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Tuesday, November 13, 2007

साज़ और आवाज़

पिछले सप्ताह अपने चिट्ठे में पीयूष मेहता जी ने गुंजन कार्यक्रम की चर्चा की थी। आज मैं विविध भारती के ऐसे ही एक कार्यक्रम की चर्चा कर रही हूं - साज़ और आवाज़

पहले इस कार्यक्रम का प्रसारण दोपहर में होता था। समय 1:30 या 2:00 बजे कुछ ठीक से याद नहीं आ रहा। प्रसारण का दिन भी याद नहीं आ रहा।

कुछ समय बाद यह कार्यक्रम बंद हो गया। विविध भारती से ही बंद हुआ या क्षेत्रीय प्रसारण के कारण यहां हैद्राबाद में सुना नहीं जा सका इस बारे में ठीक से पता नहीं है।

कुछ समय बाद फिर से इसका प्रसारण शुरू हो गया। इस बार प्रसारण समय था रात में जयमाला के बाद 7:45 से 8:00 बजे तक। प्रसारण का दिन शायद रविवार। लेकिन अधिक दिन तक यह कार्यक्रम नहीं चला और कुछ ही साल से यहां सुनाई नहीं दे रहा है।

इस कार्यक्रम में एक फ़िल्मी गीत की धुन किसी साज़ पर बजाई जाती थी फिर यही गीत सुनवाया जाता था। गीत का विवरण तो बताया ही जाता था साथ में यह भी बताया जाता था कि धुन किस साज़ पर और किस कलाकार ने बजाई है।

माउथ आर्गन पर भी कई कलाकारों ने धुनें बजाई। किस्मत फ़िल्म (विश्वजीत और बबिता) में महेन्द्र कपूर के गाए गीतों की धुनें गिटार पर अच्छी लगती थी।

लव इन टोकियो फ़िल्म के लोकप्रिय गीत सायोनारा की धुन भी बहुत अच्छी लगती थी पर इस साज़ का नाम याद नहीं आ रहा।

सबसे अच्छी धुन थी सितार पर राग पहाड़ी में फ़िल्म प्रेमपर्वत के इस गीत की -

ये दिल और उनकी निगाहों के साए

मुझे खेद है कि इस समय एक भी वादक कलाकार का नाम मुझे याद नहीं आ रहा।

क्या ही अच्छा हो कि इस तरह की धुनें सुनाना विविध भारती फिर से शुरू करे। कम से कम पांच मिनट का ही कार्यक्रम जिसमें एक धुन और वादक कलाकार का नाम हो।

आज का युवा वर्ग भी संगीत से बहुत लगाव रखता है तो इन युवा कलाकारों को भी मौका मिल जाएगा और पुराने वादक कलाकारों की धुनें भी फिर से सुनने को मिल जाएगी।

4 comments:

Manish Kumar said...

पता नहीं आपने जिन समयों पर इस कार्यक्रम के प्रसारित होने की बात कही उस पर मैंने इसे कभी नहीं सुना। ये कार्यक्रम पटना के विविध भारती स्टेशन पर हवा महल के ठीक पहले आया करता था। इसलिए अक्सर जब हम सब हवा महल सुनने के लिए रेडिओ थोड़ा पहले आन करते ये कार्यक्रम भी रोज सुन लिया करते थे और हम सब भाई बहनों को ये पसंद भी आता था। तब ये रात नौ से सवा नौ के बीच आता था।

Anonymous said...

मनीष जी विविध भारती के कुछ कार्यक्रम कुछ क्षेत्रीय केन्द्रों पर सीधे प्रसारित नहीं होते बल्कि उनकी रिकार्डिग सुनाई जाती है।

रविवार को यह कार्यक्रम वर्ष 96 - 98 या आस-पास प्रसारित होता था जो रिकार्डिंग होती थी या सीधा प्रसारण यह ठीक से पता नहीं।

