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Thursday, January 10, 2008
चुन-चुन करती आई चिडिया ....
कुछ याद आया इस गाने को सुनकर ,जी हाँ हम उस पुराने जमाने की बात कर रहे है जब रविवार की सुबह का हम सबको बेसब्री से इंतजार रहता था।अरे हम रविवार की सुबह आने वाले बच्चों के कार्यक्रम की ही बात कर रहे है। उस कार्यक्रम मे आने वाले भईया और दीदी अक्सर ही इसी गाने से कार्यक्रम की शुरुआत किया करते थे।उस समय तो हम लोग इस गाने को सुनकर ही मस्त हो जाते थे । रविवार को हम लोग सुबह से ही रेडियो सुनने बैठ जाते थे। भईया और दीदी की नोंक -झोंक सुनने मेखूब म़जा आता था।
पहले रसगुल्ले वाले भईया आया करते थे और जब भी दीदी उन्हें कुछ करने या बताने को कहती तो वो हमेशा ही रसगुल्ले की फरमाईश किया करते थे और कहते थे कि अगर आप रसगुल्ले खिलाएँगी तभी हम काम करेंगे। और दीदी को उन्हें रसगुल्ला खिलाने के लिए हामी भरनी पड़ती थी।ये रसगुल्ले खाने का सिलसिला काफी दिनों तक चला था।
बाद मे रसगुल्ले वाले भईया चले गए थे और उनकी जगह करेले वाले भईया आ गए थे जो हर काम के लिए दीदी से करेले की फरमाईश किया करते थे।इन करेले वाले भईया को रसगुल्ले बिल्कुल पसंद नही थे। और रसगुल्ले का नाम लेते ही वो गुस्सा हो जाते थे।और दीदी हंसकर कहती की अच्छा अब वो रसगुल्ले का नाम नही लेंगी।
उस समय चाहे करेले वाले भईया थे या रसगुल्ले वाले भईया थे पर वो दोनों भईया बच्चों को रविवार की सुबह अच्छी-अच्छी बातें बताते थे और अच्छे-अच्छे प्यारे-प्यारे गीत सुनवाते थे।और हम बच्चों के सन्डे की अच्छी शुरुआत होती थी।
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6 comments:
ममता जी यहां हैद्राबाद में हमने ये कार्यक्रम कभी नहीं सुना पर आपके चिट्ठे से लगता है कार्यक्रम ज़रूर मज़ेदार रहा होगा।
शायद पियूष जी दोनों भईया और दीदी के नाम बता सकें।
अन्नपूर्णा
आप इस तरह की जानकारी "रंगकर्मी" पर भी प्रकाशित कर सकते हैं। इसके लिये प्लीज़ लॉग आन करें.... www.rangkarmi.blogspot.com
आदरणिय श्री ममताजी और श्री अन्नपूर्णाजी,
मूझे यह कार्यक्रम केन्द्रीय विविध भारती सेवासे कभी भी आया था ऐसीसा धूंधली सी याद भी नहीं आ रही है । पर यह कार्यक्रम उत्तरी क्षेत्रके कोई स्थानिय विविध भारती के विज्ञापन प्रसारण सेवा के केन्द्र से या क्षेत्रीय उत्तर भारतीय प्रायमरी चेनल पर हो रहा होगा ऐसा मेरा सोचना है । अन्नपूर्णाजी से एक बातकी क्षमा चाहता हूँ कि मेरे श्री गोपाल शर्माजी के पोस्ट पर इन्की टिपणी पढी़ तो थी पर हर रोज दो ही टिपणी का अंक देखता रहता था और फि़र आप पूछेगी की श्री अजित वडनेरकरजी बीचमें कहाँ से इस बातमें आ गये तो इसका उत्तर यह है की उन्होंनें निजी़ मेईल करके गोपल शर्माजी की आत्मकथा की प्राप्तिस्थानके बारेमें पूछा था तो वह मेईल का हमारी बेन्क वालो की भाषामें मिस-पोस्टींग मेरे दिमागने इस मेरे पोस्ट की टिपणी के रूपमें कर दिया जो अब सुधार लिया है । आज रेडियो श्रीलंका परसे स्व. नादिराजी की फिल्मो से लिये गये उन पर या अन्य कलाकारों पर ( विषेश तौरसे स्व. राज कपूर और श्री शम्मी कपूरजी पर ) फिल्माये गये गाने सुने या नहीं । आप जो रेकोर्डिंग की बात कर रहे है, वह सुनवाना एक तो रेकोर्डिंग की गुणवत्ता और दूसरा मेरा अपने आपके लिये अति-प्रचार गीने जाने की संभावना की आशंका होने के कारण रूक गया था । पर अब एक रेडियो श्रोता के रूपमें आपकी खुशी के लिये अपने कम्प्यूटर से ढूंढ पाने पर रखूँगा जरूर ।
पियुष महेता ।
सुरत-३९५००१.
बहुत प्यारा गीत और उतनी ही अच्छी लगी अतीत की यादें..
पीयूष जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए। वास्तव में सवेरे मैं 8 बजने से पहले ही घर से निकल जाती हूं इसीलिए ऐसे कार्यक्रम छुट्टी के दिन ही सुन पाती हूं।
ममता जी, आपसे एक अनुरोध है कि कृपया अपने चिट्ठे पर यह भी बता दे कि कार्यक्रम क्षेत्रीय है या विविध भारती की केन्द्रीय सेवा का है।
अन्नपूर्णा
अन्नपूर्णा जी और पीयूष जी ये कार्यक्रम क्षेत्रीय (उत्तर भारत) ही रहा होगा क्यूंकि इलाहाबाद और लखनऊ मे हम लोग ये बच्चों वाला कार्यक्रम सुनते थे।
परवेज आपका शुक्रिया। वैसे आप चाहें तो इसे रंगकर्मी पर आप लिंक कर सकते है।
मीनाक्षी जी आपको गीत अच्छा लगा ये जानकार हमे ख़ुशी हुई।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।