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Sunday, September 30, 2007

पंडित नरेंद्र शर्मा की अनमोल रचना थी 'युग की संध्‍या'

पंडित नरेंद्र शर्मा की सुपुत्री लावण्‍या जी का रेडियोनामा पर बड़ा स्‍नेह रहा है । पच्‍चीस सितंबर 2007 को लावण्‍या जी ने रेडियोनामा पर रेडियो के प्रसार गीत --नाच मयूरा नाच पर बड़े स्‍नेहसिक्‍त पोस्‍ट लिखी थी । प्रसार गीत के बारे में थोड़ी बातें और कहनी हैं । विविध भारती पर पहला गीत यही बजाया गया था । 'नाच मयूरा' नामक इस गीत को मन्‍ना डे ने गाया था और संगीतबद्ध किया था अनिल विश्‍वास ने । इसी पोस्‍ट में लावण्‍या जी ने जिक्र किया था पंडित जी के गीत 'युग की संध्‍या' का । जिसे लता मंगेशकर ने रिकॉर्ड तो किया लेकिन उस गीत की रिकॉर्डिंग कहीं खो गयी या कुछ तकनीकी खराबी की वजह से हमेशा के लिए मिट गयी । इस पोस्‍ट को आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं । आज लावण्‍या जी अपने संग्रह से खोजकर पंडित नरेंद्र शर्मा के उसी गीत की इबारत प्रस्‍तुत कर रही हैं ।
एक उत्‍कृष्‍ट रचना, अनमोल धरोहर । हम आभारी हैं कि उन्‍होंने रेडियोनामा के मंच से इसे आप तक पहुंचाने का सौभाग्‍य हमें दिया । लावण्‍या जी का स्‍नेह रेडियोनामा पर बना रहे । यही कामना है ।






युग की सँध्या
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युग की सँध्या कृषक वधू सी किस का पँथ निहार रही ?
उलझी हुई समस्याओँ की बिखरी लटेँ सँवार रही ...
युग की सँध्या कृषक वधू सी ....

धूलि धूसरित, अस्त ~ व्यस्त वस्त्रोँ की,
शोभा मन मोहे, माथे पर रक्ताभ चँद्रमा की सुहाग बिँदिया सोहे,

उचक उचक, ऊँची कोटी का नया सिँगार उतार रही
उलझी हुई समस्याओँ की बिखरी लटेँ सँवार रही
युग की सँध्या कृषक वधू सी किस का पँथ निहार रही ?

रँभा रहा है बछडा, बाहर के आँगन मेँ,
गूँज रही अनुगूँज, दुख की, युग की सँध्या के मन मेँ,
जँगल से आती, सुमँगला धेनू, सुर पुकार रही ..
उलझी हुई समस्याओँ की बिखरी लटेँ सँवार रही
युग की सँध्या कृषक वधू सी किस का पँथ निहार रही ?

जाने कब आयेगा मालिक, मनोभूमि का हलवाहा ?
कब आयेगा युग प्रभात ? जिसको सँध्या ने चाहा ?
सूनी छाया, पथ पर सँध्या, लोचन तारक बाल रही ...
उलझी हुई समस्याओँ की बिखरी लटेँ सँवार रही
युग की सँध्या कृषक वधू सी किस का पँथ निहार रही ?

[ Geet Rachna :: Late Pandit Narendra Sharma :
Compiled By : Lavanya ]

4 comments:

annapurna said...

वाह ! क्या बात है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Shukriya Annapurna ji --
sa sneh,
Lavanya

सागर नाहर said...

बहुत सुन्दर कविता

Snehasis Chatterjee said...

What is the year of broadcasting of that Song : YUG KI SANDHYA sung by Lataji?

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