अन्नपूर्णा

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

आदरणीय श्रीमती अन्नपूर्णाजी,
जैसे लोग फिल्मी गीतो को याद रख़ते है , ठीक उसी तरह मैं फिल्मी धूनों को याद रख़ता हूँ । और मनमें ही मनमें लोग जिस तराह गानों के वाद्यवृंद के साथ शब्दावलि मन में याद रख़के गुनगुनाते है, ठीक उसी तरह मेरे दिमागमें उन धूनो का उस धून में मेलोडी पार्ट का एक या कभी कभी दो मुख्य साझ पर बजा हुआ हिस्सा और गीतोके वाद्यवृंद के हिसाब से धूनमे बजाया गये हिस्से वाली पर कभी थोडी सी अलग सी और मुल गीत की संगीत रचना की सरगम को कहीं साझो का फेर-बदल करके की गयी प्रस्तूती यह सब एक बार कोई धून मैं सुन लेता हूँ, तो मेरे दिमागमें काफी़ हद तक रेकोर्ड हो जाता है । और वही धून बादमें जब फिर सुननेमें आती है, और उस धून के बजाने वाले की माहिती एक बार रेडियो पर सुननी या रेकोर्ड या सीडी पर पढीं होती है, तब मेरे मनमें वह माहिती धूनको सुनते ही आ जाती है । मेरे अपने पास भी धूनो का तगडा संग्रह है, जो केसेट्स में है और जिसमें कई अलभ्य भी है जो रेडियो से भी इकठ्ठी की है उनको धीरे धीरे एमपी३ में तबदील कर रहा हूँ । अगर पाठको के रस का विषय रहा तो इनमें से कोई कोई इस ब्लोग पर प्रस्तूत अपनी सुविधा अनुसार करूँगा । आपने जो किस्मत फिल्म के लाखो है यहाँ दिल वाले की धून को याद किया है वह एक समय हवाईन गिटार पर शायद दिपानकर सेनगुप्ता की बजाई आती थी पर बादमें वही धून माऊथ ओरगन पर एक एच. एम. वी. की एल.पी. में श्री शैकत मुकरजीने बजाई । फिल्म लव इन टोकीयो के गीत सायोनारा की धून विविध भारती से नहीं पर रेडियो श्री लंकासे सोलोवोक्स पर श्री केरशी मिस्त्री और प्यानो-एकोर्डियन ( जो हकिकतमें एकोर्डियन ही होता है) पर स्व. श्री गुडी़ सिरवाईने युगल बंदीमें प्रस्तूत की थी । इस धूनमें ताल वाध्यो के सिवा पूरी धून बीच वाले संगीत के साथ इन दो कलाकारोने ही बजाई है । विविध भारती और रेडियो श्री लंका दोनो केन्द्रोके बहोत से लोग युनूसजी और रेडियो सखी ममताजी सहीत मेरे इस पागलपन से भली-भांती परिचीत है । मैनें धून आधारित कार्यक्रम को फिरसे शुरू करने के लिये कई बार लिखा है और इन दोनों सहीत और श्री महेन्द्र मोदी साहबको उनके कार्यालयमें भी कई बार बातें की है । आप सभी को पत्रावलिमें ई मेईल करे ऐसा मेरा आग्रह भरा अनुरोध है । फिल्म प्रेम पर्बत के गीत ये दिल और उनकी निगाहो के साये की धून मैनें सितार पर नहीं पर एक धून शहनाई पर कन्हैयालाल की (वाद्यवृन्द संयोजन श्री ऎनिक डेनियेल्स) और दूसरी पियानो पर श्री केरशी मिस्त्री की बजाई हुई सुनी है और दोनो की दोनो मेरे संग्रहमें है । करीब अगस्त २००२ के बाद साझ और आवाझ जो हर शुक्रवार के दिन ७.४५ से ८.०० बजे तक होता था जो बादमें उन लोगोने बंध करके जिज्ञासा उसी समय पर फिरसे शुरू किया है, और फिल्मी धूनो को अभी करीब शाम ६.०८ पर कोई भी उदघोषणा बिना प्रस्यूत किया जा रहा है । करीब ६ से ७ मिनिट की समय-पुर्ति के रूपमें, जिसमें ज्यादा तर प्रथम धून पूरी बजती है । सबसे पहेले गुन्जन कार्यक्रम करीब ११.३० या ११.४५ पर होती थी, जिस जमानेमें १०.१५ पर रसवंती पूराने गानों का आता था और १२.३० पर विविध भारती की दूसरी सभा समाप्त होती थी । बादमें १०.१५ और रात्री ९.१० पर गुन्जन शुरू होने पर साझ और आवाझ सिर्फ़ एक ही राग वाली शास्त्रीय वाद्य और कंठ संगीत का कार्यक्रम बना था जो संगीत सरिता शुरू होने तक चला था । और संगीत सरिता शुरु होने पर गुन्जन बंध कर साझ और आवाझ को शुरूमें उसी समय फिल्मी गीतो और उनकी धूनो का बनाया गया था । अगर किसी पाठक को इस बारेंमें वोईस चेटिन्गमें भी बात करनी हो तो स्वागत है । एक बार युनूसजीने अपने कार्यालयमें मुझसे विविध भारती की लायब्रेरीमें सालों से नहीं बजी ७८ आरापीएम और ईपीझ की लिस्ट मांगी थी जो सालों से इस चेनल पर एक लम्बे अरसे से नहीं प्रस्तूत हुई, तब मैनेम एक लम्बी लिस्ट वहाँ की वहाँ अपने दिमागी याददास्स्त पर लिख़ कर दी थी । पर हाय विविध भारती लायब्रेरी का रख़ रखाव ! वे ज्यादा कुछ नहीं कर सके । इस बारेमें रेडियो श्री लंका की लायब्रेरी का रख रखाव का मेरा अनुभव बहोत बहोत सुंदर रहा । वहाँ से मेरी याद दिलाई कई धूनो और गीतो जो अरसे से नहीं बजे हो श्रीमती पद्मिनी परेरा (जो भारतीय नहीं पर श्रीलंकन ही है फिर भी) बजाती ही है ।
पियुष महेता

annapurna said...

इस विस्तृत टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद पीयूष जी।

मैं चाहती हूं कि आप इन धुनों को प्रस्तुत करें।

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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

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