मेरे सांध्य गीत के चिट्ठे पर पीयूष जी ने अपनी टिप्पणी में उदयगान कार्यक्रम की चर्चा की थी। आज मैं भी उदयगान कार्यक्रम पर ही कुछ लिखना चाहती हूं।
ये कार्यक्रम पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। इसका अंश देशगान के रूप में रोज़ सुबह प्रसारित होता है।
पहले वन्दनवार में भजनों के बाद 15 मिनट का देशभक्ति गीतों का कार्यक्रम हुआ करता था - उदयगान। इसमें तीन देशभक्ति गीत सुनवाए जाते थे। हर देशभक्ति गीत का पूरा विवरण बताया जाता था जैसे - गीतकार, संगीतकार और गायक कलाकार के नाम।
आजकल वन्दनवार में अंत में एक देशभक्ति गीत सुनवाया जाता है जिसका विवरण अधिकतर नहीं बताया जाता। कभी-कभार गीतकार या गायक कलाकार के नाम या कभी दोनों नाम बता दिए जाते है। इनके संगीतकार के नाम जैसे वनराज भाटिया - ऐसे नाम तो शायद कुछ श्रोता जान ही नहीं पाते होगें।
कुछ गीत तो ऐसे भी है जिन्हें सुने एक अर्सा बीत गया। ये गीत है -
सुभद्रा कुमारी चौहान की रचना झांसी की रानी
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - भारती जय विजय करें
सुमित्रानन्दन पन्त - भारतमाता ग्राम वासिनी
सोहनलान द्विवेदी - बढे चलो बढे चलो
जयशंकर प्रसाद - यह भारतवर्ष हमारा है, हमको प्राणों से भी प्यारा है
अरूण यह मधुमय देश हमारा
श्यामलाल गुप्त पार्षद - विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा
बालकवि बैरागी - ये उम्र ये जवानी पाओगे कब दुबारा
मुझे प्यार से पुकारो मै देश हूं तुम्हारा
गिरिजा कुमार माथुर की अनुवादित रचना - हम होंगें कामयाब
और एक गीत जिसके गीतकार का नाम मुझे याद नहीं आ रहा -
देश की माटी कंचन है
अगर रोज़ गीत के साथ विवरण भी बताया जाए तो अच्छा रहेगा और उससे भी ज्यादा अच्छा होगा अगर उदयगान शीर्षक से ही दुबारा १५ मिनट का ही कार्यक्रम कर दिया जाए।
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Monday, November 26, 2007
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2 comments:
उदय गान तो मुझे भी बहुत पसन्द है, एक खास बात आपने ध्यान दी की नहीं। उदयगान के गीतों में वाद्ययंत्रों का प्रभाव ज्यादा नहीं दिखता। गायकों की आवाज फिल्मी गीतों की तरह वाद्ययंत्रों में दबती नहीं है। गायकॊं की आवाज को आराम से सुना समझा जा सकता है।
आपने ठीक कहा सागर जी। इन गीतों के संगीतकार भी सजग रचनाकार है - वनराज भाटिया, तुषार भाटिया, कनु घोष
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