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Tuesday, March 4, 2008

जुबली झंकार का छठा सुर

कल जुबली झंकार का छठा सुर सुना। छठा सुर यानि छठा मासिक पर्व। स्वर्ण जयन्ती के विशेष आयोजनों का आधा समय बीता और आधा शेष। इसीलिए इस अंक को विशेष होना ही था।

कमाल तो ये हुआ की रेडियो के सबसे पुराने दो दोस्त साथ-साथ आए - विविध भारती के सबसे पुराने कार्यक्रम जयमाला के फ़ौजी भाई और रेडियो को लोकप्रियता की बुलन्दियों तक पहुँचाने वाले अमीन सयानी।

एक ज़माने के बाद सुना ख़ास अंदाज़ में - बहनों और भाइयों !

मगर सुन कर ऐसा नहीं लगा कि इधर एक लम्बे समय से यह आवाज़ हम नहीं सुन रहे थे। ऐसा ही लगा कि कल तक ही तो बिनाका सुनते थे न…

जिस अंदाज़ में अमीन सयानी कभी-कभी बिनाका गीत माला में कुछ-कुछ बातें आर डी बर्मन जैसे साथियों के बारे में बताया करते थे कल उसी अंदाज़ में अमिताभ बच्चन के बारे में बाताया। यह सहजता किसी और में नहीं मिल सकती। प्रायोजित कार्यक्रम ऐसे कंपियरों से ही तो परवान चढे।

सखि सहेली का अंदाज़ तो निराला रहा पर रहा कुछ अधूरा सा। यह अधूरापन क्या है सोचिए और अगर नहीं सोच पाए तो हम अपने अगले किसी चिट्ठे में इसकी चर्चा करेंगे।

शाम-ए-ग़ज़ल अच्छी रही और अंत में सुनाया गया सीमा प्रहरी गीत और भी अच्छा लगा। कमल (शर्मा) जी और ममता (सिंह) जी का संचालन संभालते-संभालते भी श्रोताओं को स्टूडियो रिकार्डिंग और बाहर की रिकार्डिंग का तकनीकी फ़र्क समझा गया।

अब इंतज़ार है अगली किसी कड़ी में तबस्सुम की ज़ोरदार मौजूदगी का और प्रतीक्षा है अन्य बार्डरों पर तैनात फ़ौजियों से मिलने की। आखिर जैसलमेर से शुरूवात हो ही गई है तो उसे आगे तो बढाया जा ही सकता है।

3 comments:

mamta said...

हम सुनने तो गए थे बड़े चाव से पर तभी हमारे घर कुछ मेहमान आ गए और इस चक्कर मे हम सुन ही नही पाये थे।

भोजवानी said...

कबीर सा रा रा रा रा रा रा रा रारारारारारारारा
जोगी जी रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा री

annapurna said...

भोजवानी जी क्षमा कीजिए, मैं समझ नहीं पाई आप कहना क्या चाहते है।

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