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Monday, March 17, 2008

मेरे आस-पास बोलते रेडियो-5

मेरे आस-पास बोलते रेडियो-5


- पंकज अवधिया


यूँ तो बचपन ही से आकाशवाणी, रायपुर से प्रसारित किसलय कार्यक्रम को मै ध्यान से सुनता था पर यह नही जानता था कि कभी बतौर बाल कलाकार इस कार्यक्रम को प्रस्तुत करने का अवसर भी मिलेगा। मेरे एक मित्र विनोद के कहने पर मैने फार्म भरा और पहुँच गया आडिशन देने। कोई अनुभव नही था। कोई हालिया संस्मरण सुनाने को कहा गया। कुछ दिनो पहले दीवाली मनायी थी अपने गाँव मे सो पारम्परिक दीवाली के विषय मे बताया। परीक्षक खुश दिखे। अचानक जबान फिसली और मै को कह गया। तुरंत परीक्षक ने उसे दोहराने की जिद की। मैने उस शब्द को नही दोहराया। दूसरा शब्द कहा। फिर तो परीक्षक ने ठान लिया कि वे वही शब्द सुनकर ही रहेंगे। आधे घंटे बात होती रही पर मैने उस शब्द का प्रयोग ही नही किया सारे यत्नो के बावजूद। हँसते हुये मेरा चयन कर लिया गया। बाद मे परीक्षक माननीय लाल राम कुमार सिंग जो कि छत्तीसगढ के जाने-माने उदघोषक और कलाकार है, ने चतुराई की तारीफ की और सीखाया कि कैसे उच्चारण सुधारा जाये। यह सबक बहुत काम आया।


आज जब मै विज्ञान सम्मेलनो मे दुनिया भर के वैज्ञानिको के सामने व्याख्यान देता हूँ तो बडे गौर से सुना जाता है और उच्चारण की तारीफ की जाती है। यदि आप साफ बोलते है तो एक अलग तरह का आत्म-विश्वास आपमे आ जाता है। आज भी मूल भारतीय रेडियो अपने इसी गुण के कारण पहचाना जाता है। आज का जमाना निजी चैनलो का है जहाँ शायद ही इस पर कोई ध्यान दिया जाता है। मुझे लगता है कि प्रतिस्पर्धा की भावना को छोडकर युवाओ को आकाशवाणी मे कार्य कर रहे वरिष्ठो से सीखना चाहिये। मुझे मालूम है वरिष्ठ आगे आकर उन्हे नया रास्ता दिखायेंगे। उच्चारण के मामले मे बीबीसी हिन्दी और नये रेडियो मे वर्ल्ड स्पेस का कोई जवाब नही है। मै यहाँ हिन्दी और उर्दू चैनल की बात कर रहा हूँ।


किसलय मे शामिल होने के बाद मेरी आवाज की कीमत बढ गयी थी। ज्यादा नही पर फिर भी पन्द्रह रुपये का चेक मिलता था हर कार्यक्रम के बाद। मुझसे कहा गया कि किसी अनजाने से कुछ नही खाना। कोई दुश्मन आवाज खराब करने के लिये कुछ भी खिला सकता है। बचपन मे मै सर्दी से परेशान रहता था। ज्यादा कुछ पता नही था इसलिये गरम पानी से गरारे कर लेता था और पैदल जाते समय विक्स ले लेता था। यह सब लम्बे समय तक चला फिर जब हिम्मत करके इनके बिना कार्यक्रम प्रस्तुत किया तो वो ज्यादा प्रभावकारी रहा। सारा मामला आत्मविश्वास मे कमी का था। बाद मे जब मैने ड्रम बजाना आरम्भ किया तो शो से पहले थोडा से पीने और इसी तरह नाटक के शो से पहले दर्द नाशक के साथ पुदीन हरा खाने कहा गया। बचपन का सबक इन दोनो से बचाता रहा। आज जब जडी-बूटी पर लिखता हूँ तो बहुत सारे रेडियो जाकी के सन्देश आते है कि आवाज सुधारने वाली वनस्पति बताये। आज बडे खजाने की जानकारी है मेरे पास। मुलैठी से लेकर बच तक। काश यह जानकारी पहले भी होती।


