मेरे एक दोस्त सृजन शिल्पी जी का कहना है कि ‘बिजली और केबल कनेक्शन के अभाव में टेलीविज़न भी ग्रामीण क्षेत्रों तक नहीं पहुँच पाता। ऐसे में रेडियो ही एक ऐसा सशक्त माध्यम बचता है जो सुगमता से सुदूर गाँवों-देहातों में रहने वाले जन-जन तक बिना किसी बाधा के पहुँचता है। रेडियो आम जनता का माध्यम है और इसकी पहुँच हर जगह है, इसलिए ग्रामीण पत्रकारिता के ध्वजवाहक की भूमिका रेडियो को ही निभानी पड़ेगी। रेडियो के माध्यम से ग्रामीण पत्रकारिता को नई बुलंदियों तक पहुँचाया जा सकता है और पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए आयाम खोले जा सकते हैं। इसके लिए रेडियो को अपना मिशन महात्मा गाँधी के ग्राम स्वराज्य के स्वप्न को साकार करने को बनाना पड़ेगा और उसको ध्यान में रखते हुए अपने कार्यक्रमों के स्वरूप और सामग्री में अनुकूल परिवर्तन करने होंगे। निश्चित रूप से इस अभियान में रेडियो की भूमिका केवल एक उत्प्रेरक की ही होगी।‘ शिल्पी जी की इन लाइनों में वाकई दम है।
असल में देखा जाए तो गांवों में ही नहीं, महानगरों, शहरों और कस्बों में भी रेडियो बड़ी भूमिका निभाई है और निभा भी रहा है। आकाशवाणी और बीबीसी आज भी खबरों के लिए गांवों और कस्बों में रह रहे लाखों लोगों के लिए समाचार, विचार और मनोरंजन का सशक्त माध्यम बना हुआ है। देहातों से निकलने वाले छोटे अखबारों के लिए आज भी रेडियो प्राण है।
आकाशवाणी से आने वाले धीमी गति के समाचार इन अखबारों में सुने नहीं लिखे जाते थे ताकि ये अखबार अपनी समाचार जरुरत को पूरा कर सके। शाम को आने वाले खेल समाचार और प्रादेशिक समाचार के बुलेटिन भी यहां ध्यान दो-चार पत्रकार बैठकर सुनते थे। वर्ष 1988 में मुझे हरियाणा के कस्बे, लेकिन अब शहर करनाल में एक अखबार विश्व मानव में काम करने का मौका मिला, जहां दिन भर रेडियो की खबरों को सुना और लिखा जाता था। समाचार एजेंसियों से ज्यादा वहां रेडियों को महत्व दिया जाता था। हमारे यहां भाषा की सेवा थी लेकिन महीने में यह कई बार चलती ही नहीं थी, ऐसे में रेडियो हमें बचा ले जाता था, अन्यथा हो सकता था कि हमें बगैर समाचार के अखबार छापना पड़ता। आज भी गांवों और सीमांत क्षेत्रों में रेडियो का महत्व कम नहीं हुआ है। लोग खूब सुनते हैं समाचार, विश्लेषण और खास रपटें। यह खबर बीबीसी और आकाशवाणी पर सुनी है, यानी कन्फर्म हो गया। ऐसा कहते हैं गांवों में आज भी। हालांकि, यह भी सच है कि रेडियो पर आनी वाली खबरों, खबर कार्यक्रमों में बेहद बदलाव की जरुरत है। नई पीढ़ी की जरुरत के कार्यक्रम शामिल करने होंगे। जहां तक मेरा ज्ञान है सरकार ने एफएम रेडियो को न्यूज में आने की अनुमति अभी नहीं दी है। यदि सरकार यह अनुमति दे दें तो गांव भी बेहतर प्रगति कर सकते हैं लेकिन फिर रेडियो सेवा चलाने वालों को यह ध्यान में रखना होगा कि वे ग्रामीण पत्रकारिता का विशेष ख्याल रखें।
रेडियो पर 24x7 समाचार सेवा दूसरे किसी भी माध्यम से बेहतर चल सकती है। इस पर भी टीवी माध्यम की तरह समाचार की लाइव सेवा चलाई जा सकती है। