हवा महल हमारे देश के उन चुनिंदा स्थलों में से एक है जिसे देशी विदेशी पर्यटक पसन्द करते है। हवा महल में झरोखे ही झरोखे है इसीलिए यह अनोखा महल है जहां सिर्फ़ खिड़कियां है। खिड़कियों का मतलब होता है ताज़ा हवा के झोकें।
वैसे हवा महल के बारे में (राजस्थान में जयपुर स्थित वो हवामहल नहीं जिसकी हमने अभी चर्चा की) एक कहावत भी है हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों में - हवाई क़िले बनाना और डू नाट बिल्ड कैसेल इन द एयर
हमें ये तो पता नहीं कि विविध भारती के कार्यक्रम हवामहल का नाम इस महल से संबंधित है या कहावतों से। हमें तो रेडियोनामा के चिट्ठों से इतनी ही जानकारी मिली है कि हवामहल विविध भारती के शुरूवाती कार्यक्रमों में से एक है और ये नाम पंडित नरेन्द्र शर्मा ने दिया है।
हवामहल के झरोखों की तरह ही इस कार्यक्रम से जुड़े कुछ नाम है जिनकी सृजनशीलता न सिर्फ़ ताज़े हवा के झोकें है बल्कि माहौल को भी ख़ुशनुमा बनाते है।
सबसे पहले हम चर्चा करेंगें इसके निर्माता-निर्देशकों की। हास्य झलकियों के लिए पहला नाम है गंगाप्रसाद माथुर और उनकी सहायिका कुमारी परवीन (शायद नाम लिखने में ग़लती हो रही हो)
हास्य के अलावा सामाजिक समस्याओं पर आधारित नाटकों में पहला नाम रहा चिरंजीव का।
इसके अलावा साहित्य के कथा उपन्यास से भी नाट्य रूपान्तर किए गए जैसे शरतचन्द्र , रविन्द्रनाथ टैगोर, प्रेमचन्द की रचनाएं - परिणीता, नौका डूबी, जीवित या मृत, पूस की रात।
कुछ धारावाहिक के रूप में - मुंशी इतवारी लाल , म्यूज़िक मास्टर भोलाशंकर भी प्रसारित हुए।
इन्हें श्रोताओं तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण काम किया दीनानाथ जी, जयदेव शर्मा कमल, सत्येन्द्र शरत, चन्द्रप्रभा भटनागर
अब उन लेखकों की चर्चा जिनकी लेखनी ने इस कार्यक्रम में जान डाल दी। उल्लेखनीय नाम - के पी सक्सेना, दिलीप सिंह, सोमनाथ नागर और हैद्राबाद आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी और लेखक अज़हर अफ़सर
कलाकारों की बात करने से पहले एक बात बता दूं कि अधिकतर झलकियों में पति-पत्नी में नोंक-झोक होती थी जिसमें झगड़ालू पत्नी का सबसे अच्छा स्वर रहा - मंजू मिश्रा
अब उन झलकियों के नाम जो वर्षों से श्रोताओं के दिलों पर राज कर रही है - रेस की घोड़ी (दिलीप सिंह), टपकते सितारें (सोमनाथ नागर), ज़मीं के लोग, आसमान की सैर, मरने के बाद, करौंदे की चटनी, उदयपुर की ट्रेन और भी बहुत से नाम…
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4 comments:
shandar hawamahal
बहुत छोटा था तब पिताजी के साथ रात को ९.१५ बजे रोज सुनता था. कई बर्षों तक सुनता रहा पर धीरे -धीरे ये सब पीछे छूट गया. अब तो केवल यादे बाकी है. आज आपका लेख पढ़ कर याद आ गया.
वैसे अब तो हवामहल सुनना छूट ही गया है पर आपके जरिये हवामहल के बारे मे जानने को मिलता रहता है।
आशीष जी, बालकिशन जी और ममता जी चिट्ठे पर आने का शुक्रिया।
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