आआऊऊईई एफ़एम रेनबोओओओओ....
सुबह सुबह ट्रांजिस्ट ऑन किया. बढ़िया भजन आ रहा था. भक्ति रस में मन तल्लीन था. भजन समाप्त होते ही ट्रांजिस्टर चीख़ा –
आआऊऊईई एआईआर एफ़एम रेनबोओओओओ....
मैंने ट्रांजिस्टर को जांचा. उसके बैंड दिखाने वाले सूचक को जांचा. हां, मैंने एफएम रेनबो ही लगाया था, रेडियो मिर्ची नहीं. मगर फिर भी यह मुझे बता रहा था कि आप सुन रहे हैं –
आआऊऊईई एआईआर एफ़एम रेनबोओओओओ....
बुड़बक समझ रखा है क्या? हमने रेनबो ही लगाया है भाई. चलो इस संदेश को इग्नोर कर दिया. दूसरा भजन आया. तीसरा आया. चौथा आते ही फिर से ट्रांजिस्टर ने बताया –
आआऊऊईई एआईआर एफ़एम रेनबोओओओओ....
यार, मेरा ट्रांजिस्टर उन्नत किस्म का है. इसमें फ्रिक्वेंसी ड्रिफ़्ट नहीं होती. जो स्टेशन, जो बैण्ड मैं लगाता हूँ, ये वो ही बजाता है. फिर फिजूल क्यों बताते हो? पर जब एक घंटे के अंतराल में इसने मुझे पांचवी बार बताया कि मैंने -
आआऊऊईई एआईआर एफ़एम रेनबोओओओओ....
लगाया हुआ है, तो मेरा पारा चढ़ गया. मैंने रेडियो के बैण्ड परिवर्तक (रिमोट) को उमेठा, और रेडियो मिर्ची लगाया.
कोई फंकी रीमिक्स चल रहा था. उसके खत्म होते ही ट्रांजिस्टर चिल्लाया –
मिर्ची सुनने वाले आलवेज खुश!
मुझे आश्चर्य हुआ कि कैसे मेरे ट्रांजिस्टर को पता चला कि मैंने मिर्ची लगाया है और मैं आलवेज खुश होने की नाकाम कोशिश कर रहा हूँ.
दूसरा रीमिक्स आया, तीसरा आया. उसके बाद फिर मेरे ट्रांजिस्टर ने बताया –
मिर्ची सुनने वाले आलवेज खुश!
मैंने कन्फर्म किया कि मैंने रेडियो मिर्ची ही लगाया हुआ है. हाँ, रेडियो मिर्ची ही लगा हुआ था. फिर वो क्यूं इसे बता रहा था पता नहीं.
घंटा भर सुनने के बाद मुझे महसूस हुआ कि मैं जितना खुश नहीं था, उससे ज्यादा बढ़ा चढ़ाकर बोल रहा था –
मिर्ची सुनने वाले आलवेज खुश!
मैंने बड़े दुःखी मन से रेडियो का बैण्ड बदला. इस दफा लगा विविध भारती.
सुबह-सुबह पुराने – भूले बिसरे गीत चल रहे थे.
गाना बज रहा था – अफसाना लिख रही हूँ दिले बेकरार का...
गाना खत्म होते ही ट्रांजिस्टर चिल्लाया –
आप सुन रहे हैं – विविध भारती.
ये यूनुस मियाँ की आवाज़ लग रही थी. मुझे आश्चर्य हुआ कि मैंने विविध भारती ही रेडियो पर ट्यून किया हुआ है, तो उसमें उर्दू सर्विस तो बजेगी नहीं. फिर यूनुस मियाँ मुझे क्यों ये बता रहे हैं कि आप सुन रहे हैं विविध भारती?
विविध भारती बैण्ड पर भी कोई हर पंद्रह मिनट, आधा घंटा में मुझे याद दिलाता रहा कि मैं विविध भारती सुन रहा हूँ. यदि मुझे बारंबार, नियमित अंतराल से याद नहीं दिलाया जाता तो शायद मैं समझता कि किशोर कुमार का वो गाना जो अभी मैंने सुना वो शायद किसी और चैनल में सुना होऊंगा, और क्रेडिट उसे दे दूंगा.
