सबसे नए तीन पन्ने :

Tuesday, September 25, 2007

रेडियो का प्रसार गीत--नाच मयूरा नाच--लावण्‍या शाह का लेख


प्रसार ~ गीत "नाच रे मयूरा " "आकाशवाणी " का सर्व प्रथम गीत जिसे
प्रसारित किया गया वह था "नाच रे मयूरा , खोल कर सहस्त्र नयन देख सरस
स्वप्न जो कि आज हुआ पूरा, नाच रे मयूरा " शब्द लिखे थे कवि पँडित
नरेन्द्र शर्मा जी ने, सँगीत से सजाने वाले श्री अनिल बिस्वास जी थे और
स्वर था गायक श्री मन्नाडे जी का !
सँगीतकार श्री अनिल बिस्वास जी की जीवनी के लेखक श्री शरद दत्त जी ने इस
गीत से जुडे कई रोचक तथ्य लिखे हैँ. जैसे इस गीत की पहली दो पँक्तियाँ
फिल्म "सुजाता " मेँ मशहूर सिने कलाकार सुनील दत्त जी गुनगुनाते हैँ
सुजाता १९५९ मेँ बनी नूतन और सुनील दत्त द्वारा अभिनीत, निर्माता ,
निर्देशक बिमल रोय की मर्मस्पर्शी पेशकश रही थी.

जिसका जिक्र आप अनिल दा की इस वेब साइट पर भी पढ सकते हैँ

The Innaugeral Song for Vividh -Bharti
http://anilbiswas.com/ RE : NAACH RE MAYURA

डा. केसकर जी मँत्री थे सूचना व प्रसारण के ( Information and
Broadcasting ) डा. केसकर जी मँत्री थे सूचना व प्रसारण के !उन्हेँ उस
समय के हिन्दी सिने सँगीत के गीतोँ से नये माध्यम "रेडियो" का आरँभ हो ये
बात नापसन्द थी ! अब क्या हो ? आकाशवाणी पर तब कैसे गीत बजाये जायेँ ये
एक बडा गँभीर और सँजीदा मसला बन गया !
उसका हल ये निकाला गया कि "शुध्ध ~ साहित्यिक " किस्म के गीतोँ का ही
प्रसारण किया जायेगा. और साहित्योक हिन्दी गीतोँ के लिखनेवाले होँगे
देहली से श्री भगवती चरण वर्मा जी ( जिनका उपन्यास "चित्रलेखा " हिन्दी
साहित्य जगत मेँ धूम मचा कर अपना गौरवमय स्थान हासिल किये हुए था और बँबई
से कवि पँडित नरेब्द्र शर्मा जी को चुना गया. इन गीतोँ को सँगीत बध्ध
करेँगे मशहूर बँगाली सँगीत निर्देशक श्री अनिल बिस्वास जी !

उस ऐतिहासिक प्रथम सँगीत प्रसारण के शुभ अवसर पर नरेन्द्र शर्मा जी ने
अनिल बिस्वास को ये गीत दीये और उन्के लिये सुमधुर धुन बनाने का अनुरोध
किया.
ये गीत थे ~~
१) चौमुख दीवला बार धरुँगी, चौबारे पे आज,
जाने कौन दिसा से आयेँ, मेरे राजकुमार
( गायिका थीँ श्री मीना कपूर जी )

२ ) 'रख दिया नभ शून्य मेँ किसने तुम्हेँ मेरे ह्र्दय ?
इन्दु कहलाते, सुधा से विश्व नहलाते,
फिर भी न जग ने न जाना तुम्हेँ, मेरे ह्रदय "
( गायिका थीँ श्री मीना कपूर जी )

३ ) "नाच रे मयूरा, खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन, गगन मगन,
देख सरस स्वप्न जो कि आज हुआ पूरा,
नाच रे मयूरा ...."
( गायक थे श्री मन्ना डे जी )
( At the inauguration of Vividh Bharati service
the very first song to be played was none other than "naach re
mayuuraa".)

