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Friday, March 28, 2008

साफ़ आवाज़ की महंगी तकनीक

रेडियोनामा: साफ़ आवाज़ की महंगी तकनीक

जैसे अपनी मुम्बई यात्रा दौरान इस विषय पर लिखने की बात लिखी थी, उसको पूरी कर रहा हूँ । पहेले तो कोई भी इस तरह की तक़निक महेंगी ही होती है, क्यों कि इस प्रकार की तक़निक विकसीत करने वालों का उदेश्य सेवा का नहीं पर कमाई का ही प्रथम होता है । तो आज रेडियो श्रीलंका हिन्दी सेवा के लिये यह बात पहेले मूर्गी या पहेले अंडा जैसा बन पडा है । हम श्रोता ऐसा सोचते है, कि वे लोग पहेले इन्वेर्स्ट करके यह तकनिक़ स्थापित करें और बादमें आमदानी तो होगी ही होगी, वहाँ दूसरी और रेडियो श्री लंका वाले का सोचना इस प्रकार का है, कि अगर वह खर्च जो नयी तक़निक पर होगा, वह विग्य़ापन की आमदानी से नहीं लौटा तो वे क्या करेंगे । हकीकतमें आज उनको विजली भी परवडती नहीं है, और इसी लिये रात्री प्रसारण कुछ: महिनो बंद किया गया था, पर लोगो के प्यार के आगे वे झूके, और फिरसे शुरू किया ।
दूसरी बात रिझर्व बेन्क के कडे नियम की बात पद्दमिनीजीने मूझे नहीं कही है, पर एक बार श्री मनोहर महाजनजी सुरत आये थे, तब इस विषय की चर्चा के दौरान उन्होंने कही थी और श्री गोपाल शर्माजी की आत्मकथामें भी उन्होंने लिखी है । एक समय तो श्री लंका निवासी हाअल सेवा निवृत्त उद्दघोषक श्री विजय शेख़र की आवाझमें एक स्पोट भी आता था, कि वे भारतिय रूपये के रूपमें भी रेवन्यू स्वीकार करेंगे । तब मैनें ही उनको लिखा था, कि यह घोडे भाग जाने के बाद घोडार के दरवाजे बंद करने वाली बात हुई ।
पर एक बात मैने जानी और मानी है, कि विविध भारती के फोन इन कार्यक्रममें हिस्सा लेने के बाद मुझे जो प्रतिक्रिया प्रप्त हुई, उनसे ज्यादा रेडियो के सजीव फोन इन कार्यक्रमोमें हिस्सा लेने पर और वादक कलाकारों के जन्म दिन या मृत्यू दिन पर जानकारी भेजने पर प्राप्त हुई है । जब श्री एनोक डेनियेल्स साहब के जन्म दिन पर पहेला कार्यक्रम वहाँ से करवाया तब उनके यहाँ अनगिनत शुभेच्छा संदेश प्रप्त हुए तो उनके अचरज की सीमा नहीं रही थी । और पूना के एक श्रोताने उनसे मेरा पता ले कर उस कार्यक्रमकी सीडी उनके साथ मूझे भी भेट की थी ।
विविध भारती नेटवर्क कुछ: दो पहर २.३० से ५ तक ही देशमें ज्यादातर हिस्सोंमें स्थानिय (क्षेत्रीय भाषी) केन्दों के कारण ही सुनाई पड़ता है । और शहरके हिसाबसे गाँवोंमें विजली के कारण आने वाला दिस्ट्रबंस कम रहने वाला है ।

1 comment:

annapurna said...

पीयूष जी आपकी टिप्पणियों और चिट्ठों से ऐसी बहुत सी बातों का पता चलता है जिन्हें जानने का कोई और स्त्रोत नहीं है।

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आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

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