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Saturday, November 17, 2007

एक मीठी सी तबस्सुम

आज मैं अपना बीसवा चिट्ठा लिख रही हूं और रेडियोनामा में चिट्ठों की सूची से पता चलता है कि ये पचहत्तरवां चिट्ठा है। बीस यानी दो दशक और ७५ यानी प्लैटिनम जुबली, तो मैनें सोचा आज माहौल थोड़ा खुशनुमा रखा जाए।

ख़ुशनुमा माहौल की बात हो और वो भी रेडियो के लिए तो तबस्सुम की बात न हो ये तो हो ही नहीं सकता।

तबस्सुम - यथा नाम तथा गुण। उर्दू में तबस्सुम का मतलब होता है मुस्कान। जब भी टेलीविजन पर तबस्सुम को देखा मोहक मुस्कान के साथ देखा। जब भी रेडियो पर तबस्सुम की खनकती आवाज़ सुनी माहौल ख़ुशनुमा हो गया।

चुटकुलों से ही कार्यक्रम को रोचक बना लेना तबस्सुम की ही कलाकारी है। तभी तो उन्हें चुटकुलों की महारानी कहा गया।

हर विषय पर तबस्सुम ने चुटकुला सुनाया। चाहे बच्चे हो, बुज़ुर्ग हो, स्कूल का माहौल हो, शादी का माहौल या फिर जंगल का शिकारी ही क्यों न हो, यहां तक कि तबस्सुम ने खुद अपने आप पर भी चुटकुले सुनाए। एक ऐसा ही चुटकुला यहां प्रस्तुत है -

एक बार तबस्सुम को विविध भारती पर एक कार्यक्रम देने जाना था। कार्यक्रम लाइव था यानि सीधा प्रसारण होना था।

उनके ड्राइवर ने अचानक छुट्टि ले ली। तबस्सुम को गाड़ी चलाना नहीं आता था तो उन्होनें टैक्सी में जाने का फैसला लिया।

उनके पति ने सलाह दी कि वो टेलिविजन पर भी कार्यक्रम देती है जिससे लोग उन्हें पहचानते है इसीलिए उन्हें बुर्का पहन कर जाना चाहिए।

बुर्के में तबस्सुम घर से निकलीं और थोड़ा आगे बढ कर वहां खड़ी एक टैक्सी के ड्राइवर से कहा कि रेडियो स्टेशन तक छोड़ दे। टैक्सीवाले ने कहा कि नहीं अब मैं कोई सवारी नहीं बैठाता, इस समय मैं काम नहीं करता क्योंकि अब थोड़ी ही देर में रेडियो से तबस्सुम का चुटकुलों का कार्यक्रम आने वाला है। मैं अब वही सुनूंगा।

तबस्सुम को बड़ी ख़ुशी हुई। मन में सोचा कि ये मेरा कितना बड़ा फैन है। मेरा कार्यक्रम सुनने के लिए ये तो काम-धंधा भी छोड़ देता है। वो ये तो नहीं कह सकतीं थीं कि जब तक तुम मुझे रेडियो स्टेशन तक नहीं ले जाओगे कार्यक्रम तो शुरू ही नहीं होगा, तो उन्होनें फिर एक बार अनुरोध किया लेकिन टैक्सी वाला नहीं माना।

फिर तबस्सुम ने अपनी पर्स से एक बड़ा नोट निकाला और टैक्सीवाले की ओर बढाया। टैक्सी वाले ने झट से नोट लपक लिया और कहा -

आओ बहनजी बैठो, मारो गोली तबस्सुम वबस्सुम और उसके प्रोग्राम को।

5 comments:

पूर्णिमा वर्मन said...

तबस्सुम जी की इस पोस्ट में मज़ा आ गया :)

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

मझा आ गया । एक मंच कार्यक्रम की रेकोर्डिंग एक बार देख़ने को मिली थी, जो तबस्सूमजीने प्रस्तूत किया था । उस कार्यक्रममें उन्होंने श्रोताओं से पूछा की किसके बारेमें मैं चुटकुला प्रस्तूत करूँ, तब एक गोल-मटोल दर्शक बोले की आप हाथी पर चुटलुला पेश करें । तबस्सूमजीने उस श्रोतासे हंसते हंसते पूछा ’आप मूझे देख़ कर यह फरमाईश कर रहे है या अपने आपको ?" तब सब दर्शक तो तबस्सूमजी की टिपणी पर (उस फरमाईश वाले दर्शक सहीत) तो बिना हंसे कैसे रह सकेंगे ?

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आज का यही सच है .."सब से बड़ा रुपैय्या "
इस पोस्ट में मज़ा आया ...अन्नपूर्णा जी !

annapurna said...

पीयूष जी आपका चुटकुला पढ कर मज़ा आ गया।

पूर्णिमा जी लावण्या जी धन्यवाद चिट्ठे पर आने के लिए।

PIYUSH MEHTA-SURAT said...

आदरणीय श्रीमती अन्नपूर्णाजी,

सरासर गलत । चमकिये मत, यह तो एक हल्की सी मजाक ही है । पर यह तबस्सूमजी के चुटकुले को आपने मेरा चुटकुला कहा । हाँ, याददास्त जरूर मेरी है । जहाँ तक सुसुप्त मन का सवाल है, हकीक़त में सभी की याददास्त एक समान होती है, जैसे आपकी भी, सवाल सिर्फ़ सही समय पर मन की सुसुप्त बातें सभान दिमागमें आने का ही होता है ।
धन्यवाद ।
पियुष ।

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