पिछली कडी
टी.वी के आने के बाद धीरे धीरे रेडियो का समय सिकुड्ने लगा, फ़िर भी छाया गीत रोज सुना जाता रहा, अमीन सायानी को बिनाका गीत माला मे बोलते सुन सुन कर रेडियो उद्गोषक बनने की इच्छा दिल मे घर करने लगी, एक दो बार युवावाणी से महफ़िल प्रस्तुत करने का मौका भी मिला, फ़िर केबल आया तो रेडियो बिल्कुल छुट गया.
आज नये एफ़.एम. चैनलो और रेडियो मोबएल ने आकर एक बार फ़िर से रेडियो को पुनर्जीवित तो कर दिया है पर फ़िर भी वो विविध भरती के दिन -रात कुछ और ही होते थे..... लता जी, किशोर, रफ़ी, मुकेश, मन्न डे, हेमन्त दा, कितने कितने उम्र भर के मीत दिये हमे इसने.
आज भी रोज सुबह उटकर और रविवार पूरा दिन रेडियो सुना करता हू, अभी बीते सप्ताह युनुस भाई को हिन्द युग्म पर बोलते हुए सुनने के लिये, बहुत मशक्कत की विविध भारती tune करने की, पर कमबख्त फ्रिकुवेंसी पकड ही नही पाया, जिस तरह चैनलो की भीड मे भी याद आते है, दूरदर्शन के पुराने धरावाहिक, उसी तरह एफ़ एम चैनलो की इस बाड़ मे भी कमी मह्सूस होती है विविध भारती की, वो धुन (signature tune ) जो विविध भारती पर कार्यक्रम शुरू होने से पहले बजती थी क्या आज भी बजती है? छाया गीत क्या आज भी प्रसारित होता है ? पता नही ....
अपने इस सबसे पुराने दोस्त को आज देने के लिये कुछ भी नही है मेरे पास - बधाइयो के सिवा.
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Sunday, September 30, 2007
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1 comment:
signature tune से ही हमारे परिवार की सुबह होती है।
अच्छा नाम दिया आपने - उम्र भर का मीत
अन्नपूर्णा
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।