४ ) "युग की सँध्या कृषक वधु सी,
किसका पँथ निहार रही ?
उलझी हुई, सम्स्याओँ की,
बिखरी लटेँ, सँवार रही "
( गायिका थीँ सुश्री लता मँगेशकर जी )

सभी गीतोँ का स्वर सँयोजन अनिल दा ने किया जिसका प्रसारण देढ घँटे के
प्रथम ऐतिहासिक कार्यक्र्म मेँ भारत सरकार ने भारत की जनता को नये माध्यम
"रेडिय़ो " के, श्री गणेश के स्वरुप मेँ , इस अनोखे उपहार से किया.
यही !"प्रसार ~ गीत " कार्यक्रम से हुआ आकाशवाणी का जन्म !!


एक दुखद घटना इस कथा से जुडी हुई है ~ "युग की सँध्या " गीत , इस प्रथम
प्रसारण के बाद, न जाने कैसे, मिट गया ! इस्लिये, उस गीत की रेकोर्डीँग
आज तक उपलब्ध नहीँ है ! भारत कोकिला, स्वर साम्राज्ञी श्री लता मँगेशकर
उसे अगर गा देँ , पूरा गीत नहीँ तो कुछ पँक्तियाँ ही तो सारे भारत के लोग
दोबारा उस गीत का आनँद ले पायेगेँ . आज सँगीत से उस गीत को सजानेवाले
अनिल दा जीवित नहीँ हैँ और ना ही गीत के शब्द लिखने वाले कवि पँडित
नरेन्द्र शर्मा ( मेरे पापा )
भी हमारे बीच उपस्थित नहीँ हैँ ! हाँ, मेरी आदरणीया लता दीदी हैँ और
उनकी साल गिरह पर २८ सितम्बर को मैँ उनके दीर्घायु होने की कामना करती
हूँ !
" शतम्` जीवेन्` शरद: " की परम कृपालु ईश्वर से , विनम्र प्रार्थना करती
हूँ और ३ अक्तूबर को "विविध भारती " के जन्म दीवस पर अपार खुशी और सँतोष
का अनुभव करते हुए, निरँतर यशस्वी, भविष्य के स स्नेह आशिष भेज रही
हूँ ...आशा करती हूँ कि " रेडियो" से निकली आवाज़ , हर भारतीय श्रोता के
मन की आवाज़ हो, सुनहरे और उज्वल भविष्य के सपने सच मेँ बदल देनेवाली ताकत
हो जो रेडियो की स्वर ~ लहरी ही नहीँ किँतु, "विश्व व्यापी आनँद की लहर "
बन कर
मनुष्य को मनुष्य से जोडे रखे और भाएचारे और अमन का पैगाम फैला दे. जिस
से हरेक रुह को सुकुन मिले.
मेरी विनम्र अँजलि स्वीकारेँ ........
.शुभँ भवति ...
सादर ~ स ` स्नेह,
लावण्या

ऊपर की तस्‍वीर में लता मंगेशकर और पंडित नरेंद्र शर्मा

3 comments:

sanjay patel said...

क्या ग़ज़ब के लोग थे लावण्या बेन पं.नरेन्द्र शर्मा और श्री अनिल विस्वास . आपने निकट आ रही विविध भारती की स्वर्ण-जयंती पर यह अशेष स्मृति उकेर कर मन को झकझोर दिया. मन्ना दा का पहाड़ी स्वर इस गीत में जैसे मणि-कांचन योग रच रहा है. धंधे-बाज़ ज़माना सूफ़ियाना या वैष्णव तबियत के इन महान सर्जकों का मोल क्या जानेगा. कितना दुलराया है इस गीत ने परिवेश को , संगीत को ,श्रोताओं को और विविध भारती को .

mamta said...

आज पहली बार ये बात हमे पता चली है। इसे हम लोगों से बांटने का शुक्रिया।

लावान्या जी आप लता जी से जरूर अनुरोध करें की वो इस गीत की कुछ पंक्तियाँ अपने सुनने वालों के लिए गा दे।

annapurna said...

एक और गीत है इसी समय का जिसकी चर्चा आपने नहीं की -

सावन की रिमझिम में
थिरक-थिरक नाच उठे
मयूर पंखी रे सपने

आवाज़ मन्ना डे, रचना पं नरेन्द्र शर्मा

Post a Comment

आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

अपनी राय दें