रेडियो श्री लंका से हर रोज़ पूरानी फिल्मो के गीतो के कार्यक्रममें अन्तिम गीत प्रस्तूत करने की प्रणाली श्री विजय किशोर दूबेजी ने बनाई थी, जो श्री गोपाल शर्माजी के रेडियो श्री लंका में जाने के सिर्फ़ एक महिना बाद भारत लोट कर एच एम. वी.में जूड़ गये थे । तब श्री शर्माजी के साथी उद्दघोषकने यह प्रणाली बंध करनी शुरू की थी, तब श्री गोपाल शर्माजीने वहा~ के निर्देषकको मिल कर इस स्थापित प्रणाली को हर हमेंश जारि रख़ने के लिये परिपत्र जारि करवाया था । और एक योजानुयोग यह भी था, कि श्री गोपाल शर्माजीने रेडियो श्री लंका के अपने पहेले ही दिन फिल्म तानसेन का गाना प्रस्तूत किया था, जो श्री दूबेजीने शिड्यूल किया था । पर वे श्री लंका में होने के कारण अभी तक यह फिल्म देख़ नहीं पाये थे ।
जब श्री हरीशजीने रोहितहजी से कहा तब श्री रोहितजीने तय किया की श्री गोपाल शर्माजी को इस शॊमें आमंत्रित किया जाय । जब मूज़से उनका मोबाईल नं मांगा गया और श्री शर्माजी का सम्पर्क करके ज्नको न्योता दिया गया तब उनके स्वीकार करने पर ज्नसे मेरे परिचय के कारण मूझे भी न्योता दिया गया । इस तरह शुरूआती श्री रोहितजी, श्री क्रिष्नकांतजी (जिन्होंने सायगल साहबको अपने साथ तो नहीं पर अपनी फिल्म की शूटिंग के दौरान उसी समय उसी स्टूडियोमें अगल फ्लोर पर कोई और फिल्म की शूटिंग के समय देखा था ।), श्री हरीशजी और श्री शर्माजी के स्मयानूरूप बोलो के बाद श्री शर्माजी और श्री क्रिष्नकांतजी के बाजू वाली बेठक पर साथ साथ बेठ कर यह फिल्म देखने का अवसर प्राप्त हुआ । हालाकि इस सम्पर्क के लिये मेरे नाम का रोहितजी द्वारा कोई जिक्र नहीं किया गया था ।
श्री गोपाल शर्माजी के हिन्दीमें दिये गये छोटे से प्रासंगीक व्यक्त्व्य का मिल सका इतना अंश तथा श्री हरीश रधुवंशीजी का गुजराती व्यक्तव्य तथा श्री रोहितजी के गुजरातीमें कार्यक्रम संचालन का अंश आप नीचे सुन सकते है ।
MIC-015 - Copy.mp3 |
पियुष महेता । (सुरत)