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Friday, September 21, 2007

रात के राही - एक अनूठा प्रयोग

हवा महल - नाम सुनते ही चेहरे पर एक मुस्कान फैल जाती है। हास्य झलकियों का एक ऐसा कार्यक्रम जिसे सुन कर मुस्कुराने, हंसने और कहकहे लगाने पर आप मजबूर हो जाते है।
मैं बात कर रही हूं उस समय की जब हवा महल रात में सवा नौ से साढे नौ तक प्रसारित होता था। यानि रोज़ 15 मिनट का समय हंसने के लिए आरक्षित था।

ऐसी ही एक रात उदघोषणा हुई - प्रस्तुत है झलकी रात के राही और शुरू हो गई झलकी - प्लेटफार्म की आवाज़े, रेल की आवाज़ । चलती गाड़ी में एक पुरूष ने प्रवेश किया । लड़की डिब्बे में अकेली थी ।

सहयात्री की तरह बातों का सिलसिला चल निकला । पुरूष ने बताया कि वह कर्नल था । लड़की ने कहा की उसे बहादूर लोग अच्छे लगते है ।


कुछ समय बात लड़की ब्लैकमेल करने लगी । कहा कि जो कुछ उसके पास है सभी दे दें । वर्ना वह चेन खींचेगीं और उस पर छेड़ने और ज्यादती का आरोप लगाएगी। पुरूष न माना और उसने चेन खींच दी ।


पुलिस आई । मामला बना । सभी कहने लगे कर्नल हो कर उसने ग़लत काम किया । पुरूष ने कहा कि उसका ओवरकोट उतारो । तभी लड़की बोली की रेल में भी वह उसे कभी पानी पिलाने और कभी खिड़की बन्द करने के लिए कहता रहा ।


जब ओवरकोट उतारा गया तो सभी आवाक । उसकी तो दोनों बाहें कटी हुई थी । लड़की भागने लगी तो उसे पकड़ लिया गया ।

रहस्य और रोमांच से भरपूर इस झलकी ने पूरे 15 मिनट श्रोताओं को बांधे रखा । श्रोता भूल गए कि यह झलकी हवा महल के स्वाद के अनुसार नहीं है क्योंकि हवा महल का तो काम है हवा में महल बनाना, न कि अपराधियों का पर्दाफ़ाश करना ।


यह शायद अपने तरह की अकेली झलकी थी जो हवामहल में प्रसारित हुई थी । दो-तीन बार इसका प्रसारण मैनें सुना । जब भी सुना बहुत अच्छा लगा । एक विशेष समय में कुछ अलग, कुछ अच्छा, कुछ अनूठा लगा ।

आज ये याद नहीं कि इसके लेखक, प्रस्तुतकर्ता और कलाकार कौन थे । लेकिन झलकी आज भी दिमाग़ में ताज़ा है ।

5 comments:

Manish Kumar said...

हवा महल इसी समय हम सब ने भी सुना है और ये naatak भी. ये मिनुतेस में इतनी अच्छी स्क्रिप्ट का इस्तेमाल हुआ था की मन बंधा रह जाता था.

Vikash said...

यह कहानी सुनी सुनायी लगती है. :)
और हवामहल तो सुनने में मजा आ जाता है. :)

Anita kumar said...

हवामहल तो मैने बचपन में कई बार सुना है और उससे कई मधुर यादें भी जुड़ी हुई है लेकिन आजकल रेडियो जरा कम ही सुनते है इस लिए ये नाट्क सुना नही था लेकिन आप से सुन कर पता चलता है कि कितना प्रभावशाली ये नाट्क रहा होगा, हमसे बाटंने के लिए धन्यवाद

Yunus Khan said...

लगता है मुझे ही पुराना रिकॉर्ड को खंगालकर इस झलकी का विवरण पता करना होगा । हवामहल पुराने समय में
हम सभी बड़े शौक़ से सुना करते थे । हवामहल का जिक्र करके आपने कितनी पुरानी यादों को छेड़ दिया है । आपको
बता दूं कि सन 1957 में विविध भारती की स्‍थापना के साथ ही हवामहल का आग़ाज़ हुआ था । ये कार्यक्रम आज
पचास साल बाद भी इसी तरह चल रहा है । ऐसा दूसरा कार्यक्रम है जयमाला । मीडिया में इस तरह का कोई विश्‍लेषण
या शोध हुआ नहीं, पर अगर किया जाये तो ये दोनों कार्यक्रम संभवत: विश्‍व के सबसे लंबे समय तक चलने वाले
कार्यक्रम साबित होंगे ।

mamta said...

लो अच्छा हुआ जो हमने आपकी पोस्ट आज पढ़ ली क्यूंकि हम भी हवा महल के बारे मे ही लिख रहे थे। खैर अब फिर किसी दिन !!

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