नब्बे के दशक मे रेडियो मे एफ.एम के रूप मे एक क्रांति सी आई थी।दिल्ली मे जब एफ.एम की शुरुआत हुई थी तो लोगों को रेडियो के रूप मे चौबीस घंटे एक बात करने वाला साथी मिल गया था। एफ.एम रेडियो अपने शुरूआती दिनों मे बहुत मशहूर हुआ था क्यूंकि उसके एंकर लोगों से सीधे तौर पर जुड़कर बात करते थे और हर सुनने वाले को लगता था कि उसका और रेडियो उदघोषिका या उद्घोषक का सीधा सम्बन्ध है।और हर उद्घोषक और उदघोषिका (जैसे राजीव,मनीषा, सरिता,बाकी नाम याद नही आ रहे है ) भी इस बात का ख़्याल रखते थे मानो वो और श्रोता आमने-सामने ही बैठे हो।
हेलो एफ.एम मे फ़ोन पर बात करने के लिए पहले ख़त भेजना होता था और उस ख़त मे अपनी पसंद का गाना अपना फ़ोन नम्बर और प्रसारण का समय भी लिख कर भेजना होता था।क्यूंकि हेलो एफ.एम सप्ताह मे दो दिन एक शायद सोमवार को सुबह १० -११ बजे और दूसरा गुरूवार को शाम ४ -५ बजे प्रसारित होता था।
उस दौर मे तो रेडियो से ज्यादा अच्छा दोस्त किसी के लिए था ही नही।हर व्यक्ति वो चाहे दूकानदार हो या छात्र -छात्रा हो, गृहणी हो या ऑफिस मे काम करने वाली महिला या पुरूष हो ,या कोई लेबर ही क्यों ना हो। हेलो एफ.एम पर हर कोई फ़ोन मिलाता और एंकर से बात करता और बात शुरू करने के पहले सबसे पहले कहते कि हम कई दिनों से फ़ोन लगा रहे थे पर हमारा फ़ोन नही लगा और आज कितने दिन या कितने महीने बाद फ़ोन लगा है ।
और ये की आज फ़ोन लगने से वो बेहद खुश है।
और उसके बाद शुरू होता सिलसिला कि आप कौन है,कहाँ से बोल रहे है ,क्या करते है । और फ़िर श्रोता अपनी पसंद का गाना बताते और गाने को dedicate करने वालों की एक लम्बी लिस्ट बताते।
तो एक दिन हमने भी यूं ही एक ख़त हेलो एफ.एम पर भेजा और मजे की बात की हमारा ख़त पहली बार मे ही शामिल हो गया था। खैर हमने शाम ४-५ बजे वाला समय दिया था जिससे उस समय कम से कम बच्चे तो घर पर रहे और हम सब बातचीत का मजा ले सके। खैर उस दो-तीन मिनट की बात मे एंकर ने वही सब पूछा और फ़िर
हमारी पसंद का गाना भी बजवाया ।उसके बाद तो हमने अलग-अलग कार्यक्रमों मे खूब ख़त भेजे थे।पर फ़िर कुछ सालों बाद एफ.एम.के कार्यक्रम सुनने का मजा भी जाता रहा माने एफ.एम मे वो बात नही रही थी।
1 comment:
रेडियो से अपना नाम सुनने का सुख ही कुछ और है। आपको जल्दी मौका मिला, नही तो कई बार लम्बी प्रतीक्षा करनी पडती है।
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