़बार विमान से निकलवा कर खरीद लिए गए। यह गरिमा रही महिलाओं की और आज पैर तो छोड़िए बहुत कुछ दिखता और दिखाया जाता है।

कुछ मायनो में यह बातचीत मेरे लिए बहुत ही विशेष रही। धन्यवाद कमल जी का कि उन्होनें बातचीत को इस मोड़ तक समेटा कि उसमें यह गीत शामिल हो गया -

जिया हो जिया हो जिया कुछ बोल दो
अरे ओ दिल का परदा खोल दो
जब प्यार किसी से होता है

इस गीत से जुड़ी बातचीत मेरे लिए बहुत ख़ास रही।

2 comments:

डॉ. अजीत कुमार said...

अन्नपूर्णा जी,
मैं तो सर्वप्रथम आपका शुक्रिया अदा करता हूँ कि आप विविध भारती से प्रसारित सारे कार्यक्रमों की इतनी विस्तृत व्याख्या करती हैं. इससे हमें भी ऊर्जा मिलती है. इस भेंटवार्ता की बात हो , सेहत नामा की बात हो या फ़िर वो मुद्दा मनोरंजन का. आज मुझे बहुत कुछ कहना है पर इसके लिए टिप्पणी की जगह नहीं,एक पोस्ट की दरकार है.
आपकी रेडियोनामा को जीवित रखने के लिए बधाई.

annapurna said...

धन्यवाद अजीत जी !

प्रतीक्षा है आपकी पोस्ट की…

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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

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