लगभग आज से चौबीस- पच्चीस साल पहले की बात होगी तब एक छोटा बच्चा अपने घर से स्कूल जाने के लिये निकलता है। स्कूल का समय है सुबह सात बजे से बारह बजे तक का सो सात वजे से पहले नहा धो कर स्कूल जाने के लिये घर से चल पड़ा है।
स्कूल भी बहुत दूर है घर से स्कूल के पास पहुँचले पहुँचते रेडियो पर बजते भजनों की आवाज कानों में पड़ती है, हे राम नाम रस भीनी रे चदरिया झीनी रे झीनी......... गायक शायद अनूप जलोटा या उनके पिताजी पुरुषोत्तम दास जलोटा रहे होंगे। भजन की मधुरता में खो कर स्कूल जाने की बजाय वह बच्चा वापस घर की और भागता है।
घर में घुसते ही बच्चे के माता पिता पूछते हैं क्या हुआ स्कूल क्यों नहीं गए अब तक? तो वह बच्चा अपने पिताजी को हाँफते हुए कहता है पापाजी आप जल्दी से रेडियो चालू कीजिये आकाशवाणी जयपुर जोधपुर पर बहुत अच्छा भजन आ रहा है, पिताजी रेडियो चालू करने की बजाय बच्चे को एक तमाचा लगा देते हैं, इतनी बात कहने के लिये तुम स्कूल से भाग कर आये हो। बच्चा रुआंसा हो जाता है और वापस स्कूल जाता है, स्कूल देर पहुँचने पर एक बार और पिटाई होती है।
खैर बच्चा कौन था ....आप समझ ही गये हैं, जी हाँ वह रेडियो और संगीत का दीवाना बच्चा मैं ही था।
स्कूल से बारह बजे छुट्टी होती । स्कूल से वापस आने पर एक बजे फिर से रेडियो शुरु होता जो तब तक चलता तब तक पापाजी घर नहीं आ जाते। फिर पापाजी आ कर समाचार सुनते। फिर देर रात तक पुराने गाने। बरसों तक यह सिलसिला चलता रहा।
फिर अचानक एक दिन दूरदर्शन आ गया कुछ सालों तक तो रेडियो से दूर होते गये, पर दिन में तो रेडियो फिर भी चलता ही था, क्यों कि उन दिनों टीवी शाम को चालू होता था, और कृषि दर्शन जैसे ना समझ में आने वाले कार्यक्रम भी हम मजे से देखते थे;पर उसमें एक बहुत बड़ी कमी थी कि जब टीवी देखते तब दूसरा कोई काम नहीं कर सकते थे, जब कि रेडियो कभी भी कहीं भी और कुछ भी करते समय सुन सकते थे... यहाँ तक कि होमवर्क करते समय भी। कई बार तो भूले बिसरे गीत ( भू. बि. गीत- कार्यक्रम नहीं सचमुच के भूले बिसरे गीत) सुनते सुनते ही नींद आ जाती और बाद में मम्मीजी रेडियो को बन्द करती।
यूनूस भाई ने एक दिन बात बात में कही और कुछ शुरुआती तकलीफों के बाद आखिरकार रेडियो नामा शुरु हुआ और अफलातूनजी, संजय पटेल जी, लावण्या जी, और यूनूस भाई ने अपने अपने संस्मरण हमें बता तो बचपन की वे सारी बातें मुझे भी याद आ गई।
रेडियो मेरी जिन्दगी से आज भी जुड़ा हुआ है, आल इण्डिया रेडियो की उर्दू सर्विस तो अब साफ सुनाई नहीं देती परन्तु विविध भारती से आनन्द तो आज भी उठा ही रहा हूं मैं। सुबह उठते ही सबसे पहले रेडियो चालू होता है।
बाकी बातें और कभी ..
7 comments:
बहुत अच्छा संस्मरण है ।
सागर भाई, रेडियो जिंदगी के बैकग्राउंड म्यूजि़क की तरह है ।
वो रेडियो ही तो है जो हमें और आपको एक मंच पर खड़ा करके जोड़ रहा है ।
अच्छा संस्मरण है. इतना ज्यादा तो नहीं मगर फिर भी बहुत हद तक रेडियो हमारे बचपने में भी शुमार था. अच्छा लगा पढ़कर.
रेडियो का जादू है ही ऐसा !
श्री युनूसजी,
कल यनि १५ सितम्बर के दिन हिन्दी और गुजाराती फ़िल्मो और नाटक के अभिनेता और तीसरा किनारा और जुजराती फ़िल्म विसामो (फ़िल्म बागबां, अवतार सुर संजीव कूमार अभिनीत जिन्दगी ) के निर्देषक श्री क्रिष्नकांतजी का जन्म-दिन है । उनका जन्म हावरा (कोलकटा)में १९२० के दिन हुआ था । फ़िल्म पतितामें उन्होंने अपने जवानी के दिनोंमें ही नायिका उषा किरणके अपाहिज पिता का किरदार निभाया था । तब से उन पर हमेश इस लाईनमें होता है वे नायिका के पिता ही बन गये । फ़िल्म तीसरा किनारा उनकी निर्देषित फ़िल्म है । कई गुजराती नाटकोमें भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं कि है । आकाशवाणीने उनका लम्बा आर्काईवल इन्टर्व्यू रखा है ।
अभी पिछले सप्ताह रेडियो श्री लंका के १९५६ से १९६७ तक वहां सक्रिय उद्दघोषक श्री गोपाल शर्माजी सुरत आये थे । मूझे खुशी है कि मैं उन दोनो पुराने मित्रो के लम्बे अरसे बाद हुए मिलन का निमीत बननेका सौभाग्य प्राप्त हुआ । श्री गोपाल शर्माजी की एक छोटी सी पर जाहेर सभा भी मेरे अनुरोघ पर मेरे कुछ मित्रो के दिली सहयोगसे हो सकी । और वे मेरे घर भी आये थे । रेडियो श्री लंका के बुधवारीय सजीव फ़ोन इन कार्यक्रममें मुझे यह सब कहने का इसी ११ सितम्बर को मोका मिला था, जो बात उद्दघोषिका श्रीमती ज्योति परमारजी के साथे रात्री ८.२५ पर भारतीय समय के अनुसार हुई थी । आज सुबह ७.४५ पर अन्य उद्दधोषिका श्रीमती पद्दमिनी परेराने मेरे नाम का जिक्र करते हुए ज्नको जन्मदिनकी बधाई दी ।
श्री क्रिष्नकांतजी को ८६वी साल गिरह की हार्दिक बधाई ।
पियुष महेता (सुरत)।
दि. १४-०९-२००७.
कृष्णकांतजी को जन्म दिन की हार्दिक बधाई, आदरणिये केके शतायु हों ऐसी कामना करते हैं।
अच्छा लगा पढ़ कर !
अच्छा लगा पढ़कर. ऐसा लगता है की हम सभी इसी तरह के अनुभवों से गुजरे है.
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