बात उस समय कि है जब रेडियो के युव वाणी कार्यक्रम से एक लिफाफा जिस पार हमारा नाम लिखा था घर पर आया । बड़ी खुशी और उत्सुकता हुई कि हमारे नाम रेडियो स्टेशन से कोई चिट्ठी आई।उस समय तक सिर्फ़ एक बार गिटार ही रेडियो पर बजाया था । खैर चिट्ठी खोली तो पता चला कि युव वाणी मे क्विज शो (जो की आधे घंटे का होता था ) के संचालक के रूप मे रेडियो वालों ने हमे चुना था और ये भी लिखा था कि हम कुछ आम सामान्य ज्ञान (general knowledge) के प्रश्न और उत्तर लिख कर अपने साथ लाये और फलां तारीख और फलां समय पर रेडियो स्टेशन पहुँच जाए कार्यक्रम की रेकॉर्डिंग के लिए ।
अब हम तो ऐसे किसी कार्यक्रम के लिए ना तो तैयार थे और ना ही हमारे बस का था कि हम अकेले इतने सारे प्रश्न बनाते। सो हमारी दीदी लोग और हम जुट गए प्रश्न और उत्तर बनाने मे और करीब ८०-९० प्रश्न लिखे और तय समय पर पहुँच गए रेडियो स्टेशन । ये हमारा पहला मौका था जब हम अकेले ही रेडियो स्टेशन गए थे।जब वहां पहुंचे तो कुछ ५-६ लड़के लड़कियां वहां बैठे थे और हम सबका आपस मे परिचय कराया गया। तो पता चला कि १-२- तो हमसे बड़े यानी एम.ए. मे पढने वाले थे (उस समय हम बी.ए.कर रहे थे) एक-दो पहले क्विज करा चुके थे ।
खैर एक बार हम सभी ने थोडी बहुत रिहर्सल करी । साथ ही वहां के संचालक ने कहा कि बहुत जल्दी -जल्दी प्रश्न मत पूछना , आराम से बीच-बीच मे नाम लेकर प्रश्न पूछना। अब भाई हमारा तो ये पहला कार्यक्रम था और कोई गड़बड़ ना हो इसका ध्यान भी तो रखना था। खैर रिकार्डिंग शुरू कि गई और बहुत ही हलके-फुल्के अंदाज मे रेडियो पर पहले हमने अपना परिचय दिया और फ़िर बाकी छः लोगों का परिचय श्रोताओं से कराया और फ़िर बातचीत के अंदाज मे प्रश्न और उत्तर का सिलसिला शुरू हुआ और आधे घंटे का कार्यक्रम रेकॉर्ड हुआ।और जब हम लोगों को इशारा किया गया कि टाइम अप तो उस समय तो हमने बड़ी राहत की साँस ली थी।
रेकॉर्डिंग रूम से बाहर निकल कर हम सब जैसे ही चलने को हुए कि हम लोगों से कहा गया कि आप लोग वहां फलां आदमी से मिल ले।उनके पास पहुँचने पर उन्होंने हमे शायद १०० या १२५ रूपये ठीक से याद नही है दिए और रजिस्टर मे साईन करने को कहा।वो रूपये लेकर तो ऐसा लगा माने हम सातवें आसमान मे हो।उस समय खामोशी वाला गाना नही बना था आज मैं ऊपर आस्मान नीचे । :)
और उन रुपयों को लेकर खुशी-खुशी घर आए और घर मे सभी को घूम-घूम कर अपनी पहली कमाई दिखाई । और फ़िर प्लान बनाने लगे कि इन रुपयों से हम क्या-क्या खरीदेंगे। अब भाई उस ज़माने मे १०० रूपये की बड़ी कीमत होती थी ।
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Thursday, March 27, 2008
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6 comments:
ममता जी एक बार युवा वाणी से ये सौभाग्य मुझे भी मिला था, बहुत सुखद अनुभव था, बिल्कुल आपकी तरह, आपको पढ़कर वो पल फ़िर याद आ गए, आज पता चला की आप गिटार भी बजा लेती हैं, क्या सचमुच ?
तो आपके जीवन की पहली कमाई रेडियो से हुई।
अन्नपूर्णा
तो आप भी युववाणी से । आपको बता दें कि मैं युववाणी का उत्पाद हूं । मेरी पत्नी रेडियोसखी ममता सिंह इलाहाबाद आकाशवाणी में युववाणी के रास्ते कैजुअल अनाउंसर बनीं और फिर विविध भारती में सुशोभित हो गयीं । और भी तमाम लोग हैं जिन्हें युववाणी ने पाला पोसा है । अपनी पहली कमाई युववाणी से थी सौ रूपये । फिर डेढ़ सौ भी हुई । फिर और ज्यादा हुई । उस चेक ने जो खुशी दी वो बाकी चेक्स नहीं देते ममता जी ।
पहली कमाई? वह भी ऐसे कि पहले नहीं पता था कि कमाई कर रहे हैं। क्या बात है?
ममता जी जान कर अच्छा लगा कि आप युवावाणी से जुड़ी थीं…
सजीव जी बिल्कुल सच । हम गिटार भी बजाते है।
आप सभी का टिप्पणी के लिए शुक्रिया।
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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।