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Thursday, November 8, 2007

दिवाली के बहाने रेडियो रूपक पर चर्चा

दीपावली एक विशेष दिन है। रेडियो में हमेशा विशेष दिन के लिए विशेष प्रसारण होते है। जो श्रोता टेलीविजन धारावाहिक देखते हुए बड़े हुए है और रेडियो के नाम पर निजि एफ एएम चैनलों को अधिक जानते है वे शायद ही रेडियो कार्यक्रम रूपक के बारे में जानते होंगें।


ऐसे श्रोताओं के लिए मैं बता दूं कि रूपक या फीचर रेडियो का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम किसी भी विषय पर होता है।

अब इस कार्यक्रम का स्वरूप देखेंगें। इसमें वार्ता की तरह बोला जाता है, एक या अधिक वाचक इसमें बोलते है, किसी बाहरी व्यक्ति की टिप्पणी को शामिल किया जाता है यानि विषय पर वो कहते है जैसे इंटरव्यू कार्यक्रम में कहते है। एक से अधिक व्यक्तियों से भी बात होती है जैसे परिचर्चा कार्यक्रम, इसमें गीत भी शामिल किए जाते है, इसमें कुछ अंशों को नाटक की तरह भी प्रस्तुत किया जाता है और इसमें बीच-बीच में और पार्शव में संगीत बजता है। मतलब ये कि सभी तरह के कार्यक्रमों का समावेश होता है रूपक में।

जब गीत शामिल होते है तो इसे संगीत रूपक कहते है और गीत शामिल नहीं होते तो केवल रूपक कहा जाता है।

इसी तरह से रूपक में आवश्यकता नहीं होने पर नाटकीय अंश भी नहीं होते है। बाहरी व्यक्तियों की टिप्पणियां भी विषय के अनुसार आवश्यकता होने पर ही ली जाती है।

कम से कम रूपक में दो आवाज़े और बीच में संगीत साथ ही पार्शव संगीत का होना ज़रूरी होता है।

वास्तव में रूपक रचा जाता है। पहले विषय की परिभाषा दी जाती है, विषय क्या है ? ये बताया जाता है। फिर विषय से संबंधित स्थितियां बताई जाती है। फिर पहले की जानकारी दी जाती है, शुरूवात बताई जाती है अगर इससे संबंधित घटना या कहानी हो तो बताया जाता है।

फिर सही-ग़लत, उचित-अनुचित को ध्यान में रखते हुए समीक्षा की जाती है। अंत में आगे की संभावित स्थिति बताई जाती है। कभी-कभी अंत में एक प्रश्न भी छोड़ दिया जाता है। इस तरह रूपक लिखने वाले को विषय की अच्छी जानकारी होना ज़रूरी होता है।

रूपकों की प्रस्तुति भी बहुत कठिन होती है। पहले बोले गए शब्द रिकार्ड किए जाते है। फिर उचित संगीत का चुनाव किया जाता है जिसके बाद इन को मिलाते हुए मुख्य टेप तैयार किया जाता है जिसे मास्टर पीस कहते है।

मास्टर पीस तैयार करते समय इस बात का ख़ास ध्यान रखा जाता है कि शब्दों की रिकार्डिंग और संगीत दोनों की ही आवाज़ का स्तर एक ही रहे। इसीलिए यह मिश्रण जिसे डबिंग कहते है, पूरे रूपक के लिए एक साथ की जाती है।

मशीनें कुछ देर चलने के बाद गर्म हो जाती है इसीलिए आधे घण्टे के रूपक को अंतिम रूप देने के लिए एक साथ 10-12 घण्टे काम करने पड़ते। यह मेरा ख़ुद का अनुभव है। अब कंप्यूटर आ जाने से ये काम बहुत ही जल्दी हो जाता है।

अब आइए विभिन्न चैनेलों के रूपकों पर एक नज़र डाले।

रेडियो सिलोन व्यावसायिक होने के कारण अधिकतर फ़िल्मी कार्यक्रमों पर निर्भर रहा और उनका अपना प्रोडक्शन कम होने से शायद ही रूपक यहां से प्रसारित हुए।

बीबीसी की हिन्दी सेवा से पहले सप्ताह में एक रूपक प्रसारित होता था। अधिकांश रूपक अचला शर्मा के लिखे होते थे। जिनमें आवाज़े शकुन्तला चन्दन, ओंकारनाथ श्रीवास्तव, रमा पाण्डेय की होती थी।

ऐसे ही साप्ताहिक रूपक अधिकतर क्षेत्रीय केन्द्रों से होते है। कम से कम महीने में दो रूपक तो प्रसारित हो ही जाया करते। यहां हैद्राबाद से तेलुगु और ऊर्दू में बहुत होते है। हिन्दी में कभी कभार होते है।

मैनें भी रूपक लिखे है। मेरा पहला रूपक बाल श्रम पर था जो इस केन्द्र का हिन्दी का पहला रूपक था। फिर मैनें हिन्दी सिनेमा के सौ वर्ष होने पर महिलाओं के इस क्षेत्र में योगदान पर लिखा, होली और रामनवमी पर भी लिखा।

इन सभी रूपको की कार्यक्रम अधिकारी थी डा दुर्गा लक्ष्मी प्रसन्ना। इसमे स्वर मेरा और श्री कैलाश शिन्दे का था। शिन्दे जी आजकल पूना केन्द्र में है। इनकी डबिंग शिन्दे जी ही किया करते थे।

इसके अलावा देश के गणतंत्र के पचास वर्षों पर पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी रानी चेन्नमा पर श्री एम उपेन्द्र जी ने रूपक लिखा था जिसमें मुख्य स्वर मेरा था। कार्यक्रम अधिकारी थी श्रीमती सरोजा निर्मला और प्रमुख निर्माता थी केन्द्र निदेशक दुर्गा भास्कर जिसे राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सराहाना मिली।

विविध भारती से बहुत कम रूपक सुनने को मिलते है। मुझे केवल दो ही रूपक याद आ रहे है - दीप से दीप जले, और दीप जल उठे। इनमें से एक हवा महल में प्रसारित हुआ था। दीपावली से संबंधित था इसीलिए मुझे याद आ गया।

वैसे आजकल रूपक कम होते जा रहे शायद तकनीकी सुविधाओं से इनका स्थान फोन-इन-कार्यक्रमों ने ले लिया है जैसे मंथन में दिवाली का ही तो विषय चल रहा है।

आप सब को

दिवाली मुबारक !

2 comments:

डॉ. अजीत कुमार said...

आदरणीया अन्नपूर्णा जी,
दीवाली की हार्दिक बधाइयां आपको भी. साथ ही आने वाले पर्वों की अग्रिम बधाइयाँ भी स्वीकारें.
रेडियो रूपक के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी देने के लिए आपका शुक्रिया. सच है कि किसी दिन विशेष पर ही ये रूपक सुनाने को मिलते हैं और तभी इनकी सार्थकता भी है. मुझे याद आती है दुर्गा पूजा के दौरान मान दुर्गा पर आधारित रेडियो रूपक जो यहाँ के स्थानीय केन्द्रों से प्रसारित हुआ था, प्रस्तुतकर्ताओं ने बहुत ही अच्छे अंदाज में इसे प्रस्तुत किया था.

annapurna said...

धन्यवाद अजीत कुमार जी।

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