स्टुडियो मेँ चिँतन की मुद्रा मेँ पँडित नरेन्द्र शर्मा
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जब हम छोटे थे तब पता नहीँ था कि मेरे पापा जो हमेँ इतना प्यार करते थे वे एक असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्ति हैँ जिन्होँने अपने कीर्तिमान अपने आप
बनाये और वही पापा जी, हमेँ अपनी नरम हथेलियोँ से , ताली बजाकर गीत सुनाते ....
और हमारे पापा ,उनकी ही कविता गाते हुए हमेँ नृत्य करता देखकर मुस्कुराते थे
"राधा नाचे कृष्ण नाचे,
नाचे गोपी जन !
मन मेरा बन गया सखी री सुँदर वृँदावन .
.कान्हा की नन्ही ऊँगली पर नाचे गोवर्धन "
ये गीत पापा जी जब गाया करते थे तब शायद मेरी ऊम्र ४ या ५ बरस की रही होगी....
.और यही पापा जी आकाशवाणी , विविध भारती के भीष्म पितामह बने कार्यक्रमोँ की रुपरेखा तैयार करने मेँ स्टुडियो मेँ १८, १९ घँटोँ से ज्यादह, अपने साथीयोँ के साथ काम करते थे.१९५६ से १९७१ तक वे आकाशवाणी से सँलग्न रहे.
जब पापा लिख रहे होते तब अम्मा हमेँ डाँटती कि " शोर मत मचाओ " अपना होम वर्क करो " तो हमारी हिम्मत न होती कि पापा जी के सामने हम कभी रेडियो चला देते ..हाँ अम्मा ,पापा जी बाहर जाते तब हम बच्चे, बीनाका गीतमाला लगाते और खुब खुश होते ये गाना सुनके,
" तीन कनस्तर पीट पीट कर गला फाड कर चिल्लाना,
यार मेरे मत बुरा मान ये गाना है ना बजाना है ...तीन कनस्तर .." ;-)
जैसा रेडियोनामा का लोगो है बिलकुल वैसा रेडियो हमारे घर पे भी था .घर के फर्श की टाइल्ज़ कारँग एकदम टमाटर के लाल रँग जैसा चटख था जिसपे सुफेद और काले छीँटे थे वैसा रँग आजतक किसी घर की जमीँ का मैँने देखा नहीँ और जितना शोख लाल रँग उस घर की जमीन का था वैसा ही प्यार भरा माहौल भी कायम रहता था और हमारे पापा अम्म्मा के घर के दरवाज़े सभी के लिये दिन रात, खुले रहते थे. बडी बडी नामी हस्तियाँ वहाँ मेहमान बन कर पधारा करतीँ थीँ.मशहूर फिल्म जगत के कलाकार दिलीप कुमार साहब ने एक बेशकिमती पर्शीयन कारपेट तोहफे मेँ दी थी वही दीवाने खास यानी कि ड्राइंग रूम की शोभा थी जिसके साथ विशुध्ध भारतीय ढँग की बैठक सजाया करती थीँ मेरी अम्मा !
क्रिकेट Selector & C.C.I President दादा श्री राज सिँह जी डुँगरपुर भी आते और मुझे हथेली जितना ट्राँज़िस्टर मेरी साल गिरह पे दिया था और कहा था,
" Talents ! You must listen to my Expert comments during the Test match " ;-)
( वे मुझे टेलेन्ट्ज़ ही बुलाते हैँ और उलाहना देते हैँ कि मुझमेँ गुण तो हैँ परँतु मैँ उनका सद्`उपयोग नहीँ किया करती :-)
भारत सरकार ने ४ अन्य तकनीकी विशेषज्ञ व ईँजीनीयरोँ के साथ पापा जी को जापान और अमरीका की यात्रा पे भेजा था टेलीवीज़न के बारे मेँ जानकारी हासिल करने .
.तो जापनी रेडियोवालोँ ने एक सुँदर ट्राँज़ीस्टर पापा जी को गीफ्ट मेँ दिया था जिसे मेरी बडी बहन ( अब स्व. वासवी मोदी ) कोलेज मेँ आयी तब तक सुना करती थी पर मेरी आदत है कि मैँ जब भी रेडियो सुनूँ तब और कोई काम नहीँ करती !
..मेरा पूरा ध्यान गीत के बोल, सँगीत, उतार चढाव पे केन्द्रित रहता है और इसी कारण मुझे लाखोँ गीतोँ के बोल याद हैँ ..
पापा जी के घर का रहन सहन बहुत ही सादा हुआ करता था .
