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Wednesday, September 19, 2007

खो गया झुमरी तिलैया का सरगम

अगर आप रेडियो के श्रोता रहे हैं तो फरमाइशी गीतों के कार्यक्रमों में ‘झुमरी तिलैया’ का नाम अवश्‍य सुना होगा। 1950 से 1980 तक रेडियो से प्रसारित होने वाले फिल्‍मी गीतों के फरमाइशी कार्यक्रमों में शायद ही किसी गीत को सुनने के लिए झुमरी तिलैया के श्रोताओं ने फरमाइश न भेजी हो। हाल यह था कि हर किसी गीत के सुनने वाले श्रोताओं में झुमरी तिलैया का नाम कम से कम एक बार तो जरुर प्रसारित किया जाता था। इस तरह झुमरी तिलैया का नाम दिन में बार बार सुनने में आता था जिसके कारण रेडियो श्रोताओं में झुमरी तिलैया का नाम प्रसिद्ध हो गया था।

सही अर्थों में कहा जाए तो झुमरी तिलैया को विश्‍वविख्‍यात बनाने का श्रेय वहां के स्‍थानीय रेडियो श्रोताओं को जाता है जिनमें रामेश्‍वर प्रसाद वर्णवाल, गंगालाल मगधिया, कुलदीप सिंह आकाश, राजेंद्र प्रसाद, जगन्‍नाथ साहू, धर्मेंद्र कुमार जैन, पवन कुमार अग्रवाल, लखन साहू और हरेकृष्‍ण सिंह प्रेमी के नाम मुख्‍य हैं। मुंबई से प्रकाशित धर्मयुग में वर्षों पहले छपे एक लेख में विष्‍णु खरे ने लिखा था कि उदघोषक अमीन सयानी को प्रसिद्ध बनाने में झुमरी तिलैया के रेडियो श्रोताओं में खासतौर पर रामेश्‍वर प्रसाद वर्णवाल का हाथ है।

बिहार में गया रेलवे स्‍टेशन के अगले स्‍टेशन कोडरमा के बाहरी क्षेत्र को झुमरी तिलैया के नाम से जाना जाता है। यह बिहार की राजधानी पटना से 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसकी आबादी एक लाख के करीब होगी। यहां विश्‍वविख्‍यात अभ्रक की खानें हैं और यहां का कलाकंद भी प्रसिद्ध है। वर्णवाल के बारे में लोगों का कहना है कि उनकी पहली फरमाइश रेडियो सिलोन से पढ़ी गई थी। फिल्‍म ‘मुगले आजम’ का गीत ‘जब प्‍यार किया तो डरना क्‍या’ के लिए उन्‍होंने टेलीग्राम से फरमाइश भेजी थी। रेडियो सिलोन से अक्‍सर यह प्रसारण होता था कि आप ही के गीत कार्यक्रम में झुमरी तिलैया से रामेश्‍वर प्रसाद वर्णवाल ने ‘दो हंसों का जोड़ा बिछुड़ गयो रे, गजब भयो रामा जुलुम भयो रे’ फरमाइश की है। झुमरी तिलैया से गंगालाल मगधिया, कुलदीप सिंह ‘आकाश’, राजेंद्र प्रसाद, जगन्‍नाथ साहू, धर्मेंद्र कुमार जैन, पवन कुमार अग्रवाल, लखन साहू ने भी इसी गीत की फरमाइश की है।

रेडियो पर फरमाइश को लेकर कई अजूबे जुड़े हुए हैं। एक बार ऐसा हुआ कि आल इंडिया रेडियो पर गंगा जमुना फिल्‍म का गीत दो हंसो का जोड़ा बिछुड़ गयो रे बज रहा था। गीत समाप्‍त होने पर उदघोषक ने घोषणा की कि अभी अभी झुमरी तिलैया से रामेश्‍वर प्रसाद वर्णवाल का भेजा हुआ टेलीग्राम हमें प्राप्‍त हुआ है, जिसमें उन्‍होंने दो हंसों का जोड़ा सुनाने का अनुरोध किया है। अत: यह गीत हम आपको पुन: सुना रहे हैं। टीवी के व्‍यापक आगमन से पहले रेडियो के अलावा मनोरंजन का दूसरा साधन नहीं था। ग्रामोफोन प्‍लेयर बहुत कम लोगों के पास था।

