आज सुबह संगीत सरिता में श्रृंखला कार्यक्रम ध्रुपद धमाल का सुरीला संसार की अंतिम कड़ी प्रसारित हुई। आठ कड़ियों की इस श्रृंखला में ध्रुपद गायकी से परिचित करवाया उदय भवालकर जी ने।
संगीत के क्षेत्र में शास्त्रीय संगीत वैसे ही एक कठिन विधा है इस पर ध्रुपद गायकी तो और भी कठिन है लेकिन इसे समझने में इस श्रृंखला से बहुत सहायता मिली।
बहुत ही सरल शैली में सहजता से इसकी बारीकियों को बताया गया। साथ ही विभिन्न रागों में इसके सुर-ताल की बंदिशे भी प्रस्तुत की गई। मुझे सबसे अच्छी लगी राग सोनी पर आधारित प्रस्तुति।
आज अंतिम कड़ी में राग मालकौंस प्रस्तुत हुआ। जब मैनें इसकी बंदिश सुनी तो मुझे याद आ गई बचपन की संगीत कक्षा जहां हमारी शिक्षिका श्रीमती कमला पोद्दार ने हमें इस राग में एक बंदिश सिखाई थी जिसके बोल थे -
कोयलिया बोले अमवा की डाल पर
ॠतु बसन्त की देत सन्देशवा
विविध भारती के इस कार्यक्रम से तो रसिक श्रोताओं को आनन्द आता ही है और मेरे जैसे श्रोता भी इसकी हर कड़ी से अपने आपको कुछ अधिक जानकर महसूस करने लगते है। विशेषकर रूपाली (रूपक - कुलकर्णी) जी की हर प्रस्तुति पारम्परिक संगीत के ज्ञान को बढाती ही रही।
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Friday, January 18, 2008
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1 comment:
अन्नपूर्णा जी आपके माध्यम से हम एक बार फिर विविध भारती से जुड़ने लगे है।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।