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Tuesday, November 20, 2007

सांध्य गीत

विविध भारती का दिन का प्रसारण पहले साढे चार बजे समाप्त हो जाता था और शाम का प्रसारण साढे छह बजे से शुरू होता था फिर सवा छह बजे से शुरू होने लगा।

शाम के प्रसारण में पहला कार्यक्रम सांध्य गीत होता था। इसमें फ़िल्मों से लिए गए भक्ति गीत सुनवाए जाते थे।

हालांकि फ़िल्मों के भक्ति गीत वास्तव में भजन नहीं होते क्योंकि ये स्थिति के अनुसार बनाए जाते है जैसे नायिका किसी मुश्किल में है और भगवान से प्रार्थना कर रही है, इसी तरह नायक, चरित्र अभिनेता या मां या सभी प्रार्थना करते है।
फिर भी ये गीत अच्छे लगते है।

इस कार्यक्रम में बजने वाले सभी भक्ति गीत, नए हो या पुराने अच्छे लगते थे जैसे -

गीता दत्त और आशा भोंसले का ये गीत -

न मैं धन चाहूं न रतन चाहूं
तेरे चरणों की धूल मिल जाए
तो मैं तर जाऊं श्याम तर जाऊं
हे राम

या गुड्डी फ़िल्म की वाणी जयराम और साथियों की गाई प्रार्थना हो -

हमको मन की शक्ति देना मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें

ऐसे और भी गीत है जो इस कार्यक्रम में सुने -

फ़िल्म नीलकमल और आवाज़ आशा भोंसले की -

मेरे रोम-रोम में बसने वाले राम
जगत के स्वामी हे अंतर्यामी मैं तुझसे क्या मागूं

आवाज़ लता की

बनवारी रे जीने का सहारा तेरा नाम रे
मुझे दुनिया वालों से क्या काम रे (फ़िल्म - एक फूल चार कांटे)

तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल)

कान्हा रे कान्हा तूने लाखों रास रचाए
फिर काहे तोसे और किसी का प्यार न भाए
कान्हा रे (फ़िल्म - ट्रक ड्राइवर)

कुछ पारम्परिक रचनाएं भी बजती थी जैसे फ़िल्म पूरब और पश्चिम से -

ओम जय जगदीश हरे

कुछ वास्तव में भजन होते थे जैसे फ़िल्म संगीत सम्राट तानसेन में महेन्द्र कपूर और कमल बारोट का गाया ये शिव स्तुति गान -

हे नटराज ! गंगाधर शंभो भोलेनाथ जय हो
जय जय जय विश्व नाथ जय जय कैलाश नाथ
हे शिव शंकर तुम्हारी जय हो
हे दया निधान गौरी नाथ चन्द्रभान अंग भस्म ज्ञानमाल
मैं रहूं सदा शरण तुम्हारी जय हो

फ़िल्म दुर्गामाता में एस जानकी की गाई दुर्गास्तुति।

कुछ धार्मिक फ़िल्मों की रचनाएं जैसे संपूर्ण रामायण, कैलाशपति

कुछ आरतियां भी अच्छी लगती थी -

मैं तो आरती उतारूं रे संतोशी माता की

तो कुछ भक्ति गीत मन को छू लेते थे जैसे मनाडे की आवाज में चंदा और बिजली फ़िल्म का ये गीत -

काल का पहिया घूमे रे भैय्या

तो कुछ पुरानी रचनाएं जैसे फ़िल्म आनन्द मठ की हेमन्त कुमार और गीता दत्त की गाई रचना - हरे मुरारी

सूची बहुत लम्बी है। कुछ सालों से सान्ध्य गीत कार्यक्रम यहां हैद्राबाद में प्रसारित नहीं हो रहा। विविध भारती से ही इसका प्रसारण बन्द हो गया या क्षेत्रीय प्रसारण के कारण हैद्राबाद में प्रसारित नहीं हो रहा, इसकी मुझे ठीक से जानकारी नहीं है।

लेकिन जब से ये कार्यक्रम बन्द हुआ है इन गीतों को हम सुन ही नहीं पा रहे।

3 comments:

मीनाक्षी said...

यादें ताज़ा हो गई ...क्या सम्भव है इन सब गीतों को सुनना ??

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

यह कार्यक्रम मुझे भी याद है , उअके पिछले ज़मानेमें उसी समय उदयगान और शहगान कार्यक्रम आता था । इससे रेडियो श्रीलंका के एक कार्यक्रम की भी याद आ गई, जिसका नाम था ’युगलगान और शहगान’ ।

Anonymous said...

मीनाक्षी जी और पीयूष जी चिट्ठे पर आने का शुक्रिया।

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