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राज्यस्तरीय समाचारों के अलावा देश के विभिन्न जिलों के मुख्य समाचार सुनाए जा सकते हैं। खेल, कारोबार, संस्कृति, मनोरंजन, इंटरव्यू, अपराध, महिला, बच्चों से जुड़े समाचार यानी वह सब कुछ जो एक अखबार या टीवी माध्यम में बताया जा सकता है। मनोरंजन के अलावा लाइफ स्टाइल, कैरियर, शॉपिंग, सिनेमा, शिक्षा आदि सभी के बारे में प्रोग्राम सुनाए जा सकते हैं। यहां मैं जिक्र करुंगा मुंबई विश्वविद्यालय का जिसने 107.8 एफएम पर चार घंटे कैम्पस समाचार, सेमिनार और विविध विषयों पर चर्चा करने की योजना बनाई है। मेरा ऐसा मानना है कि कम्युनिटी रेडियो से हटकर हरेक भाषाओं और हिंदी में राष्ट्रीय स्तर पर समाचारों के लिए कार्य किया जा सकता है। प्रिंट माध्यम में कई बार छोटे-छोटे गांवों में हर रोज अखबार ही नहीं पहुंच पाते या जो पहुंचते हैं वे वहां पहुंचते-पहुंचते बासी हो जाते हैं। साथ ही किसी अखबार घराने को दो चार प्रतियां भेजने में रुचि भी नहीं रहती। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम को देखें तो गांवों को बिजली ही नहीं मिल पाती, अब तो यह हालत छोटे और मध्यम शहरों की भी है।
मुंबई जहां मैं रहता हूं, के आखिरी उपनगर दहिसर से केवल 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वसई से लेकर आगे तक के उपनगरों में रोज दस से बारह घंटे बिजली नहीं रहती, समूचे देश की भी स्थिति बिजली के मामले में यही है। देश के दो चार राज्य ऐसे होंगे जिन्हें छोड़कर हर जगह बिजली की बेहद कमी है। साथ ही गांवों में लोगों को केबल के 200-300 रुपए महीना देना भारी लगता है। लाखों लोग आज भी इस स्थिति में है रंगीन तो छोडि़ए श्याम श्वेत टीवी भी नहीं खरीद सकते। दूसरों के यहां टीवी होता है, उसे टुकर टुकर देखते रहते हैं। बच्चे सपने बुनते रहते हैं कि बड़ा होऊंगा तब टीवी जरुर खरीदूंगा। इसलिए टीवी समाचारों से एक बड़ा वर्ग इन तीन वजहों से वंचित हो जाता है। अब बात करते हैं वेब समाचारों का। जब बिजली ही नहीं तो कंप्यूटर कैसे चलेगा। एक कंप्यूटर और स्टेबलाइजर के लिए कम से कम 30-35 हजार रुपए खर्च करने होते हैं जो हरेक के बस की बात नहीं है।
लेकिन अब तो रेडियो एफएम के साथ 30 रुपए से लेकर 500 रुपए तक की हर रेंज में ईयर फोन के साथ मिलते हैं। दो पैंसिल सेल डाल लिए, और जुड़ गए देश, दुनिया से। यह आकाशवाणी है...या...बीबीसी की इस पहली सभा में आपका स्वागत है...। आया न मजा.... क्या खेत, क्या खलिहान, पशुओं का दूध निकालते हुए, उन्हें चराते हुए, शहर में दूध व सब्जी बेचने जाते हुए, साइकिल, मोटर साइकिल, बस, रेल, दुकान, नौकरी, कार ड्राइव करते हुए सब जगह समाचार, मनोरंजन वह भी 30 रुपए के रेडियो में..रेडियो खराब भी हो गया तो ज्यादा गम नहीं....नया ले लेंगे फिर मजदूरी कर। लेकिन मौजूदा आकाशवाणी, रेडियो सेवा चलाने वाले लोगों की जरुरत के अनुरुप खबरें और कार्यक्रम नहीं दे पा रहे हैं जिससे इनका प्रचलन कम हुआ है। मेरे मित्र सेठ होशंगाबादी बता रहे थे कि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के अनेक ऐसे इलाकों में मैं घूमा हूं जहां ढोर चराते लोग और ग्वाले, साइकिल पर जाते लोग रेडियो कान से सटाकर रखते थे लेकिन अब यह प्रचलन घटा है। रेडियो श्रोता संघ तो पूरी तरह खत्म से हो गए हैं। रेडियो सेवा देने वाले यदि लोगों की आवश्यकता पर शोध करें तो रेडियो प्रिंट, टीवी और वेब माध्यम को काफी पीछे छोड़कर सबसे शक्तिशाली माध्यम है।
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Thursday, September 20, 2007
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4 comments:
सही फरमाया । सुनने में आ रहा है कि साल के अंत तक एफ एम चैनलों को समाचार देने की अनुमति मिल जायेगी ।
अगर ऐसा हुआ तो पूरा ढांचा बदल जायेगा । शायद कुछ अचछा हो । पर बुरा होने की संभावना भी है ।
न्यूज देना बेहद जिम्मेदारी का काम है । चौबीस घंटों वाले समाचार चैनल समाचार के नाम पर क्या क्या कर रहे हैं
