फ़िल्म बैजूबावरा ने दो कलाकारों को लोकप्रिय बनाया - मीनाकुमारी और लता मंगेशकर
यह कहना मेरा नहीं है, इस बात को ख़ुद मीनाकुमारी ने विशेष जयमाला में बताया था। आज मीनाकुमारी की पुण्यतिथि है। सुबह-सवेरे ही विविध भारती ने मीनाकुमारी को याद किया और अर्पित किए श्रृद्धा सुमन भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम में जिसे प्रस्तुत किया कमल (शर्मा) जी ने।
फ़िल्म उद्योग में बैजूबावरा का कुछ ऐसा असर रहा कि मीनाकुमारी के अधिकतर गीत लता ने ही गाए। तभी तो आज भूले-बिसरे गीत में भी लता की ही आवाज़ गूंजती रही। केवल एक ही युगल गीत था लता रफ़ी का -
बार-बार तोहे क्या समझाए पायल की झंकार
तेरे बिन साजन लागे न जिया हमार
मीनाकुमारी की यूं तो सभी फ़िल्में यादगार रही पर कुछ फ़िल्मों को ख़ासतौर पर रेखांकित किया जा सकता है जिनमें से एक है शरदचन्द्र के उपन्यास पर आधारित फ़िल्म परिणीता जिसमें नायक अशोक कुमार थे।
इस फ़िल्म में एक समूह गीत है जो ब्याह के अवसर पर फ़िल्माया गया है। गीत के बोल मैं भूल रही हूँ। अगर इस समूह गीत को शामिल किया जाता तो कार्यक्रम में विविधता आ जाती थी।
एक और विशेष फ़िल्म है जो… अगर व्यक्तिगत पसन्द की बात करें तो मीनाकुमारी की सभी फ़िल्मों में से मेरी सबसे ज्यादा पसंदीदा फ़िल्म यही है। फ़िल्म का नाम है आज़ाद
इस फ़िल्म में मीनाकुमारी के लगभग छ्ह-सात नृत्य है जो हल्का सा शास्त्रीयपन लिए है। ऐसा एक गीत भी नहीं चुना गया। जिससे कार्यक्रम में एकरसता बनी रही और भूले-बिसरे गीत में विविधता नहीं आ पाई।
एक और छोटी सी (या बड़ी सी) शिकायत है आपसे कमल (शर्मा) जी कि आपने सिर्फ़ यह एक बात ही कही की आज मीनाकुमारी की पुण्यतिथि है मगर गाने प्रस्तुत करते हुए एक बार भी यह नहीं बताया कि मीनाकुमारी की यह फ़िल्म किस साल प्रदर्शित हुई थी, निर्देशक कौन थे, किस बैनर तले फ़िल्म बनी, साथी कलाकार वग़ैरह वग़ैरह…
क्या विविध भारती अपना एक कार्यक्रम पूरी तरह से एक महान कलाकार को समर्पित नहीं कर सकता ?
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Monday, March 31, 2008
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2 comments:
आपकी शिकायत जायज लगती है।
मीना कुमारी निसंदेह बहुत ही अच्छी कलाकार थी।
अन्नपूर्णाजी...मीनाजी पर एकाग्र भूले बिसरे गीत में उनके इंतक़ाल का ज़िक्र भी होना था ....वह था १९७२ तारीख़ तो आज की ही यानी ३१ मार्च ...इससे बस कुछेक दिन पहले पाक़ीज़ा रिलीज़ हुई थी और तारीख़ थी ४ फ़रवरी १९७२..यानी फ़िल्म जारी होने के चंद दिनों बाद मीना आपा चलीं गईं.
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