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Wednesday, September 26, 2007

रेडियो मेरी सांस में बसा है -२ : पियूष मेहता

इस रेडियो श्रवण यात्रा के दोरान मूझे सुरत से जो दो व्यक्तियो से स्थानिक कक्षासे बढावा मिला उसमें एक सुरत के ही जानेमाने फ़िल्म-इतिहास संशोधक, जिन्होंने मुकेश गीतकोष और गुजराती फ़िल्मी गीत कोष का संकलन किया तथा जब दिल ही टूट गया नामक के. एल. सायगल गीत कोष के श्री हरमंदिर सिंह ’हमराझ’ (कानपूर निवासी) के साथ सह सम्पादक रहे और सुरतमें और मुम्बईमें भी कई लोगोसे मेरे हुए परिचय के निमीत्त बने उनको कैसे भूल सकता हूँ ?
एक नाम हाल आकाशवाणी अहमदाबाद पर केन्द्र निर्देषक के रूपमें कार्यरत वैसे श्री भगीरथ पंड्या साहब को अगर याद नहीं किया जाय तो वह गुस्ताखी ही होगी । वे पहेले आकाशवाणी सुरत (जब आकाशवाणी सुरत सिर्फ स्थानिक स्वरूप का खंड समय वाला केन्द्र था )पर कार्यक्रम अधिकारी के तौर से आये थे और उसी रूपमें केन्द्र इन चार्ज बने और थोडे समय के बाद यहाँ ही सहायक केन्द्र निर्देषक बने और फ़िर थोडे साल अन्य केन्द्रो पर हो कर फिर सुरत केन्द्र निर्देषक बन कर आये । उनका आम श्रोता प्रति एक सकारत्मक अभिगम ऐसा था कि श्रोताओमें से भी वे आकाशवाणी कार्यक्रमोमें बारी बारी से कार्यक्रमके लिये उपयूक्त लोगो को कार्यक्रममें मेहमान के तौर पर आमंत्रित करते थे ।
इस तरह रेडियो पर बोलने की हिचकिचाहट मेरी दूर हुई ।और नामोमें रेडियो श्री लंका के आज मुम्बईमें सक्रिय श्री मनोहर महाजन साहब, जिनके साथ मेरा फोटो आल्बम पर है, स्व.श्री दलवीर सिन्ह परमार,उनकी बेटी श्रीमती ज्योति परमार श्रीमती पद्दमिनी परेरा, विविध भारती के श्री ब्रिज भूषण साहनी, उनकी श्रीमती आशा साहनी श्री लल्लूलाल मीना, श्री मौजीरामजी (असली नाम याद नहीं है ), भारती व्यास, अर्विन्दा दवे, मेरी यादमें है । पियानो वादक श्री केरशी मिस्त्री, मेन्डलिन वादक श्री महेन्द्र भावसार भी मेरे चहिते रहे और उनसे पहचान भी रही । यह सब असल लेखमें इस लिये नहीं है क्यों कि, मुद्रीत माध्यम का एक जरूरी अंग सेन्टीमीटर में नापना अलग विषयो को न्याय देने के लिये रहा है ।
यह लेख के असल प्रेरणा स्त्रोत रहे विविध भारती के तूर्त शायरी करने वाले श्रोता श्री यश कूमार वर्माजी जिन्होंने मूझ पर दबाव डल डल कर अपनी बिन व्यवसायिक पत्रिका यशबाबू रेडियो क्लब जो वे सिर्फ ओर सिर्फ श्रोताओ को जोडने के लिये ही शुरू किया है, के लिये लिखवाया था । उस समय क्या पता था यह इस तरह नेट पर स्थान पायेगा ? नसीब की गत को कौन जान सकता है ? यह तो लेख से भी लम्बा हो गया ।
धन्यवाद ।

पियुष महेता
सुरत-३९५००१.
फोन : (०२६१)२४६२७८९मोबाईल : ०९८९८०७६६०६.

5 comments:

sanjay patel said...