फरमाइश भेजने वालों में हरेकृष्‍ण सिंह ‘प्रेमी’ कभी पीछे नहीं रहे। यह अलग बात है कि वे अपनी हरकतों व कथित प्रेमी होने के कारण हमेशा चर्चा में रहे। फरमाइशों में अपने नाम के बाद अपनी कथित प्रेमिका प्रिया जैन का नाम भी जोड़ा करते थे जिसके कारण वे प्रसिद्ध हुए। यह बात अलग है कि उनकी प्रिया जैन से शादी नहीं हुई।

एक और दिलचस्‍प बात यह है कि रेडियो पर फरमाइश भेजने वालों में आपसी होड़ इस हद तक बढ़ गई थी कि लोग एक दूसरे की डाक को गायब करवाने और रुकवाने के लिए डाक छांटने वाले कर्मचारियों को रुपए देते थे। तब कई गंभीर श्रोता फरमाइशी पत्रों को भेजने के लिए गया और पटना तक जाने लगे जिससे डाक खर्च भी बढ़ गया। उन दिनों इस तरह के पत्र पर कम से कम 25 से 35 रुपए खर्च होने लगे।

एक और दिलचस्‍प प्रकरण के तहत एक सज्‍जन फरमाइश भेजने वाली लड़की से उसका मनपसंद गीत सुनने के बाद उससे प्रेम करने लगे। वे उसके प्रेम में इस हद तक पागल हो गए कि जिस दिन उस लड़की की शादी हो रही थी वहां जा पहुंचे और हंगामा खड़ा कर दिया कि मैं इस लड़की से शादी करूंगा। खैर लोगों के बहुत समझाने बुझाने और माथापच्‍ची करने के बाद मामला शांत हुआ।

झुमरी तिलैया के संबंध में सबसे ज्‍यादा रोचक बात यह थी कि जिस किसी फिल्‍म के किसी गीत को सुनने के लिए झुमरी तिलैया के श्रोता अपनी फरमाइश भेजते थे उस फिल्‍म को और उस गीत को मुंबई फिल्‍म उद्योग के बॉक्‍स ऑफिस पर हिट माना जाता था। यह सिलसिला कई साल से खत्‍म हो गया है। निजी टीवी चैनलों और दूरदर्शन की मार से रेडियो श्रोता बहुत कम रह गए हैं, साथ ही झुमरी तिलैया का सरगम भी खो गया है। इस सरगम को पढ़ने के बाद विंडो बंद मत किजिए बल्कि दिल से अपनी टिप्‍पणी ब्‍लॉग को भेजिए।

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10 comments:

Sanjeet Tripathi said...

मस्त!!
बढ़िया लगा इसे पढ़ना, यह भी जानकारी हो गई कि झुमरीतलैया आखिर है कहां पर!

sanjay patel said...

कमल भाई नमस्कार.
विविध भारती के फ़रमाइशी कार्यक्रमों में अपना नाम सुनना और परिजनों / मित्रों को ये बताना कि हमारी फ़रमाइश प्रसारित हो गई है अपने आप में एक रोमांचकारी अनुभव से गुज़रना होता था. पत्रावली में पत्रों के शुमार होने की वेटिंग लिस्ट लंबी हुआ करती थी. संगीत सरिता समाप्त होने के बाद कोई फ़िल्मी धुन न बजा कर शास्त्रीय संगीत की कोई धुन बजाई जाए ऐसा मेरा सुझाव पत्रावली में पढ़ा गया था और उस पर तत्काल अमल भी हुआ था. मुझे आज तक याद है कि मेरा वह पत्र मौजीराम जी यानी स्व.ब्रजेंद्रमोहनजी ने पढ़ा था.फ़रमाइशों का संसार रेडियो और श्रोता के बीच एक सुरीला राब्ता था.

Anonymous said...

http://www.desipundit.com/2007/09/19/sunana-chahate-hain-jhumritalaiya-se/

सागर नाहर said...

विविध भारती पर झुमरी तलैया के आपके द्वारा बताये श्रोता और आल इण्डिया रेडियो की उर्दू सर्विस पर सिकन्दरराव के प्यारे मियाँ कुरैशी भी अपनी फरमाईशों के लिये जाने जाते हैं। शायद ही कोई ऐसा दिन जाता हो जिस दिन प्यारे मियां फरमाईश ना भेजते हों।
अच्छे लेख के लिये साधूवाद।

Yunus Khan said...

