सवेरे 8:30 में प्रादेशिक समाचार आकाशवाणी रांची से उसके बाद आकाशवाणी भागलपुर से शास्त्रीय गायन। उसी समय एक दिन मैंने रेडियो का कान उमेठा और पहुँच गए आकाशवाणी पटना के उर्दू प्रोग्राम में। सोचा उफ़! यहाँ भी चैन नहीं।
तभी अनाउंसर ने कहा - आइये सुनते हैं ग़ज़ल , आवाजें हैं अहमद हुसैन और मोह्हमद हुसैन की। मैंने फिर सोचा ये कौन नए साहब हो गए. उस समय मैं तो उन्ही तीनों का नाम जानता था,उसके अलावा कौन.
खैर, ग़ज़ल शुरू हुई। और जनाब! क्या खूब शुरू हुई। क्या खूब शायरी उस पर क्या नफासत भरी उम्दा आवाज़, दिल का गोशा-गोशा मानो रौशन हो उठा।
सच जैसा उन्होंने कहा था.... "चल मेरे साथ ही चल..." दिल उन्हीं दो आवाजों के पीछे चल ही तो पड़ा.जनाब अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन साहब की दिलकश आवाजें उस दिन पहली बार उस शानदार ग़ज़ल के रूप में सुनी और उनका बस मुरीद होकर रह गया।
"पीछे मत देख, ना शामिल हो गुनाहगारों में,
सामने देख कि मंजिल है तेरी तारों में॥
बात बनती है अगर दिल में इरादे हों अटल..
चल मेरे साथ ही चल........"
आकाशवाणी पटना का वो उर्दू प्रोग्राम फिर तो मेरा पसंदीदा कार्यक्रम ही बन गया जिसके जरिये मैंने अनेक शायरों के कलामों को सुना। पर उन सबकी चर्चा बाद में।
आज तो आप सुनें मेरी वही पसंदीदा ग़ज़ल जिसे अपनी आवाज़ से संवारा है जनाब अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन साहब ने.....
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Ahmed & Mohd. Hus... |
2 comments:
हमने पहले तो ये गजल नही सुनी थी पर अच्छी लगी।
अच्छा लगा अजीत जी, शुक्रिया !
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