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Monday, September 24, 2007

ढ़ोलक के गीत

ढोलक के गीत यानि वो गीत जो ढोलक पर गाए जाते है। आप शायद समझ गए होंगें मैं बात कर रही हूं लोक गीतों की।

जिस तरह राजस्थान के लोक गीत है, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि क्षेत्रों के लोक गीत है उसी तरह हैदराबाद के लोक गीत है। दूसरे प्रदेशों के लोक गीतों के भी कुछ नाम है ऐसे ही हैदराबाद के इन लोक गीतों को ढोलक के गीत कहा जाता है।

कौन सी ढोलक ? आमतौर पर प्रयोग में आने वाली दो साज़ों की ढोलक नहीं है ये। अण्डाकार ढोलक का ये एक ही साज़ है जिसके दोनों गोलाकार किनारों पर दोनों हाथों से इसे बजाया जाता है और डोरी से गले में भी लटकाया जाता है।

सिर्फ़ इसी साज़ पर ये गीत गाए जाते है। इन गीतों की ख़ास बात ये है कि केवल महिलाएं ही इन गीतों को गाती है। जी हां ! पुरूष ये गीत नहीं गाते। महिलाओं के इस समूह में छोटी लड़की से लेकर उम्रदराज महिलाएं भी शामिल है।

दूसरी ख़ास बात इन गीतों की ये है कि यह सिर्फ़ शादी-ब्याह के गीत ही है जबकि आमतौर पर लोक गीतों में सभी तरह के गीत शामिल होते है जैसे त्यौहारों, मुंडन, बेटे का जन्म आदि मौको पर गाए जाने वाले गीत।

और भी ख़ास बात ये है कि यह सिर्फ़ छेड़-छाड़ वाले गीत ही है। वर पक्ष (दूल्हें वाले) और वधू पक्ष (दुल्हन वाले) एक दूसरे को छेड़ते है।

गीत की शुरूवात होती है ढोलक की थाप से फिर सभी की तालियों के सुर शुरू होते है धीमे-धीमे शुरू हो कर तेज़ होने लगते है। फिर शुरू होता है गीत एक आवाज़ में, दो आवाज़ों में, कोरस में।

साठ और सत्तर के दशक में जिसे हम पचास के दशक के अंत से भी शुरू कर सकते है और लगभग अस्सी के दशक तक आकाशवाणी के हैदराबाद केन्द्र से सप्ताह में कम से कम एक बार इन गीतों ने धूम मचाई। बहुत ही ख़ास बात ये है कि कलाकार केवल दो ही रहे - एक श्रीमती अर्जुमन नज़ीर और दूसरी श्रीमती कनीज़ फ़ातिमा। दोनों का अपना-अपना समूह था।

एक गीत यूं है जो बहुत ही लोकप्रिय रहा -

चार बैंगन हरे-हरे फूफी का चूहा ग़ज़ब किया
दुल्हन आपा की चोटी काट लिया रे
उनकी अम्मा बोले ये क्या हुआ
उनकी सास बोले अच्छा हुआ

चार बैंगन हरे-हरे फूफी का चूहा ग़ज़ब किया
दुल्हन आपा का कान काट लिया रे
उनकी भैना बोले ये क्या हुआ
उनकी नन्दा बोले अच्छा हुआ


भैना - बहनें
नन्दा - ननदें
दुल्हन आपा - नई ब्याह्ता


यहां एक बात हम बता दें कि हैदराबाद में सब्जियों में बैंगन और फलों में केले का बहुत उपयोग होता है। उसी का यहां प्रयोग हुआ है। हरे बैंगन जो कच्चे होते है चूहे की तरह लगते है।

अन्य लोक गीतों की तरह ढोलक के गीतों के बारे में भी कहा जाता है कि ये गीत किसने लिखे, कब लिखे कोई नही जानता। सालों से हैदराबाद की तहज़ीब का एक हिस्सा है। शहर में होने वाली शादियों में ये गीत ज़रूर गूंजा करते। तभी तो रेडियो का भी ये एक महत्व्पूर्ण हिस्सा रहे।