.और शाँति इतनी कि आप मान नहीँ सकते कि बँबई जैसे भीडभाड भरे शहर के एक घर मेँ आप बैठे हैँ .
.ये मेरी अम्मा की मेहनत व प्रेम का दर्पण था जो मँदिर जैसे पवित्र वातावरण को अगरबत्ती और बाग के सुगँधित फूलोँ से महकाये रखा करता था.और इसी घर से, भारत के सुप्रसिध्ध रेडियो प्रोग्राम आकाशवाणी के सभी कार्यक्रमोँ के नाम , उनकी रुपरेखा व अन्य सारी बारिकियोँ को अँजाम देनेवाले पण्डित नरेन्द्र शर्मा,रेडियो के जनक या भीष्म पितामह की यादेँ जुडीँ हुईँ हैँ मेरे लिये .
.जो आज भी वैसी ही फूलोँ की तरह महकतीँ हुईँ , तरोताज़ा हैँ ...
-- लावण्या
बनाये और वही पापा जी, हमेँ अपनी नरम हथेलियोँ से , ताली बजाकर गीत सुनाते ....
और हमारे पापा ,उनकी ही कविता गाते हुए हमेँ नृत्य करता देखकर मुस्कुराते थे
"राधा नाचे कृष्ण नाचे,
नाचे गोपी जन !
मन मेरा बन गया सखी री सुँदर वृँदावन .
.कान्हा की नन्ही ऊँगली पर नाचे गोवर्धन "
ये गीत पापा जी जब गाया करते थे तब शायद मेरी ऊम्र ४ या ५ बरस की रही होगी....
.और यही पापा जी आकाशवाणी , विविध भारती के भीष्म पितामह बने कार्यक्रमोँ की रुपरेखा तैयार करने मेँ स्टुडियो मेँ १८, १९ घँटोँ से ज्यादह, अपने साथीयोँ के साथ काम करते थे.१९५६ से १९७१ तक वे आकाशवाणी से सँलग्न रहे.
जब पापा लिख रहे होते तब अम्मा हमेँ डाँटती कि " शोर मत मचाओ " अपना होम वर्क करो " तो हमारी हिम्मत न होती कि पापा जी के सामने हम कभी रेडियो चला देते ..हाँ अम्मा ,पापा जी बाहर जाते तब हम बच्चे, बीनाका गीतमाला लगाते और खुब खुश होते ये गाना सुनके,
" तीन कनस्तर पीट पीट कर गला फाड कर चिल्लाना,
यार मेरे मत बुरा मान ये गाना है ना बजाना है ...तीन कनस्तर .." ;-)
जैसा रेडियोनामा का लोगो है बिलकुल वैसा रेडियो हमारे घर पे भी था .घर के फर्श की टाइल्ज़ कारँग एकदम टमाटर के लाल रँग जैसा चटख था जिसपे सुफेद और काले छीँटे थे वैसा रँग आजतक किसी घर की जमीँ का मैँने देखा नहीँ और जितना शोख लाल रँग उस घर की जमीन का था वैसा ही प्यार भरा माहौल भी कायम रहता था और हमारे पापा अम्म्मा के घर के दरवाज़े सभी के लिये दिन रात, खुले रहते थे. बडी बडी नामी हस्तियाँ वहाँ मेहमान बन कर पधारा करतीँ थीँ.मशहूर फिल्म जगत के कलाकार दिलीप कुमार साहब ने एक बेशकिमती पर्शीयन कारपेट तोहफे मेँ दी थी वही दीवाने खास यानी कि ड्राइंग रूम की शोभा थी जिसके साथ विशुध्ध भारतीय ढँग की बैठक सजाया करती थीँ मेरी अम्मा !
क्रिकेट Selector & C.C.I President दादा श्री राज सिँह जी डुँगरपुर भी आते और मुझे हथेली जितना ट्राँज़िस्टर मेरी साल गिरह पे दिया था और कहा था,
" Talents ! You must listen to my Expert comments during the Test match " ;-)
( वे मुझे टेलेन्ट्ज़ ही बुलाते हैँ और उलाहना देते हैँ कि मुझमेँ गुण तो हैँ परँतु मैँ उनका सद्`उपयोग नहीँ किया करती :-)
भारत सरकार ने ४ अन्य तकनीकी विशेषज्ञ व ईँजीनीयरोँ के साथ पापा जी को जापान और अमरीका की यात्रा पे भेजा था टेलीवीज़न के बारे मेँ जानकारी हासिल करने .