आदरणीय पीयूष भाई;
जयश्रीकृष्ण.
मौजीराम जी का असली नाम था ब्रजेन्द्रमोहन. वे पत्रावली में तो आते ही थे ; एकाधिक बार हरिशंकर परसाई,शरद जोशी और दीगर व्यंग लेखकों के निबंध भी पढ़ते थे. वाचिक परम्परा के अग्रज थे वे. स्व.दीनानाथ जो आकाशवाणी दिल्ली में नाटक विभाग के प्रभारी थे के साथ ब्रजेन्द्रमोहनजी की एक दो झलकियाँ अब भी स्मृति में है जिनमें से एक हवामहल में बजती थी जिसमें दीनानाथ और ब्रजेन्द्रमोहनजी के स्वराभिनय का अदभुत झाँकी होती थी. आपने आकाशवाणी अहमदाबाद का ज़िक्र किया तो याद आ गए संगीत निदेश श्री रसिकलाल भोजक और श्री भाईलाल बारोट. ये दोनो आकाशवाणी इन्दौर में लम्बे समय तक रहे.संगीत में सुगम संगीत विधा का जब जब भी ज़िक्र होगा आकाशवाणी के गीत,भजन और ग़ज़लें खूब याद हो आएंगी और याद आएंगे श्री भोजकजी और श्री बारोटजी जिन्होने कई रचनाएँ आकाशवाणी को दी. चूँकि मै इन्दौर मे रहता हूँ सो लाज़मी है इन दोनो लाजवाब संगीतकारों को याद करूँ. या ये भी बताता चलूँ (एक आश्चर्यजनक जानकारी) के स्व.भाईलाल बारोट बेहतरीन बाँसुरीवादक भी थे और उनके गुरू थे महान बाँसुरी आचार्य पं.पन्नालाल घोष.आवजो साहेब.

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

श्री संजयभाई,
आपने जो भाई मेरे नामके साथ लगाया, इससे और आपकी पटेल अटक से ऐसा लगता है, कि आप मूल रूपसे गुजराती है । हो सकता है कि अभी शायद आप गुजराती हिन्दी की तरह लिख़ या बोल नहीं पाते हो । यह रसिकलाल भोजक नाम तो इस तरह भी मैं जानता हूँ, कि संगीत सरीता के शुरू होने से पहेले इन्होंने आकाशवाणी अहमदाबादसे फ़िल्म संगीत के माध्यमसे भारतीय शास्त्रीय संगीत शिखाने वाला कोई (नाम याद नहीं आ रहा) कार्यक्रम शुरू किया था । उनके शायद भाई या भतीजे जयदेव भोजकजी आकाशवाणी बडौदा पर संगीत विभाग के मुख्या थे ।
अगर मैं भूलता नहीं तो शायद किशोरकूमारजी के रेडियोवाणी के पोस्टमें स्व. श्री किशोरकूमारजी के श्री अमीन सायानी साहब द्वारा लिये गये मझेदार इन्टरव्यू का आपके अपने पास होनेका जिक्र किया था । अगर वे आप ही है तो उसको ई स्नीप से सुनाईए और पाठको को उपकृत करें ।

आपके इन्दोर की आशाजी विविध भारतीके फोन इन कार्यक्रमसे काफी़ जानी पहचानी हुई है । विविध भारती की युनूसजी की साथी श्रीमती निम्मी मिश्राजी आकाशवाणी इन्दौरसे ही विविध भारती सेवा पर गई है । आकाशवांणी इन्दौर से एक समय पर हर बृहस्पतीवार को प्रसारित होने वाला साप्ताहिक विषेष फिल्म संगीत का कार्यक्रम मन भावन जो श्री नरेन्द्र पंडित उद्दधोषक के रूपमें पैश करते थे वह मूझे बहोत अच्छी तरह याद है ।
धन्यवाद ।
पियुष महेता-सुरत

sanjay patel said...

