२५ से २७ जनवरी .उज्जैन.
महाकाल , शिप्रा और डाँ शिवमंगल सिंह सुमन के उज्जैन में उक्त दो तिथियाँ अविस्मरणीय बन गईं.
उज्जैन के जाने माने रंग समूह अभिनव रंग मण्डल ने अपनी रंग यात्रा के पच्चीस और कवि , संस्कृतिकर्मी,आलोचक श्री अशोक वाजपेयी की सृजन यात्रा की आधी सदी के पूर्ण होने पर तीन दिवसीय
श्रध्दा आयोजन आहूत किया.
विश्व विख्यात चित्रकार सैयद हैदर रज़ा,नृत्यांगना सोनल मानसिंह,साहित्यकार डाँ.कमलेशदत्त त्रिपाठी,कवि यतीन्द्र मिश्र, लेखक उदयप्रकाश ,समीक्षक अजित राय जैसे एकाधिक नामचीन हस्तियों ने इस भाव प्रसंग में शिरकत की. अभिनव रंगमंडल के निदेशक शरदकुमार शर्मा के सार्थक प्रसासों का रूपांतर अशोकजी पर एकाग्र यह आयोजन.
इसी अवसर पर विवक्षा शीर्षक से प्रकाशित स्मारिका में अशोकजी के कुछ दुर्लभ चित्र हैं. चित्रों के आकर्षण को विस्तार देतीं हैं विवक्षा के हर सफ़े पर कवि ध्रुव शुक्ल द्वारा संचय की गई अशोक वाजपेयी की विविध कविताओं की पंक्तियाँ.अब आप इन दो दो पंक्तियों में हाईकू , दोहा,शेर या मुक्तक जो चाहे तलाश लें ... मतलब इन पंक्तियों के गहरे भावों से हैं...पूर्ण कविता न होने के बावजूद इनमें पोशिदा गहराई कहीं गहरे तक मन में उतरतीं हैं.
मुलाहिज़ा फ़रमाएँ......
हम अपने पूर्वजों की
अस्थियों में रहते हैं....
आँखें सिर्फ़ सच देखने के लिये ही नहीं
सपना देखनें के लिये भी हैं...
मातृभाषा में वृक्ष कट चुके हैं,
मौलश्री का झरना दिखाई नहीं देता,
दूध में रोटी मींजना अभद्र हो चुका है...
हो सके तो
कम से कम एक बार ऐसा जीवन दो
जो मेरा न हो....
झानी हो गई चादर,
ताने-बाने कुछ छितराते से लगे हैं
पास पड़ोस में कोई कबीर नज़र नहीं आता....
माँ मेरी माँ
तुम कितनी बार स्वयं से ही उग आती हो
और माँ, मेरी जन्म कथा कितनी ताज़ी
और अभी अभी की है.....
मैने बहुत कुछ गँवा दिया
पर प्रार्थना नहीं,
क्योंकि कोई भी पूरी कभी
मेरे हिस्से में नही आई.....
मैं फ़िर दोहराना चाहता हूँ,
अपने तिनका तिनका छीजते समय की
यातना पट्टी पर
फ़िर भी झिलमिलाती उम्मीद की वर्णमाला....
प्रार्थना बनकर टिक सके
फ़ूल बनकर खिल सके....
अब ह्रदय की व्यथा कहने का
रिवाज़ नहीं रहा ;
न कविता में;
न देवता से;
न मित्र से.....
शब्द बचे हैं; उन्हीं में लौकती हैं
रह-रहकर उठने वाले दर्द की स्मृतियाँ.....
सुख जल्दी में होता है
दु:ख के पास समय की कमीं नहीं
मौसम बदले न बदले
हमें उम्मीद की
कम से कम
एक खिड़की तो खुली रखना चाहिये.....
आयु छुएगी उसके चेहरे को
और चुपके से उसके लम्बे बालों में से
एक को सफ़ेद कर जाएगी.
अशोक वाजपेयी की सुदीर्घ कला और जीवन यात्रा के लिये अशेष शुभेच्छाएँ..
3 comments:
शुभकामनाएं!
अशोक जी का काव्य पाठ एक बार सुनने का मौका मिला था। तब मै हिंदी साहित्य में एम ए कर रहा था और हमारे एच ओ डी श्री राजेंद्र मिश्र जो कि एक प्रख्यात समीक्षक हैं ने यह आयोजन किया था!
कभी-कभी तो इसी बात पर शोध करने का मन होता है कि विवादित अशोक बाजपेयी और अविवादित अशोक बाजपेयी दोनो में ज्यादा यथार्थपरक कौन हैं ;)
वैसे यह भी नही समझ पाया कि यह पोस्ट रेडियोनामा पर क्यों आई, क्या यह प्रसंग रेडियो से जुड़ा है?
संजीत भाई और रेडियोनामा के अन्य सुधी पाठकगण
ठीक जाना आपने...अशोकजी वाली पोस्ट मेरे अपने ब्लॉग जोगलिखी संजय पटेल की ....के लिये सुनिश्चित थी. लिख चुकने के बाद मेरे पी.सी.में कहीं कोई समस्या आई...चित्र अपलोड करते वक़्त और जब चैक किया तब ये आलेख रेडियोनामा पर जा चुका था...तुरंत यूनुसभाई को मोबाइल पर संपर्क किया और सूरतेहाल बताया...कोई चारा भी न था पोस्ट को डिलीट करने का सो ये आपकी नज़रों के सामने है....
मेरे स्तर ही हुई होगी कोई तकनीकी ख़ामी...मेरी नीयत पर एतबार रखें...अब आगे अधिक सतर्क होकर इस दिशा में काम करने का शऊर पैदा करूंगा.आशा है रेडियोनामा के कविताप्रेमी मित्रों को तो निश्चित ही लुभाएंगी अशोकजी की ये पंक्तियाँ.
रचनाएं, चित्र, आलेख सभी अच्छा है सिवाय तकनीकी पक्ष के।
धन्यवाद इस चिट्ठे के लिए।
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