अविनासजीने दिल्ही के जनसत्तामें रेडियोनामा के बारेमें यादों का सिलसिला शिर्षक से लेख युनूसजी के सौजन्यसे पढा इस लिये इस ब्लोग के मुख्य और शुरूआती लेखक श्री युनूसजी को बधाई । पर नीचे दी गयी अनापूर्णाजीकी मूल पोस्ट की प्रत और अविनासजीने जनसत्तामें उस पोस्ट को दिखनेमें तो जैसे का तैसा प्रसिद्ध किया, पर हकिकतमें बोल्ड और अन्डर-लाईन किये हुए शब्दो को परिवर्तीत किया है जो मूझसे सम्बन्धित है । यह घटना गुजरात और खास सुरत के लोगो के प्रति उनकी मानसिकता और संकुचित सोच का परिचय करवाती है ।
कृपया इस ब्लोग के सहपाठी मेरी इस बात को अपने उपर न ले ।
अन्नपूर्णाजी की मूल पोस्ट :
अपने पिछले चिट्ठे में मैनें लोकप्रिय कार्यक्रम एक और अनेक की चर्चा की थी। इस पर पीयूष जी की टिप्पणी आई और मुझे लगा कि शायद एक बार फिर मैं सीलोन के कार्यक्रम सुन सकती हूँ।
पिछले कुछ समय से या कहे कुछ अरसे से मैं सीलोन नही सुन पा रही थी। पहले तो तकनीकी वजह से रेडियो में सेट नहीं हो रहा था फिर आदत ही छूट गई थी।
जब से रेडियोनामा की शुरूवात हुई सीलोन फिर से याद आने लगा। वैसे यादों में तो हमेशा से ही रहा पर अब सुनने की ललक बढ़ने लगी। इसीलिए मैंने पीयूष जी से फ्रीक्वेंसी पूछी और इसी मीटर पर जैसे ही मैंने सेट किया रफी की आवाज़ गूंजी तो लगा मंजिल मिल गई।
गाना समाप्त हुआ तो उदघोषिका की आवाज सुनाई दी पर एक भी शब्द समझ में नहीं आया। इसी तरह से बिना उद्घोषणा सुने एक के बाद एक रफी के गीत हम सुनते रहे। गाइड , यकीन और एक से बढ़ कर एक गीतकार शायर - राजेन्द्र क्रष्ण , हसरत जयपुरी...
खरखराहट तो थी फिर भी आवाज थोडी साफ होने लगी और अंत में सुना - आप सुन रहे थे फिल्मी गीत जिसे रफी की याद में हमने प्रस्तुत किए। फिर कुछ आवाज साफ सुनाई नहीं शायद उदघोषिका ने अपना नाम बताया जो हम सुन नहीं पाए।
अब भी संदेह था कि सीलोन है या नहीं तभी साफ सुना - ये श्री लंका ब्राड कास्टिंग कार्पोरेशन की विदेश सेवा है। अब ये सभा समाप्त होती है।
बहुत-बहुत धन्यवाद पीयूष जी , हमने अपने घर में ये बहुत लंबे समय बाद सुना।
यह जनसत्ता का रिपोर्ट :
मैनें रेडियो को वैसे ही बंद कर दिया है और उसे केवल सीलोन सुनने के लिए रख दिया है। विविध भारती दूसरे रेडियो से सुनेगे। सीलोन रोज सुनने की कोशिश करेगे और हो सके तो रेडियोनामा पर इस बारे में लिखेगे भी।
पिछले कुछ समय से या कहें कुछ अरसे से मैं सीलोन नहीं सुन पा रही थी । पहले तो तकनीक की वजह से रेडियो में सेट नहीं हो रहा था । फिर आदत छूट गयी थी । जब से रेडियोनामा की शुरूआत हुई, सीलोन फिर से याद आने लगा । वैसे यादों में तो हमेशा रहा है, पर अब सुनने की ललक बढ़ने लगी । इसलिए मैंने फ्रीक्वेन्सी पता की और इसी मीटर पर जैसे ही मैंने सेट किया । रफी साहब की आवाज़ गूंजी तो लगा कि मंजिल मिल गयी । गाना समाप्त हुआ तो उदघोषिका की आवाज़ सुनाई दी पर एक भी शब्द समझ में नहीं आया । इसी तरह से बिना उदघोषणा सुने एक के बाद एक रफी के गीत हम सुनने रहे । गाईड, यकीन, और एक से बढ़कर एक गीतकार । शायर राजेंद्र कृष्न, गीतकार हसरत जयपुरी.....
