अपने मोबाइल फोन के विज्ञापन में रिलायंस कंपनी ने कहा - सारा जहां अब हाथों में
यह कुछ हद तक सच है। आज कई सुविधाएं मोबाइल फोन में है और कई सुविधाएं देने के प्रयास किए जा रहे है। विविध भारती ने भी अपने मंथन कार्यक्रम में इस पहलू को छुआ है।
पिछली बार मंथन में चर्चा का विषय था मोबाइल फोन की कैमरा और वीडियो रिकार्डिंग जैसी सुविधाओं के बुरे प्रभाव। ख़ैर यह अलग मुद्दा है। आज हम चर्चा कर रहे है मोबाइल फोन की एक ही सुविधा की, और वो है - रेडियो
कुछ समय पहले स्थिति ये थी कि क्रिकेट मैच होने पर लोग जब घर से बाहर निकलते थे तो कान से ट्रांज़िस्टर लगाए रहते थे। क्रिकेट की बात न भी करें तो घर से बाहर रहने का मतलब होता था रेडियो से दूर रहना।
घर से बाहर अगर रेडियो सुनना होता तो छोटा सा ट्रांज़िस्टर साथ में रखना पड़ता था जिसके लिए नियमित सेल खरीदने होते। जब सेल नए होते तो खोलते ही तेज़ आवाज़ आती जिसे कम नहीं किया जा सकता और सेल जब पुराने होने लगते तो कान से लगा कर सुनना पड़ता यानि अच्छा ख़ासा व्यायाम होता तिस पर औसत आवाज़ में सुनना कभी- कभी मुश्किल होता और जो पास होते उन्हें भी तकलीफ़ होती।
ये मेरा अपना अनुभव है कि जब भी सेल नए हुए कि आवाज़ कमरे से निकल कर गलियारे तक गूंजी और कार्यालय का शिष्टाचार भंग हुआ। जब से मोबाइल फोन पर रेडियो सुनने की सुविधा मिली तब से ऐसी कोई दिक्कत नहीं।
मोबाइल फोन पर अन्य सुविधाएं तो फोन की कीमत के साथ-साथ बढ रही है लेकिन रेडियो की सुविधा तो सस्ते फोन में भी है।
सिर्फ़ विविध भारती की केन्द्रीय सेवा ही नहीं क्षेत्रीय एफएम चैनल भी सुने जा सकते है। रेडियो की तरह बार-बार फ्रिक्वेन्सी सेट करने की भी ज़रूरत नहीं, एक बार फ्रिक्वेन्सी के नंबर फीड कर दीजिए फिर बटन दबाते जाइए और एक के बाद एक चैनल सुनते जाइए।
अपने सामने मेज़ पर फोन रख कर आवाज़ जितनी चाहो उतनी रख सकते हो। यात्रा पर हो तो बैग में फोन रख लो और हेड फोन का प्लग कान में लगा लो। केवल एक कान में प्लग लगा कर भी रेडियो का आनन्द ले सकते है। अब कभी कोई कार्यक्रम सुनने से नहीं चूक सकते।
मंथन में तो बात चली बुरे प्रभाव की मगर हम तो कहेगें कि फोन ने तो विविध भारती से श्रोताओं को अधिक जोड़ दिया। मंथन में कहा गया कि हर जेब में मोबाइल, तो जनाब ! हर जेब में विविध भारती भी तो है।
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Wednesday, January 23, 2008
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3 comments:
सही कहा आपने, मोबाइल की वज़ह से काफी सुविधा हो गई है। अभी पिछले हफ्ते नागपुर और फिर दुर्गापुर गया था और अपने मोबाइल से फुर्सत के क्षणों में एफ एम सुनता रहा। आनंद तो आता है पर निजी एफ एम चैनल्स की प्रोग्रामिंग में अभी काफी सुधार की गु्जाइश है।
डा अजीत कुमार जी अपनी टिप्पणी यहां नहीं कर पाए और मुझे मेल की जो इस तरह है -
रिलाइंस की पंच लाइन थी - कर लो दुनिया मुट्ठी में
बहरहाल, दुनिया मुट्ठी में तो आ ही गई है। यदि आप क्रिकेट सुनना चाहे तो अभी भी आपको इंतज़ार करना पड़ सकता है क्योंकि मैच तो AM पर ही अभी भी आते है और AM की सुविधा तो अभी किसी मोबाइल में नहीं हुई है।
इस पोस्ट के लिए धन्यवाद।
अन्नपूर्णा जी भली कही है आपने।
पर हम मोबाइल पर रेडियो कम क्या बिल्कुल ही नही सुनते है।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।