मेरी इस लेखमाला से सबसे अधिक लाभ यह हुआ कि इसे पढकर माताजी ने इच्छा जतायी है कि वे भी अपने अनुभव लिखना चाहती है। वे आकाशवाणी मे नाट्य कलाकार है और एक सफल लेखक है। पर इंटरनेट और कम्प्यूटर से कोसो दूर है। पहले सोचा कि मै ही उनका अनुभव पोस्ट कर दूंगा पर युनुस जी के उत्साहवर्धन के बाद मैने उनका ब्लाग बनाया है स्नेह बिखेरती जिन्दगी और वे जल्दी ही रेडियोनामा मे रेडियो से जुडे अपने अनुभव लिखेंगी। उम्मीद है कि पिताजी को भी इससे जोड पाऊंगा क्योकि उनको रेडियो के असली जमाने के बारे मे जानकारी है। उनके पास आज भी तरह-तरह के नये-पुराने रेडियो है। उन्हे पढना सचमुच सभी के लिये रोचक रहेगा।


(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

5 comments:

सागर नाहर said...

आपकी यह सीरीज तो बहुत बढ़िया रही, अब माताजी और पिताजी के अनुभवों संसमरणॊं को पढ़ने की इच्छा है।
कृपया जल्दी से माताजी और पिताजी के लेख प्रकाशित कीजिये।

annapurna said...

अच्छा लगा एक रेडियो परिवार के बारे में जानना।

mamta said...

ये तो बहुत अच्छी ख़बर है की आपकी माताजी अपने अनुभवों से हम सभी को कृतार्थ करेंगी।

Anonymous said...

आपनें यह जो उच्चारण की शुद्धता (clarity of diction)की बात ज़ाहिर की है वह बहुत ज़रूरी है| हमारे घर में बचपन में माता पिता द्वारा इस बात पर ध्यान दिया जाता था और टोका टोकी भी हुआ करती थी। आजकल इस बात का ध्यान विशेषकर commercial मीडिया में कम दिया जाता प्रतीत होता है।
आवाज़ की सशक्त प्रस्तुति में साँस लेने या Breathing technique का महत्व भी देखा जाता है, ऐसा मेरा अनुभव है।

Yunus Khan said...

पंकज भाई बधाई स्‍वीकारिए इस सशक्‍त श्रृंखला के लिए । हां इस बार आपने अगली पोस्‍ट का मसाला दे दिया है । मुद्दा ये है कि रेडियोनामा के ऐजेन्‍डे में कुछ बातें शामिल हैं । एक तो ये कि हम एक आम जिंदगी में किस तरह अच्‍छा और प्रभावशाली बोलें । इस बारे में जल्‍दी ही मैं और इरफ़ान मिलकर एक सीरीज़ करेंगे रेडियोनामा पर । पर आपकी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए हम चाहेंगे कि आप गले की देखभाल और उससे जुड़ी भ्रांतियों पर प्रकाश डालें । मैं इस बारे में एक पोस्‍ट फौरन लिख रहा हूं सवाल उठाते हुए औपचा‍रिक रूप से । आपको बस इतना करना है कि मेरी इस पोस्‍ट का बिंदुवार जवाब दे दीजिएगा हम उपकृत हो जाएंगे । आपकी माताजी की यादों का इंतज़ार रहेगा । उनकी तस्‍वीर और संक्षिप्‍त परिचय के साथ प्रकाशित करें । आपने रेडियो की दुनिया को अपनी नज़र से देखकर हम सबके लिए रास्‍ता प्रशस्‍त किया है । आखिरी बात ये कि सांस का खेल बोलने में बड़ा महत्‍त्‍व रखता है । मैं बहुत आगे चलकर अपने पॉडकास्‍ट से इस बारे में सभी को इस बारे में डेमॉन्‍स्‍ट्रेट करूंगा ।

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