विविध भारती के सबसे पुराने कार्यक्रमों में से है जयमाला। हमेशा से ही इस कार्यक्रम का स्वरूप लगभग एक जैसा रहा है। बहुत ही हल्का सा परिवर्तन इसमें नज़र आया।
सालों से सुन रहे है शाम का समय और फ़ौजी भाइयों की फ़रमाइश पर बज उठते है गीत। वही एक तरीका - फ़िल्म का नाम, गीतकार संगीतकार गायक का नाम, फ़ौजी भाइयों के नामों की सूची उनके पदनामों के साथ जैसे हवालदार, ग्रेनेडियर (शायद लिखने में ग़लती हो), मेजर, पहले ये पदनाम बहुत सुनाई देते थे - लांसनायक और रेडियो आपरेटर
शनिवार आया तो प्रसारित हो गई विशेष जयमाला जिसमें किसी फ़िल्मी हस्ती की आवाज़ सुनाई देती है और साथ में बजते है उस हस्ती की मर्ज़ी से कुछ गीत।
कुछ समय से रविवार को जयमाला संदेश कार्यक्रम प्रसारित होता है। इसमें भी पत्र ही पढे जाते है। कभी किसी फ़ौजी का पत्र परिवार वालों के लिए तो कभी परिवार के लोग अपने फ़ौजी भाई के नाम संदेश भेजते है।
मुद्दा ये कि जयमाला में फ़ौजी भाइयों की आवाज़ सुनाई नहीं देती है। अन्य कार्यक्रमों में हम श्रोताओं की आवाज़ सुनते है।
हैलो फ़रमाइश में श्रोता फोन पर बात करते है और अपनी पसन्द के गीत बताते है। हैलो डाक्टर में डाक्टर साहेब बीमारियों की बात करते है। मंथन में श्रोता फोन पर किसी मुद्दे पर चर्चा करते है।
और तो और विविध भारती परिवार की नई-नवेली सदस्या सखि-सहेली को देखिए। विविध भारती परिवार में सखि-सहेली का जन्म हुआ तीन साल पहले और इतनी कम आयु में हर शुक्रवार फोन पर कहती है - हैलो सहेली और देश के कोने-कोने की सहेलियों से बतियाती है। फिर जयमाला में फ़ौजी भाइयों की आवाज़ क्यों नहीं ?
रोज़ सवेरे-शाम मैं जहां से गुज़रती हूं वहां रास्ते में एक मिलिट्री स्टेशन है। बहुत बड़ा परिसर है। यह वही जगह है जहां पिछले साल विश्व स्तर पर खेलों का आयोजन हुआ था। ऐसी और भी सैनिक छावनियां है शहर में। अन्य शहरों में भी सैनिक छावनियां है।
अच्छा लगेगा अगर विविध भारती की टीम इन छावनियों में ड्यूटी पर तैनात सैनिकों से बात करें और इस रिकार्डिंग को जयमाला में उन्हीं की फ़रमाइश के गीतों के साथ प्रस्तुत करें।
हम सुनना चाहते है फ़ौजी भाइयों की आवाज़। बंदूक थामे लोहे के हाथ वाले इन फ़ौजी भाइयों की आवाज़ क्या गरजदार रौबदार है या शहद सी मीठी है।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर विविध भारती से यही मेरा अनुरोध है। आप सबको
गणतंत्र दिवस की बधाई !
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7 comments:
अन्नपूर्णा जी,
अब ये तो विविध भारती ही बता सकती है कि वो आपके इस सुझाव पर क्या अमल कर सकती है. वैसे कभी कभी तो हम अपने फौजी भाइयों की आवाजें और उनकी खूबसूरत फरमाइशें हेलो फरमाइश पर सुन ही लेते हैं.
आपको और टिप्पणी के जरिये सारे भारतीयों को गणतंत्र दिवस की ढेरों बधाइयां.
इस पोस्ट के लिए धन्यवाद.
सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा.....
जय हिंद.
भई अन्नपूर्णा जी अब आपने जिक्र छेड़ ही दिया है तो ज़रा कुछ सूचनाएं हो जाएं, एक फ़रवरी को हम सभी सीमा सुरक्षा बल के फौजियों के बीच रहने और उनसे बातें करने के लिए पूरी टीम के साथ जैसलमेर जोधपुर जा रहे हैं । ये कार्यक्रम आपको मार्च में सुनाई देगा । आई एम एस विक्रांत से आपने एक कार्यक्रम सुना ही होगा जिसमें नेवी के लोगों की आवाज़ें आपने सुनी होंगी । रही बात रेगुलर कार्यक्रम की तो फोन पर आयडेन्टीफाय नहीं होता कि असल फौजी है या नहीं ।
बढ़िया सुझाव है अन्नपूर्णा जी।
यूनुस भाई बात चीत के दौरान तो पता चल ही जाएगा कि कॉलर कहाँ से है।
श्री युनूसजी,
आपकी बात बिल्कूल सही है । और हल्लो फरमाईशमें फौजी भाईयोँ के कई कोल्स शामिल होते ही है ।
पियुष महेता ।
सुरत
पीयूष जी कुछ समय से आप नज़र नहीं आ रहे थे आपको फिर से पढना अच्छा लग रहा है।
यूनुस जी जानकारी के लिय शुक्रिया।
अजीत जी, मनीष जी धन्यवाद।
मेरे चिट्ठे में एक बात ये भी थी कि सैनिक छावनियों में विविध भारती से कोई जाकर रिकार्डिंग कर लाए वैसे कार्यक्रम साप्ताहिक न सही मासिक भी हो सकता है।
सुझाव तो अच्छा है आपका। यहां गोवा मे तो रेडियो स्टेशन और सैनिक छावनी एक तरह से आमने सामने ही है।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।