किसी से छिपा नहीं है । लेकिन रेडियो समाचारों की महत्ता अपनी जगह है । छोटे शहरों और कस्बों में अभी भी लोग
आदतन खबरें रेडियो पर ही सुनते हैं । इन दिनों आकाशवाणी पर सुबह जो समाचार दर्शन आता है अगर उसे पूरा का
पूरा सुन लिया जाये तो खबरें, उनका विश्लेषण और अखबारों में छपे मुख्य मुद्दे सब पता चल जाते हैं । केवल आधे
घंटे में सब कुछ । बेहतरीन प्रस्तुति है ये । लेकिन एक फैशन हो गया है ये कहना, कि रेडियो के समाचार मर रहे हैं ।
वक्त आयेगा तो शायद इसमें और बेहतर बदलाव होंगे । प्रस्तुतिकरण सुधरेगा ।
सही फरमाया । सुनने में आ रहा है कि साल के अंत तक एफ एम चैनलों को समाचार देने की अनुमति मिल जायेगी ।
अगर ऐसा हुआ तो पूरा ढांचा बदल जायेगा । शायद कुछ अचछा हो । पर बुरा होने की संभावना भी है ।
न्यूज देना बेहद जिम्मेदारी का काम है । चौबीस घंटों वाले समाचार चैनल समाचार के नाम पर क्या क्या कर रहे हैं
किसी से छिपा नहीं है । लेकिन रेडियो समाचारों की महत्ता अपनी जगह है । छोटे शहरों और कस्बों में अभी भी लोग
आदतन खबरें रेडियो पर ही सुनते हैं । इन दिनों आकाशवाणी पर सुबह जो समाचार दर्शन आता है अगर उसे पूरा का
पूरा सुन लिया जाये तो खबरें, उनका विश्लेषण और अखबारों में छपे मुख्य मुद्दे सब पता चल जाते हैं । केवल आधे
घंटे में सब कुछ । बेहतरीन प्रस्तुति है ये । लेकिन एक फैशन हो गया है ये कहना, कि रेडियो के समाचार मर रहे हैं ।
वक्त आयेगा तो शायद इसमें और बेहतर बदलाव होंगे । प्रस्तुतिकरण सुधरेगा ।
इसे कहते हैं चिठ्ठाकारी,
आप एक तो पत्रकार और फिर गाँव गाँव घूमे हुए सो आपके तो बहुत सारे अनुभव अभी बाकी होंगे, हमें आपके अनुभव जानने की उत्सुकता बढ़ गई है।
रेशियो समाचार के बारे में आपए सही कहा, अभी रेडियो को अपने प्रसारण के तरीकों में बहुत कुछ बदलाव करना होगा।
श्री कमलजी,
आपने जो भी चित्र खडा किया वह पूरा सही और यथायोग्य है और युनूसजीने जो निजी एफ़.एम. रेडियो चेनल्स को जो समाचार और साम्प्रत विषयो पर कार्यक्रम की छुट देने प्र खडे होने वाले भयस्थानों का जिक्र किया है वह टी. वी. समाचार चेनल्स की हाल की गतिविधीयाँ देख कर और पढ़ कर बहोत ही सही दिखती है । आपको याद होगा कि मैनें आपको एक मेईल करके क्षेत्रीय भाषाओं के लिये हाल जो मध्यम तरंग रेडियो प्रसारण पर आकाशवाणी ज्यादा निर्भर रहेती है और बहोत ही कम एफ. एम. खण्ड समयावधि वाले स्थानिय रेडियो केन्द्र आकाशवाणी के रहे है । तो जैसे राष्ट्रीय मनोरंजन सेवा विविध भारती के लिये चार मेट्रोझ को छोड कर रा्ष्ट्रीय एफ़. एम. नेटवर्क मिला है, हर राज्यो के मुख्य प्राइमरी केन्द्रों के भी सम्बंधित राज्यव्यापी एफ़. एम. नेटवर्क स्थापित होने चाहिए, जिससे देश के हर कोनेमें लोग अपनी भाषाके क्षेत्रीय समाचार बुलेटीन, क्षेत्रीय भाषाओमें राष्ट्रीय समाचार बुलेटीन और क्षेत्रीय नाट्य, सुगम और फ़िल्मी संगीत (जिसका काफ़ी अमूल्य संग्रह हर राज्यो के मुख्य आकाशवाणी केन्दो के पास है), केबल या डी. टी. एच. के बीना बेटरी से चलने वाले रेडियो या एफ़. एम.रेडियो वाले मोबाईल फोन पर भी सुन सके । हाँ एक बात है, कि निजी चेनल्स को हम अनुसासन सिखाते है, तब यह भी जरूरी है, कि आकाशवाणी के हर बुलेटीन भी प्रधान मंत्री या सत्तामें रही राजकिय पार्टी के अध्यक्ष को लि कर शुरू नहीं होने चाहिए । नहीं तो लोगो के उब जाने की भी सम्भावना रहेगी, जैसे शहरोमें निजी समाचार केबल टी. वी. चेनल्स के साथ होना शुरू हो गया है ।
पियुष महेता ।
सुरत-३९५००१.
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