कमल जी धन्‍यवाद आपने अनुरोध पूरा किया ।
झुमरीतिलैया का लंबा इतिहास रहा है फरमाईशी कार्यक्रमों में । विविध भारती के उदघोषक होने के नाते आज भी मुझे झुमरीतिलैया की कई चिट्ठियां मिलती हैं । हां ये सच है कि पहले वाली बात नहीं रही ।
एक बात अर्ज करना चाहता हूं । झुमरीतिलैया इतना ज्‍यादा मशहूर हो गया कि इसका जिक्र कई फिल्‍मों में आया । कई फिल्‍मी हस्तियों के इंटरव्‍यू में उन्‍होंने खुद पूछा कि क्‍या कोई ऐसी जगह है । मुझे याद है स्‍कूल के दिनों में रेडियो पर झुमरीतिलैया का नाम सुनने के बाद हमने भारत के नक्‍शे में उसे ढूंढने की नाकाम कोशिश की थी । लेकिन रेखांकित करना चाहूंगा उस उत्‍साह को जिसके तहत लोग इतनी सारी चिट्ठियां पोस्‍ट करते
हैं । उन चिट्ठियों को लिखने में लगी ऊर्जा और खर्च हुए धन का अंदाज़ा लगाईये । तब आपको इस दीवानगी का अहसास होगा । आज भी कई ऐसी जगहें हैं जहां से जबर्दस्‍त फरमाईशें आती हैं । मुझे लगता है कि फरमाईश की अजीबोंगरीब जगहों और अपने अनुभवों को लेकर पूरी एक पोस्‍ट लिखनी होगी । आगे भी आपसे ऐसे निराले विषयों
पर लेखों की उम्‍मीद है ।

चलते चलते said...

मेरे प्रिय दोस्‍तों
रेडियो पर मेरे जानकारी इसलिए है क्‍योंकि मैं पिछले कई वर्षों से पत्रकारिता में हूं। लेकिन मैं आप सभी को बताना चाहूंगा कि मैं विविध भारती वाला कमल शर्मा नहीं हूं। मेरे ज्‍यादातर लेख कमल भुवनेश के नाम से आते हैं। पत्रकारिता की शुरूआत में भी कई लोग मुझे विविध भारती वाला कमल शर्मा ही जानते थे और तब मैंने अपने लेख कमल भुवनेश के नाम से‍ लिखने शुरु किए। आप मेरे ब्‍लॉग http://wahmoney.blogspot.com और http://journalistkamal.blogspot.com पर देख सकते हैं कि कमल शर्मा और कमल भुवनेश लिखा हुआ है। हालांकि, विविध भारती वाले कमल शर्मा जी की पत्‍नी भी पत्रकार है और मेरा परिचय उनसे जरुर है लेकिन स्‍वयं कमल शर्मा जी से मिलने का सौभाग्‍य मुंबई में रहकर भी न मिल सका। आप सभी ने मेरे लेख को सराहा इसलिए आप सभी को धन्‍यवाद। रेडियो पर यह लेखन चलता रहेगा और आप सभी का स्‍नेह भी बरसता रहेगा, इसी शुभकामना के साथ।

ePandit said...

कमल जी कभी फिल्मों में झुमरी तलैया का नाम सुनकर हम समझते थे कि ये कोई काल्पनिक जगह है। काफी बाद में जानकारी हुई कि सचमुच की जगह है और रेडियो से प्रसिद्ध हुई है।

आपने इस बारे विस्तार से जानकारी दी, धन्यवाद।

mamta said...

चलिए आज पता चला की झुमरी तलैया कहॉ है।हमे तो लगता था की कोई मनगढंत जगह का नाम है। काफी रोचक अंदाज मे आपने लिखा है।

गोपाल शर्मा said...

KAMAL JI , WHAT ABOUT , INDOER SE ANIL BAMAN BHANDARE, KAMPTEE SE BABU LAL CHAKOLE, MAHOBA SE PANDIT MEWALAL PARDESI, BILASPUR SE DHARAMDAS WADHWANI , BHATAPARA SE BACHKA MAK KANGIRAMAL, AND SO MANY OTHERS
2-06-2011

Anonymous said...

Achchha laga padhkar , ki jhumri tillaiya ka ek itihas aisa bhi hai .. apne mitti ki hi aisi pehchan se ab tak anjaan thi ..
thanks Kamal ji ..

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