चिट्ठे पर चर्चा चल पड़ी है मंथन कार्यक्रम की तो मैनें भी सोचा कि क्यों न मंथन जैसे अन्य कार्यक्रमों की भी चर्चा कर ली जाए।
मंथन एक साप्ताहिक कार्यक्रम है जिसमें समसामयिक विषयों पर चर्चा होती है जैसे भारत ने खेल जगत की कौन सी प्रतियोगिता जीती या हारी। त्यौहार कैसे मनाए जा रहे है। बच्चों की शिक्षा का क्या हाल है। कुछ सामाजिक समस्याएं जैसे बाल मज़दूरी वग़ैरह वग़ैरह…
मेरी जानकारी में इस तरह का पहला कार्यक्रम है मंथन क्योंकि विविध भारती पर पहले शायद इस तरह के कार्यक्रम नहीं होते थे। परन्तु ऐसे कार्यक्रम क्षेत्रीय केन्द्र हैद्राबाद की विशेषता रही।
अन्य क्षेत्रीय केन्द्रों की तो मुझे जानकारी नहीं है लेकिन आकाशवाणी हैद्राबाद से ऐसे कार्यक्रम बहुत लोकप्रिय हुए। मंथन में तो तकनीकी सुविधा के कारण मुंबई में विविध भारती के स्टुडियो से देश के दूर दराज के कोने में बैठे श्रोता से किसी भी विषय पर फोन पर बात की जा सकती है और अलग-अलग क्षेत्रों के श्रोताओं की राय जान कर किसी विषय पर व्यापक चर्चा की जाती है।
लेकिन मैं जिन कार्यक्रमों की बात कर रही हूं वहां इस तरह की तकनीकी सुविधा नहीं थी। इसीलिए कार्यक्रम का स्वरूप भी अलग था। इन कार्यक्रमों में समसामयिक विषय या किसी समस्या पर श्रोताओं को जानकारी देने के लिए एक श्रृंखला प्रसारित की जाती थी।
इस श्रृंखला में कुछ ऐसे चरित्र होते थे जो समाज के विभिन्न वर्गों के आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते थे। दस मिनट का नाटक होता था जिसमें नाटकीय अंदाज़ में ही श्रोताओं को जानकारी दे दी जाती थी।
अक्सर ये कार्यक्रम साप्ताहिक होते थे लेकिन सत्तर के दशक में हैद्राबाद केन्द्र के उर्दू कार्यक्रमों मे एक ऐसा ही कार्यक्रम रोज़ प्रसारित होता था जिसका शीर्षक था छोटी छोटी बातें। वाकई समसामयिक विषयों पर बहुत सी बातें ऐसी होती है जो छोटी-छोटी ही होती है पर हम उन पर ध्यान नहीं देते जिससे हम समाज में ठीक से रह नहीं पाते और कई समस्याओं से अनजान रह जाते है साथ ही दुनिया की खबर भी नहीं रख पाते।
इसमें मुख्य चार चरित्र थे - चांद मियां जो अनपढ और दुनिया से बेखबर थे। उनकी पत्नी फातिमा बी भी ऐसी ही महिला थी। पत्नी क भाई लाला भाई कम पढा लिखा कम जानकार पर हीरो टाईप था। उनके घर उनके एक पढे लिखे पड़ौसी महबूब भाई रोज़ आते और दुनियादारी की बाते बता जाते थे।
कभी-कभी कभार कुछ और चरित्र भी जुड़ जाते जैसे प्याज़ बेचने वाले भीखू भाई, जानी मियां और बी पाशा का बहुत सारे बच्चों का परिवार, फातिमा बी की बहन मुन्नी जो कभी गांव से आ जाती।
इसे लिखा था अहमद जलीस ने जो उर्दू कार्यक्रम अधिकारी थे और जिन्होनें चांद मियां की भूमिका की थी।
ऐसा ही साप्ताहिक कार्यक्रम तेलुगु भाषा में भी होता था। ऐसा ही एक साप्ताहिक कार्यक्रम हिन्दी में महिला संसार में कार्यक्रम अधिकारी डा दुर्गा लक्ष्मी प्रसन्ना ने शुरू किया था - मौसी से मुलाकात शीर्षक से। जिसमें दो ही चरित्र थे - एक लड़की और उसकी मौसी जिसमें लड़की की भूमिका मैनें की थी और मौसी की भूमिका करने के साथ इसे लिखा भी था हैद्राबाद की जानी मानी कवियित्री, लेखिका डा प्रतिभा गर्ग ने।
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Wednesday, November 28, 2007
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