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Wednesday, November 21, 2007
टाइम नईं है बाप !
क्विज़ रेडियो में आये सभी दोस्तो का शुक्रिया.
अभी जब जवाब भेज चुका तो देखा अन्नपूर्णा जी भी आ गईं. शायद मैं और वो एक ही समय पर अपने कीबोर्ड खटका रहे थे.
बहरहाल अन्नपूर्णा जी के लिये मुकेश के गाये कुछ गानों का गुलदस्ता.
यह हमारे उन परम मित्र रामसनेही के लिये भी है जिन्हें ज़िंदगी मे टाइम नहीं है लेकिन मुकेश को सुनने का अरमान भी है.
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2 comments:
शुक्रिया इरफ़ान जी ! आपका गुलदस्ता बहुत पसन्द आया। सभी 15 गीत मुझे बहुत पसन्द है। विविध भारती से तो मैनें ये गीत कई बार सुने है।
कुछ गीतों के फ़िल्मों के नाम याद नहीं आ रहे। जो याद है वो है -
1 चन्दन सा बदन - सरस्वती चन्द्र
2 ख़ुश रहो हर ख़ुशी है - सुहाग रात
3 रात और दिन दिया जले - रात और दिन
4 राम करें ऐसा हो जाय - मिलन
5 ये कौन चित्रकार है - बूंद जो बन गई मोती
6 हुस्ने जाना ही - सुहाग रात शायद…
7 कहीं दूर जब दिन ढल जाए - आनन्द
बाकी के नाम आप बता दीजिए।
पियूष जी मेरा दुर्भाग्य कि आपके स्नेह का भाजन न बन पाया. आप लोगोँ ने मेहनाज़ जी का इंटरव्यू पसंद किया था- वह पूरा इंटरव्यू आजकल टूटी हुई बिखरी हुई पर उपलब्ध है. आप कुछ कहेँगे तो मनोबल बढेगा.
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।