उर्दू कार्यक्रमों में रात साढे नौ बजे से होने वाले नयरंग कार्यक्रम में हर मंगलवार को ये गीत बजते। उसके अलावा एकाध दिन और बजते। आलम ये था कि जिन घरों में उम्रदराज महिलाएं होती जैसे दादी, ताई वहां विविध भारती से हवा महल सुनने के बाद तुरन्त ट्यून बदली जाती और नयरंग कार्यक्रमों का ब्यौरा सुना जाता। अगर ढोलक के गीत शामिल न हो तो रेडियो तुरंत बंद हो जाता।

हालात ये कि रात में लगभग 10 बजे लगभग सुनसान सड़कों और गलियों में घरों की खिड़कियों से छन कर गूंजा करते ये गीत। एक और गीत प्रस्तुत है -

अय्यो मा दूल्हे के नाखतरे लोगा

दूल्हा आता बोलको मै मोटर मंगाई
अय्यो मा बन्डियों पर चढने के लोगा
अय्यो मा दूल्हे के नाखतरे लोगा

दूल्हा आता बोलको मैं चादर मंगाई
अय्यो मा बोरियो पर लोटने के लोगा

अय्यो मा दूल्हे के नाखतरे लोगा

बन्डियां - बैलगाड़ियां

माना जाता है कि कुछ गीत ऐसे भी है जिन्हें बाद में लिखा गाया या कुछ बोलों में फेर-बदल भी किया गया। एक ऐसा ही गीत है जिसमें ये कहा गया है कि बारात शहर में आई है। दूल्हें की मां चारमीनार के आस-पास की रौनक में खो गई है -

समधन खो गई मा चारमीनार की सड़क पे
समधन खो गई मा

इधर देखी उधर देखी लाड़ बज़ार की गलियां
हाय समधन मिल गई मा चूड़ी वाले की दुकान पे

समधन खो गई मा चारमीनार की सड़क पे
समधन खो गई मा

इधर देखी उधर देखी चारकमान की गलियां
हाय समधन मिल गई मा फूल वाले की दुकान पे

अस्सी के दशक से इन गीतों का बजना रेडियो से कम होता गया और अब तो शायद ही कभी बजते है। इसके पीछे बड़ी बात ये है कि नई पीढी की लड़कियों ने इन गीतों को सीखा ही नहीं। सिखाने की कोशिश ज़रूर की गई।

क्या ही अच्छा हो अगर इन गीतों को आकाशवाणी हैदराबाद के संग्रहालय से निकाल कर इंटरनेट पर रखा जाएं ताकि गुम होती कला को रेडियोनामा आवाज़ दे सकें ।


6 comments:

Anonymous said...

आपके सुझाव पर युनुस भाई या इरफ़ान भाई ध्यान दें।

Sagar Chand Nahar said...

अन्नपूर्णाजी
हैदराबादी भाषा का मजा ही कुछ अलग है, :) यह भाषा हम रोज ही सुनते हैं पर आपके द्वारा दी गई जानकारी के बाद उन गानों को सुनने की उत्सुकता बढ़ सी गई है। अगर आपके पास एकाद गानें हो तो हमें भी सुनाईये।

annapurna said...

गीतों को रिकार्ड करने की बात कभी ध्यान में नही आई। जितने गीत मैनें लिखे है वे भी आधे-अधूरे ही है। पूरे गीत तो मैं भी भूल रही हूं इसीलिए तो मैंने सहेजने की बात कही है।

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा लोकगीतों का संसार-ढोलक गीत.

mamta said...

भाई वाह ये तो बिल्कुल ही नयी बात पता चली। यूनुस भाई जरुर इन गीतों को खोज निकालेंगे।

Yunus Khan said...

अब हमारी बात मानिए और कैसे भी करके ये गीत रेडियोनामा पर सुनाईये ।
कोई तकनीकी दिक्‍कत हो तो हमारे सागर भाई हैं वहां हैदराबाद में ।
बस आपको गीत जुटाने ही हैं ।
हम इंतज़ार कर रहे हैं ।

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