खरखराहट तो थी फिर बाद में आवाज़ थोड़ी साफ होने लगी और अंत में सुना: आप सुन रहे थे फिल्मी गीत, जिसे रफी की याद में हमने प्रस्तुत किये ।
पियुष महेता ।
सुरत-३९५००१.
सबसे नए तीन पन्ने :
Sunday, January 13, 2008
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2 comments:
peeyush jee thoda edit keejeey.
jansatta ki report ke neeche ki do lines bhi meri original post ki hai.
annapurna
आदरणिय श्री अन्नपूर्णाजी,
कोपी पेस्ट करते समय दो लाईन छूटने पर भी मेरा मूल सवाल जो उस ’लेखक महाशय’ की मानसिकता के बारेमें मेरे विचार नहीं बदलने वाले है । यह तो उलटा यह साबित करता है, कि वे सब अभ्यासपूर्ण रूपसे पढ़ कर भी बातको अपनी चाह के मूताबी़क थोडा़ सा मरोड़ना पसंद करते है । अगर उनका ई मेईल मिल पाता तो मैं इस ब्लोग की जगह उनको सीधा ही लिख़ता । आप तो रेडियो से जूडी़ है । किसी मेहमानकी लम्बी रेडियो मुलाकात को जब समय के हिसाबसे सम्पादित किया जाता है तब समय के अलावा सिर्फ़ स्लील अस्लील के हिसाबसे ही नहीं पर कोई दूसरे जाने पहचाने व्यक्ति की तारीफ़ या निंदा को चेनल के निर्देषक या कार्यक्रम निर्माता के नझरिये से अलग हुई तो भी काटा जाता है । मेरा सुरत आकाशवाणी केन्द्र पर श्री गोपाल शर्माजी की साल गिराह पर फोन इन कार्यक्रम का अभी का ही अनुभव है । इतना ही नहीं एक बार विविध भारती के हल्लो फरमाईश कार्यक्रममें मैनें हाल सुरत निवासी अभीनेता और निर्देषक श्री क्रिष्नकांतजी पर फिल्माया हुआ एक गाना पसंद करके उनके बारेमें बताया था तो मेरी फरमाईश तो आयी थी पर उसमें से क्रिष्नकांतजी की पूरी बात गायब थी । और इसकी करूणता तो इस बातसे थी, कि मेरे कहने पर क्रिष्नकांतजीने यह कार्यक्रम सुना था । उन्हों ने भले ही नायक नहीं बने थे । पर उनके साथ वाले श्री जयराजजी और श्री चंद्रशेखरजी हीरो बने थे वे फिल्में साफ़ सुथरी और अच्छी होने पर भी फिल्म्री दुनिया के हिसाबसे वे बी या सी ग्रेड की ही कही जाती थी, पर वे मुम्बईमें होने के कारण उनको अपनी ढलती उम्रमें रेडियो नसीब हुआ । पर अगर विविध भारती दिलसे चाहे तो श्री जयंत नारलीकर साहबकी तरह ( जैसे श्री कमल शर्माजी पूना गये थे और वि. प्र. सेवा पूना के साथ मिलकर यह मुलाकात रेकोर्ड की थी ।)विविध भारती सेवा आकाशवाणी सुरत के साथ मिल कर भी तय कर सकती है या वि. प्र. सेवा सुरत की भेट के रूपमें भी प्रस्तूत किया जा सकता है, सेल्यूलॊईड के सितारें या हमारे मेहमान अंतर्गत । एक बात मैं मानता हूँ, कि भाषा अनुसाशन हमें जरूर बनाये रख़ना है, पर दिलमें जो सच लगे वही कहना या लिख़ना और जरूर लिख़ना चाहिए ।
पियुष महेता ।
सुरत-३९५००१.
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।