.तो जापनी रेडियोवालोँ ने एक सुँदर ट्राँज़ीस्टर पापा जी को गीफ्ट मेँ दिया था जिसे मेरी बडी बहन ( अब स्व. वासवी मोदी ) कोलेज मेँ आयी तब तक सुना करती थी पर मेरी आदत है कि मैँ जब भी रेडियो सुनूँ तब और कोई काम नहीँ करती !
..मेरा पूरा ध्यान गीत के बोल, सँगीत, उतार चढाव पे केन्द्रित रहता है और इसी कारण मुझे लाखोँ गीतोँ के बोल याद हैँ ..
पापा जी के घर का रहन सहन बहुत ही सादा हुआ करता था .
.और शाँति इतनी कि आप मान नहीँ सकते कि बँबई जैसे भीडभाड भरे शहर के एक घर मेँ आप बैठे हैँ .
.ये मेरी अम्मा की मेहनत व प्रेम का दर्पण था जो मँदिर जैसे पवित्र वातावरण को अगरबत्ती और बाग के सुगँधित फूलोँ से महकाये रखा करता था.और इसी घर से, भारत के सुप्रसिध्ध रेडियो प्रोग्राम आकाशवाणी के सभी कार्यक्रमोँ के नाम , उनकी रुपरेखा व अन्य सारी बारिकियोँ को अँजाम देनेवाले पण्डित नरेन्द्र शर्मा,रेडियो के जनक या भीष्म पितामह की यादेँ जुडीँ हुईँ हैँ मेरे लिये .
.जो आज भी वैसी ही फूलोँ की तरह महकतीँ हुईँ , तरोताज़ा हैँ ...
-- लावण्या
12 comments:
अनूप भार्गव
आज पहली बार देखा ये ब्लौग । आप के संस्मरण पढ कर बहुत आनन्द आया । 'आकाशवाणी के भीष्म पितामह' बिल्कुल सही नाम दिया है आप नें अपने पापा को । 'सरकारी सीमितताओं के बावज़ूद 'आकाशवाणी' के कार्यक्रमों का अपना एक आकर्षण था जो हमें रेडियो से चिपके रहने के लिये मज़बूर कर देता था । आप के और और रोचक सम्स्मरणों का इन्तज़ार रहेगा ।
अनूप शुक्ला
बहुत अच्छा लगा यह संस्मरण पढ़कर। आगे भी संस्मरणों का इंतजार रहेगा- टेलेंट्स जी। :)
एक एक कर सबकी यादें बाहर निकल रही है और हमें पढ़ने में आनन्द आ रहा है।
आपके पास तो रेडियो से जुड़ी बातों का खजाना होगा, हमें भी बाँटते रहियेगा।
:)
गीतों की महफिल
॥दस्तक॥
yunus
लावण्या जी
रेडियोनामा का मक़सद इन्हीं यादों को सबके साथ बांटना ही तो है ।
सभी को जानकर अच्छा लगेगा कि आपके पिताजी का लगाया गया पौधा पेड़ बन चुका है ।
तीन अक्तूबर को विविध भारती को इक्यावन वर्ष पूरे हो जायेंगे ।
अभी तो आपसे बहुत कुछ जानना है ।
और कई कहानियां सामने लानी हैं
चिट्ठाजगत पर पंजीकृत 1000 वें चिट्ठे को बधाई !!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
बस यही यादें ही तो हैं जो साथ निभाती चलती हैं. बहुत ही सुन्दर लगा यह संस्मरण. और लाईये आगे भी.
अच्छा लगा!!
शुक्रिया इस संस्मरण को हमारे साथ बांटने के लिए!!
अनूप भाई,आपका बहुत बहुत आभार !
स स्नेह,
-- लावण्या
आपका स्नेह ही तो है ये पापाजी के लिये आनूप "सुकुल जी " ,
आपका भी बहुत बहुत आभार !
स स्नेह,
-- लावण्या
नाहर भाई,
हम तो छोटे थे ,
जितनी बातेँ मुझे पता हैँ वे सुनी हुईँ हैँ या फिर
"शेष~ अशेष " पुस्तक के सँस्मरण हैँ
वो अवश्य यहाँ प्रस्तुत करती रहुँगी
स स्नेह,
-- लावण्या
युनूस भाई,
३ अक्तूबर को ये विशाल पेडरुपी आकाशवाणी का क्या खास कार्यक्रम रहेगा ?
कोई खास योजना बनाई गई है क्या ?
अगर हाँ ....तो अवश्य बतायेँ ........
स स्नेह,
-- लावण्या
बहुत अच्छा लगा संस्मरण पढ़कर और आपने इसका शीर्षक बहुत अच्छा दिया है।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।