आदरणीय पीयूषभाई..सादर प्रणाम. आप हमारे बुज़ुर्ग हैं आपका जवाब किसी पुण्य को कमाने से कर नहीं.निम्मीजी तो हैं हीं विविध भारती पर तू पूरा मध्य-प्रदेश छाया हुआ है.श्री कमल शार्मा,श्री राकेश जोशी,सुश्री रेणु बंसल और हमारे अज़ीज़ युनूस भाई सभी तो मध्य प्रदेश के हैं.श्री नरेन्द्र पंडित का स्मरण कर आपने वह दौर ताज़ा कर दिया जब आकाशवाणी इन्दौर का जलवा ही कुछ और हुआ करता था. सर्वश्री स्वतंत्रकुमार ओझा,बी.एन.बोस,स्व.वीरेन्द्र मुंशी,(बीबीसी)विश्व दीपक त्रिपाठी (बीबीसी)भारत रत्न भार्वग,केशव पांडे,जयदयाल बवेजा,प्रभु जोशी,संतोष जोशी,कृष्णकांत दुबे,स्व.अविनाश सरमंडल,सुश्री इंदु आनंद (अब संतोष)रणजीत सतीश,सरोज तिवारी,सुदेश हिदुजा आदि कई नाम थे जो सिर्फ़ आठ घंटे की नौकरी के लिये नहीं अपना सर्वस्व लुटाने के लिये मालवा हाउस में खून का पसीना करते थे.अतिथि कलाकारों में मेरे पूज्य पिता श्री नरहरि पटेल की आवाज़ की विशिष्ट पहचान थी. उन्होने आकाशवाणी इन्दौर के नाटको,बच्चों के कार्यक्रमो,खेती ग्रहस्थी कार्यक्रम के लिये बहुत योगदान दिया है. आज भी मालवा हाउस हमारे लिये किसी मंदिर से कम नहीं...लेकिन पीयूष भाई अब वो आत्मीयता के सिलसिले टूट गये.अब का मालवा हाउस निहायत औपचारिक और एक सरकारी प्रसारण परिसर से अधिक कुछ नहीं काम करने का वो जज़्बा ही चला गया. इसी परिसर और इसके स्टुडियो़ज़ में कभी पं.कुमार गंधर्व ,उस्ताद अमीर खाँ साहब,डागर बंधु,निर्मला देवी,पृथ्वीराज कपूर,शरद जोशी,पं.रविशंकर,नौशाद साहब,खैयाम,मेहदी हसन और हाँ याद आया डाँ. राधाकृष्णन की आवाज़ों का जादू फ़ैला है.न जाने कहाँ आँसू बहा रहे होंगे वे टेप्स . आज का कोई नौजवान मेरी इन बातों को पढे़गा तो कहेगा ये कौन से नाम लेकर बैठ गए संजय भाई ? लेकिन क्या किया जाए ...ये बेरहम यादें पीछा नहीं छोड़तीं ? कुछ दिल हल्का हो गया आपसे बतिया कर.

mamta said...

आदरनीय पीयूष जी आपकी पोस्ट और संजय जी की टिप्पणी के माध्यम से रेडियो के बारे मे इतना कुछ जानने को मिला। हम लोग खुशनसीब है जो आपने अपने लेख को हम लोगों के साथ यहां पर बाँटा।

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

आदरणिय श्रीमती ममताजी,
वैसे मैने अपना दूसरा पोस्ट पहेले अपने ही पहेले पोस्ट पर टिपणी के रूपमें ही रखा था । पर बादमें अपने ही निजी अनुभवसे मेहसूस किया, कि यह बात ब्लोग के खुलते ही नझर पड़ने वाली नहीं है । हर रोझ कोई हर पोस्ट के कोमेन्ट्स नहीं देख पाता । इस लिये अपनी पहली पोस्ट जो वास्तवमें श्री कमल शर्माजी की है (लेख मेरा है ।) में लिखे अपने कोमेन्ट को ही अपने दूसरे पोस्ट के रूपमें प्रस्तूत किया है ।
धन्यवाद । नमस्कार ।

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