कोई आधा-दर्जन बार जब मैंने सुना –
आप सुन रहे हैं विविध भारती
तो फिर मेरा दिमाग झन्ना गया. मैंने ट्रांजिस्टर का कान उमेठा और उसे उर्दू सर्विस पर लगा दिया.
पहली ही आवाज़ मेरे कान में पड़ी –
ये आल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस है.
हाँ, भई, है. है. ऊर्दू सर्विस ही है. मैंने वो ही बैण्ड ट्यून किया है. मत बताओ. मेरा हाथ चला. अब मैंने लगाया 93.4 माई एफ़एम.
कोई जानी पहचानी धुन आ रही थी. थोड़ा सा रुका तो धुन के बाद अनाउंसर चिल्लाया –
माई दुनिया, 93.4 माई एफ़एम...
हुँह. सभी मुझे बेवकूफ समझते हैं. क्या मुझे नहीं पता कि मैंने क्या स्टेशन, कौन सा बैण्ड लगाया है? और हर पंद्रह मिनट में बताते हैं कि क्या स्टेशन सुन रहा हूँ. क्या मुझे डिमेंशिया का मरीज समझते हैं? जो मैं हर दस मिनट में भूल जाता हूं कि मैं कौन सा स्टेशन सुन रहा हूँ, कौन सा स्टेशन मैंने ट्यून किया है?
मैंने ट्रांजिस्टर का स्विच बन्द कर दिया. पर दिमाग में शान्ति नहीं थी. बेतरतीब आवाजें मन में बेतरतीब गूंज रही थीं –
आआऊऊईई एआईआर एफ़एम रेनबोओओओओ....
माई दुनिया, 93.4 माई एफ़एम..
ये आल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस है.
आप सुन रहे हैं – विविध भारती.
मिर्ची सुनने वाले आलवेज खुश!
मुझे किसी मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए. क्या खयाल है आपका?
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7 comments:
हा हा हा।
यह है रेडियोनामा और आप पढ़ थे रवि रतलामी को :D
अरे रवि जी गुस्सा मत होइए!
अब ठीक ही तो हैँ आपको तो पता है आपने कौनसा स्टेशन लगाया है, मार्केटिंग के जमाने में मोहल्ले को भी तो पता चलना चाहिए न कि आप क्या सुनते हैं।
वैसे भी लगातार बजते एक जैसे गानों के बीच ये एक राहत सा ही लग सकता है।
वैसे जो मजा उर्दू सर्विस और विविध भारती में है वो मजा आआआआईईईईऊऊऊऊ वाले चैनलों में कहाँ?
जब से रेडियो के प्राईवेट चैनल आये हैं तब से रेडियो का मजा बढ़ा कम किरकिरा ज्यादा हो गया है।
मेरे साथ तो ऐसी बातें होती हैं कि पूछिए मत।
अपनी यादों के सिलसिले में उन्हें मैं बताऊंगा।
हंसी मज़ाक एक ओर लेकिन मैं समझता हूँ कि इस तरह थोड़ी देर बाद घोषणा होने का लाभ उस व्यक्ति के लिए है जिसको नहीं पता किस फ्रीक्वेन्सी पर कौन सा स्टेशन आएगा। जैसे पिछले वर्ष जब जयपुर गया था तो वहाँ रेडियो सिटी उस फ्रीक्वेन्सी पर नहीं आता जिस पर दिल्ली में आता है, तो गाड़ी के रेडियो पर फ्रीक्वेन्सी बदल-२ कर देख रहा था और इसी तरह पहचान पाया था कि कब रेडियो सिटी लगा किस फ्रीक्वेन्सी पर! :)
सही मुद्दा उठाया है रवि भाई ।
मज़ा आ गया ।
चलिए हम कहे देते हैं सब रेडियोवालों से के वो कम से कम अपना ढोल पीटना तो बंद कर दें ।
पर हमें लगता नहीं कि कोई हमारी बात मानेगा ।
आप मनोचिकित्सक के पास मत जाईये
रेडियो मार्केटिंग चिकित्सकों के भरोसे चल रहा है ।
:)
आपकी पोस्ट पढ़ने वाले भी खुश।
रवि जी वा बहोट बढ़िया.....
अभिजीत गव्हानकर
उमरखेड
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।