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Wednesday, January 16, 2008

रेस की घोड़ी

रेडियोनामा के ब्लोग पर ऐसा शीर्षक पढ कर ही समझ में आ जाता है कि बात चल रही है हवामहल की। आपमें से बहुतों को याद भी आ गई होगी दिलीप सिंह की लिखी झलकी - रेस की घोड़ी

वैसे तो दिलीप सिंह ने हवामहल के लिए और भी झलकियां लिखी लेकिन मेरे लिए तराज़ू के एक पलड़े में सारी झलकियां है और दूसरे पलड़े में है रेस की घोड़ी

विषय की अगर बात करें तो इसका विषय सभी के लिए नहीं है। ऐसे विषय आमतौर पर वयस्कों के लिए होते है लेकिन लेखक का कमाल है कि यह परिवार के साथ बैठ कर सुनने का विषय बन गया है।

यह वयस्कों का विषय है - पति, पत्नी और वो

पति है रामलाल, पत्नी है कमला और वो है रीटा। क्या चयन है नामों का, लगता है साधारण जनता के नाम है। पूरी झलकी में ये तीनों ही है जिसमें से बड़ा हिस्सा पति-पत्नी की नोक-झोंक है जो हवामहल की ख़ास पहचान है।

रविवार की शाम है पति घर से बाहर जाना चाहता है प्रेमिका से मिलने पर अकेले बाहर निकलने का बहाना नहीं सूझ रहा और इसी उलझन में वह पता नहीं क्या-क्या बोल रहा है जो बातें तो बेवकूफ़ी की है पर अच्छा हास्य का माहौल बनाती है -

पत्नी - आजकल अख़बार में ऐसी ख़बरें (परलोक सिधारने की ख़बरें) कम आती है
पति - आजकल गर्मिया है न लोग शहर में है नहीं पहाड़ों पर गए है इसीलिए

पूरी झलकी में हास्य बना रहा पर शालीनता रही। जैसे -

पत्नी को शक होने लगता है तो पति उसे समझाता है कि शक करना बुरी आदत है तब पत्नी कहती है कि वह शक करने पर मजबूर हो जाती है -

पत्नी - तुम मुझे अपने साथ पार्टियों में क्यों नहीं ले जाते
पति - (मन में कह रहा है) तुम को साथ ले कर जाना तो ऐसे है जैसे पुलिस को साथ लेकर चोरी करने जाना।

फिर पत्नी को विश्वास तो हो जाता है कि पति के कोट पर लगा निशान लिपिस्टिक का नहीं रेस के टिकट देने वाली के सिंदूर का है जो उसने शगुन के तौर पर रेस जीतने के लिए लगाया, कोट पर पड़ा लम्बा बाल घोड़ी की दुम का है और जेब से निकला नंबर फोन नंबर नहीं बल्कि उस मैदान की लंबाई है जहां रेस होती है तभी आ धमकती है रीटा।

दरवाज़े पर ठेठ भारतीयपन देखिए -

रीटा - वो तुम्हारा पति है, वो तो मेरा ब्वाय फ़्रेंड है
पत्नी - ब्वाय फ़्रेंड की बच्ची, (और रीटा के बाल हाथ में आ जाते है)

और पत्नी का कहना - वो आई थी तुम्हारी रेस की घोड़ी रीटा और पति का कहना - अब कभी नहीं खेलूंगा ऐसी रेस।

इस विषय पर कई कहानियां लिखी गई, फ़िल्में बनी लेकिन कहीं न कहीं कुछ न कुछ ऐसा रहा जो परिवार के साथ बैठ कर आनन्द लेने से रोकता रहा पर इस झलकी में वो बात नहीं रही। तभी तो हवामहल कार्यक्रम ख़ास है और ख़ास है विविध भारती।

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